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Monday 27 March 2017

संरक्षित कर रहे हैं पारंपरिक अनाज के बीज : नेकराम

नेकराम शर्मा करसोग, हिमाचल प्रदेश के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे खेती करने लग गये थे। 90 के दशक के शुरुआती दौर मे हिमाचल सरकार द्वारा साक्षारता अभियान चलाया गया । नेकराम जी इस अभियान से जुड़ गए । वे खेती के साथ गाँव-गाँव जाकर लोगों को साक्षर करने में लग गये थे। उसी दौरान उनकी मुलाक़ात हिमाचल के कुछ बुद्धिजीवियों और समाज सेवकों से हुई। उनसे मिलने के बाद, हिमाचल के लोगों की बदहाली के कारणों पर उनकी समझ विकसित हुई। तब वे लोगों को पढ़ाने के साथ-साथ इन मुद्दों पर भी गाँव के लोगों से चर्चा करने लगे। उन्होने देखा की गाँवों मे चारे की समस्या बढ़ती जा रही है। उन्होने जब इसके कारणों की खोज शुरू की, तब उन्हे पता चला की जंगल की अत्याधिक कटाई के कारण, पहाड़ उजड़ते जा रहे है और इस वजह से अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाने की वजह से चारा पर्याप्त नहीं हो पा रहा है। तब वे जंगल बचाने के लिए लोगों को जागरूक करने लगे। इन्होने खुदसे अपने गाँव के पास के पहाड़ों पर गाँव वालों के साथ मिलकर दो सौ हेक्टर से भी ज्यादा इलाके मे जंगल उगाया , जिससे उन के क्षेत्र मे चारे की समस्या खत्म हो गयी है।


जैसे-जैसे वक़्त बीतता गया, उनकी समझ भी विकसित होती गयी। उन्होने देखा की धीरे-धीरे रासायनिक खाद का प्रयोग खेतों मे बढ़ता जा रहा है और इसी के साथ खेतों मे फसल भी बदलती जा रही है। लोग अब अपने खाने के लिए उगाने के बजाय बाज़ार मे बेचने के लिए उगाने लगे थे। देशी व पारंपरिक अनाज की जगह नगदी फसलों ने ले ली है। इसकी वजह से लोगों की थाली से पौष्टिक आहार गायब होता जा रहा है। विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ लोगों के शरीर मे जगह बनाने लगी है, जिनके बारे मे लोगों ने कभी सुना भी नहीं था। तब से वे खुद खेती करके इनके बीजों को बचाते है और लोगों को बाटते है, लोगों को गाँव-गाँव जाकर फिर से इन अनाजों को उगाने के लिए प्रेरित कर रहे है।


वो कहते है कि “ देशी या पारंपरिक अनाज अपने क्षेत्र के वातावरण मे रमा हुआ होता है। उनमे वो सारे पौष्टिक तत्व मौजूद होते है जो उस क्षेत्र मे स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक होते है। ये आपको मधुमेह, कैंसर, हृदय संबंधी बीमारियों से बचाकर रखते है। ये आपकी पाचन शक्ति बढ़ाते है एवं आपके शरीर को निरंतर detoxify करते रहते है। जिससे हमारी मांसपेशियाँ, श्वसन तंत्र व तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है व हमारे शरीर कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

वे आगे बताते है कि भले ही आज ये देशी और पारंपरिक अनाज प्रचलन मे नहीं है। परंतु मानव समाज पिछले 10000 हजार सालों से इन्हे उगा रहा था, यह उनके भोजन का अहम हिस्सा था। इसकी वजह से कुपोषण जैसी समस्या उस वक़्त नहीं हुआ करती थी। इन्हें एक सोची-समझी साजिश के तहत हमारी थाली से गायब किया गया है। ये अनाज बिना खाद के भी उग सकते थे। लोगों कि थाली मे जब तक यह अनाज था तब तक बीज, रसायनिक खाद और दवाइयाँ बनाने वाली कंपनियाँ लाभ नहीं कमा सकती थी। आज जब लोग इन अनाजों को भूल चुके है तब ये कंपनियाँ दिन दूनी रात चौगनी दर से वृद्धि कर रही है। आज के समय ये सबसे ज्यादा लाभ कमाने वाली इंडस्ट्री है।”

इसी बीच हिमाचल मे विकास के नाम पर कई सारे जलविद्युत बिजली सयंत्र शुरू करने का एक दौर शुरू हुआ। इसकी वजह से कई सारी नदिओं, गावों पर बर्बाद होने का खतरा मंडराने लगा है। उनके गाँव के पास भी एक ऐसे ही सयन्त्र का काम शुरू हुआ था। इसकी वजह से उनके गाँव के साथ-साथ आस-पास के कई गाँवों पर उजड़ने का खतरा मंडराने लगा था। उसके साथ ही नदी और उसके साथ जुड़े पारिस्थितिक तंत्र पर भी खतरा बढ़ गया था। तब उन्होने उच्चतम न्यायालय और NGT तक इसकी लड़ाई लड़ते हुए उस योजना को क्रियान्वित होने से रुकवाया।


अब वे गाँव के लोगों के साथ मिलकर स्वरोजगार कि दिशा मे भी काम कर रहे है। उनके क्षेत्र मे बुनकरी का कार्य आम था। बाज़ारवाद कि इस अर्थव्यवस्था ने इस हुनर को लगभग बर्बाद कर दिया है। परंतु अभी भी गाँवों मे कई बुजुर्गों के पास ये हुनर जिंदा है। वे इन बुजुर्गों कि मदद से इस हुनर को फिर से जिंदा करने कि कोशिश कर रहे है और उनके द्वारा तैयार कपड़े को विभिन्न मेलों के मध्यम से लोगों तक पहुंचाकर लोगो के लिए नए आय के स्त्रौत तैयार करने के लिए प्रयासरत है।


नेकराम जी कहते है कि वे पिछले पच्चीस वर्षों से यह काम करते आ रहे है, अब तो यह उनकी आदत हो गयी है अगर वे गाँव-गाँव घूमकर लोगों से इन मुद्दों पर चर्चा न करे, उन्हे जागरूक करे तो उन्हें रात को नींद नहीं आती है। उन्होने अपना पूरा जीवन इसके लिए समर्पित कर दिया है और बचा हुआ जो समय है उनके पास वो भी वो इसी के लिए समर्पण कर चाहते है।

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