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Friday 24 March 2017

मोहम्मद रोज़ादीन ने किया काॅफी बनाने वाले प्रेशर कुकर का आविष्कार

बिहार के पूर्वी चम्पारण के मोहम्मद रोज़ादीन अपने प्रेशर कूकर और उसकी सीटी से जुड़ी हुई नली से निकलने वाले तेज़ भाप को जग में प्रवाहित कर झाग वाली काॅफी तैयार करते हैं और उस काॅफी को अपने ग्राहकों को पेश कर वह पैसा कमा रहे हैं। परंपरागत रूप से प्रेशर कूकर केवल भोजन बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।


हालांकि 46 वर्षीय रोज़ादीन ने एक साधारण प्रेशर कूकर को एक एसप्रेसो काॅफी मशीनमें तब्दील कर दिया है। अब यह मोडिफाइड कूकर का प्रयोग केवल पानी उबालने और भाप उत्पन्न करने के लिए ही किया जाता है। कूकर में लगाई गई काॅपर की पाइप में एक रेगुलेटर लगाया गया हैजिससे उच्च दाब से भाप उत्पन्न होती है और जल्दी ही स्वादिष्ट काॅफी तैयार हो जातीहै।

मोहम्मद रोज़ादीन अल्यास जी का जन्म सन् 1963 में मोतीहारी के चम्पारण मेंहुआ। चम्पारण का भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि महात्मा गांधीजी ने यहां सन् 1917 में सत्यग्रह का आंदोलन शुरू किया था। रोज़ादीन जी नेबताया कि वह जब भी किसी विवाह समारोह में जाते थे तो उनका सारा ध्यान काॅफीस्टाल पर ही होता था।उनका कहना है कि आमतौर पर लोग काॅफी की जगहचाय पीते हैं, जिसका एक कारण यह भी है कि सड़क किनारे वाली चाय के ठेलों पर काॅफी तैयार करने वाली मशीन उपलब्ध नहीं होती क्योंकि काॅफी बनाने वाली मशीन बहुत महंगी होती है और उसका इस्तेमाल करने के लिए बिजली की आवश्यकता भी होती है। 


जो सड़क किनारे चाय वाले ठेलों के पास उपलब्ध नहीं होती। तब उन्हें यह विचार आया कि यदि वह सस्ते दामोंपर काॅफी बनाने वाली मशीन विकसित कर लें तो यह चाय केठेले लगाने वालों की आय को बढ़ाने में सहायक होगी। उन्हेंयह विचार सन् 1993 में आया और तब उन्होंने अपनी इस काॅफी बनाने वाली मशीन के लिए निवेश करने का सोचा।उन्होंने कुछ समय काॅफी बनानेकी प्रतिक्रिया को समझने मेंलगाया ताकि उनकी मशीन मेंकम से कम त्रुटि हो सके। रोज़ादीन जी की आय उस समय इतनी नहीं थी कि वह कुछ रूपये अपने नवप्रवर्तन केलिए भी निवेश कर सकें। लेकिन फिर भी वह आगे बढ़े और अपने एक दोस्त से तकरीबन 2000 रूपये उधारलिये और बाद में धीरे धीरे करके उसके पैसे लौटा दिये। फिरकहीं जाकर उन्होंने एक पुरानेकुकर और काॅपर की ट्यूब केप्रयोग से एक प्रोटोटाइप तैयारकिया।रोज़ादीन ने इस काॅफीबनाने वाली मशीन के लिए काॅपर की पाइप को कूकर केढक्कन से जोड़ दिया, जिससे काॅपर में बनी भाप एक त्रितहोकर काॅपर की पाइप केज़रिये काॅफी वाले जग में चली जाती है और झाग वाली काॅफी बनकर तैयार हो जाती है।

उन्होंने बताया कि कूकर मेंउन्होंने काॅपर की पाइप वेल्डिंग करवा कर फीट करवाई थी। काॅफी कूकर तैयार करने केलिए उसकी कीमत कूकर के आकार पर आधारित होती है। एक नया 10 लीटर वाले कूकर को काॅफी कूकर में तब्दील करने की लागत 2000 रूपये आती है जबकि एक पुराने कूकर को तैयार करने में केवल750 रूपये की लागत ही आतीहै। उन्होंने बताया कि यदि कोई अपना कूकर लेकर आते हैं तो वह उसे 250 रूपये में तब्दील कर देते हैं। उनका कहना है कि किसी भी प्रकारके कूकर को काॅफी मेकर में बदला जा सकता है। उन्होंनेयह भी बताया कि एन आईएफ ने उनके नाम से काॅफीकूकर को पेटेंट करवाया है। 

रोज़ादीन जी अब तक 1500 से भी ज्यादा काॅफी कूकर मोतीहारी और अन्यस्थल जैसे ढाका, वाघा बाॅर्डर,रक्सौल, समस्तीपुर जैसी कई जगहों पर बेच चुके हंै। वह अपने इस नवप्रर्वतन को आगे बढ़ाने की सोच रहे हैं।उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में वह यह काॅफी कूकर मांग पर ही बनाते हैं लेकिनआगे वह ऐसे कुछ काॅफी कूकर पहले से ही बनाकर रखना चाहते हैं ताकि दूर से आने वाला ग्राहक भी इसे खरीद सके। इसके लिए वह अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं। उन्होंनेअपने इस काॅफी कूकर का नाम ‘‘जेपी उस्ताद काॅफी कूकर" रखा है |

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