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Thursday 23 March 2017

सरकारी नौकरी से इस्तिफा देकर एलोवेरा की खेती से करोड़पति बने हरीश धनदेव की प्रेरक कहानी

हरीश धनदेव के लिए नगरपालिका में जुनियर इंजीनियर की नौकरी छोड़ना मुश्किल काम नहीं था, लेकिन नौकरी छोड़कर किसान बनना और अपने आपको साबित करना सबसे बड़ी चुनौती थी और इस चुनौती में वे खरे उतरे। कभी जो किसान उन्हें ऐसा न करने के लिए सचेत करते थे, आज वही किसान शून्य से करोड़पति बने इस इंजीनियर किसान से प्रेरणा लेकर खुद भी एलोवेरा की खेती कर रहे हैं।

भारत का एक ऐसा किसान जो पढ़ा-लिखा है,इंजीनियर है और फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोलता है। इतना ही नहीं उन्होंने तो एमबीए की पढ़ाई के लिए दिल्ली के एक कॉलेज में दाखिला भी लिया था, लेकिन शायद उनकी मंजिल कहीं औरही थी। यह जैसलमेर के हरीश धनदेव है जिन्होंने 2012 में जयपुर से बीटेक करने के बाद दिल्ली से एमबीए करने के लिए एक कॉलेज में दाखिला लिया,लेकिन पढ़ाई के बीच में ही उन्हें 2013 में सरकारी नौकरी मिलगई सो वो दो साल की एमबीए की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए। तब हरीश जी जैसलमेर की नगर पालिका में जूनियर इंजीनियर के पद पर तैनात हुए।यहां महज दो महीने की नौकरी करने के बाद उनका मन नौकरी से हट गया। हरीश दिन-रातइस नौकरी से अलग कुछ करने की सोचने लगे। कुछ अलग करने की चाहत इतनी बढ़ गई थी कि वो नौकरी छोड़कर अपने लिए क्या कर सकते हैं इस पर उन्होंने रिसर्च करना शुरु कर दिया।एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने दी दिशा अपने लिए कुछ करने की तलाश में हरीश की मुलाकात बीकानेर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में एक व्यक्ति से हुई। हरीश राजस्थान की पारंपरिक खेती ज्वार याबाजरा से अलग कुछ करना चाह रहे थे। इसलिए जब उनकी मुलाकात बीकानेर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में एक व्यक्ति से हुई तो चर्चा के दौरान हरीश को उन्होंने एलोवेरा की खेती के बारे में सलाह दी। अपने लिए कुछ करने की तलाश में हरीश आगे बढ़े और एक बार फिर दिल्ली पहुंचे जहां उन्होंने खेती-किसानी पर आयोजित एक एक्सपो में नई तकनीक और नए जमाने की खेती के बारे में जानकारी हासिल की। 

एक्सपो में एलोवेरा की खेती की जानकारी हासिल करने के बाद हरीश ने तयकि याकि वो एलोवेरा उगाएंगे। यहीं से उनके जीवन में हुई नई शुरुआत को एक दिशा मिल गई। दिल्ली से लौटकर हरीश बीकानेर गए और एलोवेरा के 25 हजार प्लांटलेकर जैसलमेर लौटे।जब बीकानेर से एलोवेराका प्लांट आ गया, तब इनप्लांटों को खेत में लगाया जाने लगा तो कुछ लोगों ने कहा कि जैसलमेर में कुछ लोग इससे पहले भी एलोवेरा की खेती कर चुके हैं, लेकिन उन सभी को सफलता नहीं मिली। लोगों ने कहा कि उनकी फसल को खरीदने कोई नहीं आया इसलिए उन किसानों ने अपने एलोवेरा के पौधों को खेत से निकाल दूसरी फसलें लगा दी। हरिश को इस बात से थोड़ी आशंका तो हुई लेकिन जब उन्होंने पता लगाया तो पता करने पर जानकारी मिली कि खेती तो लगाई गई थी, लेकिन किसान खरीददार से सम्पर्क नहीं कर पाए इसलिए कोई खरीददार नहीं आया।इसके बाद हरीश को ये समझते देर नहीं लगी कि यहां उनकी मार्केटिंग स्किल से काम बन सकता है।कैसे हुई एलोवेरा की खेती की शुरुआत हरीश ने बताया कि घर मेंइस बात को लेकर कोई दिक्कत नहीं थी कि उन्होंने ने नौकरी छोड़ दी, लेकिन उनके सामने खुद को साबित करने की चुनौती जरूर थी। काफी खोज-बीन केबाद 2013 के आखिर में एलोवेरा की खेती की शुरुआत की।बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय से 25 हजार प्लांट लाए गए और करीब 10 बीघे में उसे लगाया गया। 

आज की तारीख में हरीश 700 सौ बीघे में एलोवेरा उगाते हैं, जिसमें कुछ उनकी अपनी जमीन है और बाकी ठेके पर ली गई है। मार्केटिंग स्किल काम आया हरीश ने बताया कि उम्रकम होने की वजह से उनमें अनुभव की कमी थी, लेकिन कुछ अलग करने का जुनून था और उसी जुनून ने उन्हें यहां पहुंचा दिया। खेती की शुरुआत होते ही जयपुर से कुछ एजेंसियों से बातचीत हुई और अप्रोच करने के बाद हमारे उनके एलोवेरा के पत्तों की बिक्री का एग्रीमेंट इनकंपनियों से हो गया। इसके कुछ दिनों बाद कुछ दोस्तों से इस काम को और आगे बढ़ाने के बार में उन्होंने बात की। हरीश ने बताया कि इसके बाद उन्होंने अपने सेंटर पर ही एलोवेरा लीव्ससे निकलने वाला पहला प्रोडक्टजो कि पल्प होता है निकालना शुरु कर दिया। शुरुआत के कुछ दिनों बाद राजस्थान के ही कुछ खरीददारों को उन्होंने ये पल्प बेचना शुरु कर दिया। हरीश ने बताया कि घर में इस बात को लेकर कोई दिक्कत नहीं थी कि उन्होंने ने नौकरी छोड़ दी, लेकिन उनके सामने खुद को साबित करने की चुनौती जरूर थी। काफी खोज-बीन के बाद 2013 के आखिर में एलोवेराकी खेती की शुरुआत की।बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय से 25 हजार प्लांट लाए गए और करीब 10 बीघे में उसे लगाया गया। आज की तारीख में हरीश 700 सौ बीघे में एलोवेरा उगातेहैं, जिसमें कुछ उनकी अपनी जमीन है और बाकी ठेके पर लीगई है। मार्केटिंग स्किल काम आया हरीश ने बताया कि उम्रकम होने की वजह से उनमें अनुभव की कमी थी, लेकिन कुछ अलग करने का जुनून था और उसी जुनून ने उन्हें यहां पहुंचा दिया। खेती की शुरुआत होते ही जयपुर से कुछ एजेंसियों से बातचीत हुई और अप्रोच करने के बाद हमारे उनके एलोवेरा के पत्तों की बिक्री का एग्रीमेंट इनकंपनियों से हो गया। इसके कुछ दिनों बाद कुछ दोस्तों से इस काम को और आगे बढ़ाने के बार में उन्होंने बात की। हरीश ने बताया कि इसके बाद उन्होंने अपने सेंटर पर ही एलोवेरा लीव्ससे निकलने वाला पहला प्रोडक्टजो कि पल्प होता है निकालना शुरु कर दिया। शुरुआत के कुछ दिनों बाद राजस्थान के ही कुछ खरीददारों को उन्होंने ये पल्प बेचना शुरु कर दिया।टर्निंग प्वाइंटये सब चल ही रहा था कि एक दिन वह ऑनलाइन सर्च सेये देखने की कोशिश कर रहे थे कि कौन-कौन बड़े प्लेयर हैं जो एलोवेरा का पल्प बड़े पैमाने पर खपाते हैं। उन्हें बड़े खरीददारों की तलाश थी क्यों कि खेती कादायरा बढ़ चुका था और उत्पाद भी अधिक मात्रा में आने लगा था। इसी दौरान उन्हें पतंजलिके बारे में पता चला, भारत में पतंजलि एलोवेरा का एक बड़ा खरीददार है। बस फिर क्या था उन्होंने पतंजलि को मेल भेज कर अपने बारे में बताया। पतंजलि का जवाब आया और फिर उनसे मिलने उनके प्रतिनिधी भी आए। हरीश ने बताया कि यहीं से इस सफर का टर्निंग प्वाइंट शुरु  हुआ।पतंचलि के आने से चीजें बदली और उनकी आमदनी भी। करीब डेढ़ साल से हरीश एलोवेरा पल्प की सप्लाई बाबा रामदेव द्वारा संचालित पतंजलीआयुर्वेद को करते हैं। हरीश ने बताया कि शुरु में कई बार  उन्होंने ये आशंका घेर लेती थी कि इसे आगे कैसे ले जाउंगा...कैसे इसे और बड़ा करुंगा?
 
लेकिन उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे समय के साथ काम की समझ बढ़ने लगी। आज ना सिर्फ हरीश की कंपनी ‘नेचरे लो एग्रो’ की आमदनी बढ़ी है बल्कि उनके साथकाम करने वालों की आमदनी भी बढ़ी है। हरीश ने बताया कि पतंजलिके आने से काम करने के तौर-तरीके में भी बदलाव आया और वह अब पहले से ज्यादा प्रोफेशनल तरीके से काम करने लगे हैं।क्वालिटी पर रहता है खास जोर हरीश ने कहा कि उनके यहां उत्पाद में क्वालिटी कंट्रोल का खास ध्यान रखा जाता है। वे अपने उत्पादको लेकर कोई शिकायत नहीं चाहते सरकारी नौकरी से इस्तिफा देकर एलोवेरा की खेती से करोड़पति बनेहरीश धनदेव की प्रेरक कहानी इसलिए प्रत्येक स्तर में उन्हें इसकाखास ध्यान रखना होता है कि वे जो पल्प बना रहे हैं उसमें किसी प्रकार की कोई मिलावट या गड़बड़ी ना हो।

 एलोवेरा की खेती से करोड़पति बनने वाले हरीश आज लाखों लोगों की प्रेरणा बन चुके हैं। हरीश धन देवमूल रुप से जैसलमेर के रहने वाले हैं। यहीं से उनकी आरंभिक शिक्षा हुई, इसके बाद वो उच्च शिक्षा के लिए जयपुर गए और फिर दिल्ली पहुंचे। दिल्ली से एमबीए की पढ़ाई के बीच सरकारी नौकरी मिली और जैसलमेर नगर पालिका में जूनियर इंजिनीयर बने। जैसलमेर नगर पालिका से इस्तिफे के बाद एलोवेरा की खेती ने हरीश को करोड़पति किसान बना दिया।

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