Total Pageviews

Tuesday 13 January 2015

Business Creativity



सभी साथियों को पोंगल की शुभ कामनाएं


कविता लेखक अनिल कम्बोज गढ़ी बीरबल, इंद्री, करनाल, हरियाणा

जो लडकिया लव के चककर मे पडकर अपने माँ-बाप को छोडकर
घर से भाग जाती है
मै उन लडकीयो के लिए कुछ कहना चाहुंग
बाबुल की बगिया में जब तू , बनके
कली खिली,
तुमको क्या मालूम की,
उनको कितनी खुशी मिली ।
उस बाबुल को मार के ठोकर, घर से भाग जाती हो,
जिसका प्यारा हाथ पकड़ कर, तुम पहली बार
चली ॥
तूने निष्ठुर बन भाई की, राखी को कैसे
भुलाया,
घर से भागते वक़्त माँ का आँचल याद न आया ?
तेरे गम में बाप हलक से, कौर निगल ना पाया,
अपने स्वार्थ के खातिर, तूने घर में मातम फैलाया ॥
.
वो प्रेमी भी क्या प्रेमी,
जो तुम्हें भागने को उकसाये,
वो दोस्त भी क्या दोस्त, जो तेरे यौवन पे ललचाये ।
ऐसे तन के लोभी तुझको,
कभी भी सुख ना देंगे,
उलटे तुझसे ही तेरा, सुख चैन
सभी हर लेंगे ॥
.
सुख देने वालो को यदि, तुम दुःख दे जाओगी,
तो तुम भी अपने जीवन में, सुख
कहाँ से पाओगी?
अगर माँ बाप को अपने, तुम ठुकरा कर जाओगी,
तो जीवन के हर मोड पर, ठोकर
ही खाओगी ॥
.
जो - जो भी गई भागकर, ठोकर
खाती है,
अपनी गलती पर, रो-रोकर अश्क
बहाती है ।
एक ही किचन में, मुर्गी के संग साग
पकाती है,
हुईं भयानक भूल, सोचकर अब पछताती है ॥
.
जिंदगी में हर पल तू,
रहना सदा ही जिन्दा,
तेरे कारण माँ बाप को, ना होना पड़े शर्मिन्दा ।
यदि भाग गई घर से तो, वे जीते जी मर
जाएंगे,
तू उनकी बेटी है यह, सोच - सोच
पछताएंगे ॥

जूट की रस्सी से बुनी चारपाई

अमृतसर जाएं तो इस बीस फुट के विरासती मंजे पर जरूर बैठें

अमृतसर.  जूट की रस्सी से बुनी इस चारपाई की लंबाई बीस फुट और चौड़ाई सोलह फुट है। इस पर पचास लोग आराम से बैठ जाते हैं। प्रजापत कुम्हार बिरादरी ने इस अनमोल धरोहर को सात दशकों से सहेज कर रखा है। इसे आप शहर के बीचोबीच स्थित पुराने टेलीफोन एक्सचेंज के पास रूढ़ सिंह की हवेली के सामने देख सकते हैं।  जगवीर सिंह कहते हैं कि यह विशाल चारपाई हमारे बुजुर्गों की निशानी है। इस पर बैठ कर ताश खेलने, शराब, तंबाकू या बीड़ी-सिगरेट पीने की सख्त मनाही है।

भागलपुर बिहार में पिछले 25 सालों से अकेले ये व्यक्ति बनाता आ रहा है पुल|

बिहार के एक और शख्स भुटकू मंडल भी जाने  जाते हैं. लेकिन जो निर्माण भुटकू करते हैं वह स्थायी नहीं है. वे हर साल एक नदी पार करने के लिए पुल बनातें हैं और हर साल बाढ़ उस पुल को बहा ले जाती है. यह सिलसिला पिछले 25 साल से अनवरत जारी है.

bhutku_mandal_at_work

भागलपुर शहर के लालूचक मोहल्ले से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर गंगा की एक सहायक नदी जमुनिया धार बहती है. इस धार के मोहनपुर घाट पर एक अस्थायी पुल दिखाई देती है. यह कच्ची पुल देखने में भले ही कोई साधारण पुल दिखाई दे, पर इस पुल को किसी भी तरह साधारण नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसे बनाने में एक आदमी का असाधरण लगन, परिश्रम, धैर्य औऱ परमार्थ की भावना लगी है. हजारों जिंदगियों में थोड़ी सी सहुलियत लाने वाली इस पुल को बनाने में भुटकू मंडल नाम का यह नाटे कद का आम आदमी पिछले 25 सालों से जुटा है.
सर पे गमछा बांधे, धोती और ब्लेजर पहने भुटकू को जब क्षेत्र के लोग नदी में ईंट और मिट्टी डालते देखते हैं तो उन्हें यह तसल्ली हो जाती है कि इस वर्ष भी गांव से शहर जाने में गंगा कि यह सहायक नदी रूकावट नहीं बनेगी. भूटकू घाट पर भूटकू की पुल जल्द ही बनकर तैयार हो जीएगी. जी हां पुल वाले इस इलाके को अब भुटकू घाट के नाम से ही जाना जाता है. क्षेत्र के लोगों के अनुसार हर साल इस 100 फिट लंबी पुल का निर्माण भुटकू पिछले 25 साल से करते आ रहें हैं.

bridge p

इस जुनून की शुरूआत कैसे हुई? यह प्रश्न पूछने पर भुटकू कहते हैं कि “मैं पहले पास के नाथनगर इलाक़े में सब्ज़ी बेचा करता था. फिर समाज के कहने पर मैं जमुनिया धार में नाव चलाने लगा. बारिश के बाद नदी का पानी कम हो जाया करता है. समाज के कहने पर मैने ही  पुल बनाने की जिम्मेदारी अपने उपर ली थी.”

गांव वाले कभी-कभार पुल बनाने के लिए श्रमदान भले कर देते हैं पर पुल बनाने से लेकर इसकी मरम्मत की पूरी ज़िम्मेदारी भुटकू अकेले ही निभातें हैं और फिर बरसात में जब यह पुल डूब जाती है तो भुटकू अपनी नाव से लोगों को पार भी उतारते हैं.

150103170250_bhutku_mandal_prom

आप जानना चाहेंगे कि इस काम के लिए भुटकू क्या मेहनताना लेते हैं तो पढ़िए इस बारे में खुद भुटकू का क्या कहना है. “नकद शायद ही कोई देता है, कोई अनाज देता है तो कोई सब्जी, घरेलू उपयोग के बाद जो अनाज और सब्जी बचती है उसे बेचकर घर की बाकी जरुरतें पूरा करते हैं.” पर भुटकू को इस काम के लिए सम्मान बहुत मिला है. पुल वाले इस इलाके को अब भुटकू घाट के तौर पर ही जाना जाने लगा है. यह सम्मान ही भुटकू की जीवन की सबसे बड़ी कमाई है. वे कहते हैं, “सब उन्हें दादा, बाबू, नाना कह कर बुलाते हैं. यह बहुत इज्जत की बात है.”

65 साल के इस बुजुर्ग को इस उत्साह से पुल बनाने में जुटा देख हैरानी होती है. भुटकू जानते हैं कि उनकी अथक परिश्रम से बनने वाली इस पुल को हर साल कि तरह इस साल भी बाढ़ बहा ले जाएगी फिर भी उनका हौसला जरा सा भी नहीं डिगता. जैसे कोई बच्चा समुद्र किनारे रेत का घर बना रहा हो यह जानते हुए कि अगली लहर उसे बहा ले जाएगी. सच ही है, ऐसे निस्वार्थ कार्य के लिए बच्चों सी निश्छलता तो चाहिए ही.

Sunday 13 October 2013

Wife carrying disabled Husband on her back.







Jesse Cottle joined the Marine Corps in August 2003, and lost his legs in Afghanistan while on patrol in 2009. He met his future bride, Kelly, while he was recovering from his wounds during a swim meet in San Diego. Kelly was a swimmer for Boise State, and she says Jesse was very different, and not just because of his legs, but just because of who he was. They got married last year and live in San Diego. They were visiting Kelly’s family back in Idaho and as they took family portraits, the photographer suggested a photo in the water. Kelly told Jesse to pop off your legs so she could take him in the water. She said it was something they often do, and the photog took a picture of Kelly carrying her husband. Jesse says the supportive messages they’ve been getting have been humbling.


Saturday 12 October 2013

गणितज्ञ, तुलछाराम जाखड़ का गणित का ज्ञान देवीय चमत्कार है.


गाँव में गणितज्ञ,

तुलछाराम जाखड़ का गणित का ज्ञान देवीय चमत्कार है.

आपने इन दिनों गूगल बॉय की कहानी खूब पढ़ी और देखी होगी. सारे चेनल उसे दिखा रहे हैं. लेकिन मेड़ता क्षेत्र के गाँव में रहने वाले चौथी पास किसान तुलछाराम जाखड़ का गणित ज्ञान देखकर हेरान होने के सिवा कोई चारा नहीं रहता है. आप कहिये कि 865 का दस तक पहाड़ा बोलना(मल्टीप्लाई करना) है, वे बोल देंगे. ऐसे कोई भी संख्या जो एक लाख तक है, आप बोलेंगे और तुलछाराम जी उसकी दस तक की गिनती फ्लोव में बोल देंगे. आप लाखों की संख्या बोलते रहिये, वे जोड़ देंगे. आप किसी भी लंबी संख्या का वर्गमूल(स्क्वायर रूट) पूछिए, वे बता देंगे. बस आप आँखें फाड़ फाड़ कर उनकी तरफ देखते रहिये.

कई बार उनके बारे में अखबार में पढ़ा था, कई बार उनसे मुलाक़ात भी होती रहती है पर उनसे तसल्ली से रूबरू नहीं हो पाया था. आज उनके गाँव लाम्पोलाई में शाम को एक हथाई में बैठा था तो उनके गणित के ज्ञान की एक एक परत ऐसी खुलने लगी कि मुझे ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट के फलसफे और प्रमेय याद आने लगे. आज वार्तालाप बीच में ही छोड़ना पड़ा. समय का अभाव था. उन्हें फिर आने का वादा कर आ गया.

मैंने चलते चलते जाखड़ साहब से पूछा कि आप आगे क्यों नहीं पढ़े तो एक मार्मिक कहानी बता गये. बोले कि मेरे दादा को उनके गुरु ने बताया कि इस बच्चे के सिर पर अगर हल्की चोट भी लग गई तो यह खत्म हो जायेगा. दादा को पता था कि उन दिनों स्कूल में बच्चों की पिटाई आम बात थी. बस स्कूल छुडवा दी. लेकिन दिमाग की कसरत घर पर ही चालू रही. दिमाग आज भी उसी गति से गणनाएं कर रहा है. अगर स्कूल में पढ़ाई चालू रहती तो पता नहीं भारत को कैसा वैज्ञानिक मिलता. भारत का सौभाग्य कहाँ !

कई बार स्थानीय अखबारों ने उनकी कहानी छापी है पर अभी तक वे देश दुनिया की ख़बरों में नहीं आये हैं. बोलते मारवाड़ी में है, पर संख्याएँ उनके लिए खेल हो गई हैं. जिस प्रकार मेरे सामने गुणा और जोड़ कर रहे थे, मेरी तो आगे सवाल करने की हिम्मत ही नहीं पड़ी.

आपको तसल्ली करनी हो तो लाम्पोलाई गाँव (राजस्थान के एकदम बीच में ) जाकर 65 वर्ष के तुलछाराम जी से जरूर मिलिएगा. इस क्षेत्र में लोग उनको कंप्यूटर के नाम से जानते हैं !

'अभिनव राजस्थान अभियान'-  जयपुर से गाँव तक - अच्छाई की मार्केटिंग. हम कोशिश करेंगे कि तुलछाराम जी की चमत्कारिक कहानी दुनियाभर में पहुंचे.


गाँव में गणितज्ञ, तुलछाराम जाखड़ का गणित का ज्ञान देवीय चमत्कार है. आपने इन दिनों गूगल बॉय की कहानी खूब पढ़ी और देखी होगी. सारे चेनल उसे दिखा रहे हैं. लेकिन मेड़ता क्षेत्र के गाँव में रहने वाले चौथी पास किसान तुलछाराम जाखड़ का गणित ज्ञान देखकर हेरान होने के सिवा कोई चारा नहीं रहता है. आप कहिये कि 865 का दस तक पहाड़ा बोलना(मल्टीप्लाई करना) है, वे बोल देंगे. ऐसे कोई भी संख्या जो एक लाख तक है, आप बोलेंगे और तुलछाराम जी उसकी दस तक की गिनती फ्लोव में बोल देंगे. आप लाखों की संख्या बोलते रहिये, वे जोड़ देंगे. आप किसी भी लंबी संख्या का वर्गमूल(स्क्वायर रूट) पूछिए, वे बता देंगे. बस आप आँखें फाड़ फाड़ कर उनकी तरफ देखते रहिये. कई बार उनके बारे में अखबार में पढ़ा था, कई बार उनसे मुलाक़ात भी होती रहती है पर उनसे तसल्ली से रूबरू नहीं हो पाया था. आज उनके गाँव लाम्पोलाई में शाम को एक हथाई में बैठा था तो उनके गणित के ज्ञान की एक एक परत ऐसी खुलने लगी कि मुझे ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट के फलसफे और प्रमेय याद आने लगे. आज वार्तालाप बीच में ही छोड़ना पड़ा. समय का अभाव था. उन्हें फिर आने का वादा कर आ गया. मैंने चलते चलते जाखड़ साहब से पूछा कि आप आगे क्यों नहीं पढ़े तो एक मार्मिक कहानी बता गये. बोले कि मेरे दादा को उनके गुरु ने बताया कि इस बच्चे के सिर पर अगर हल्की चोट भी लग गई तो यह खत्म हो जायेगा. दादा को पता था कि उन दिनों स्कूल में बच्चों की पिटाई आम बात थी. बस स्कूल छुडवा दी. लेकिन दिमाग की कसरत घर पर ही चालू रही. दिमाग आज भी उसी गति से गणनाएं कर रहा है. अगर स्कूल में पढ़ाई चालू रहती तो पता नहीं भारत को कैसा वैज्ञानिक मिलता. भारत का सौभाग्य कहाँ ! कई बार स्थानीय अखबारों ने उनकी कहानी छापी है पर अभी तक वे देश दुनिया की ख़बरों में नहीं आये हैं. बोलते मारवाड़ी में है, पर संख्याएँ उनके लिए खेल हो गई हैं. जिस प्रकार मेरे सामने गुणा और जोड़ कर रहे थे, मेरी तो आगे सवाल करने की हिम्मत ही नहीं पड़ी. आपको तसल्ली करनी हो तो लाम्पोलाई गाँव (राजस्थान के एकदम बीच में ) जाकर 65 वर्ष के तुलछाराम जी से जरूर मिलिएगा. इस क्षेत्र में लोग उनको कंप्यूटर के नाम से जानते हैं ! 'अभिनव राजस्थान अभियान'- जयपुर से गाँव तक - अच्छाई की मार्केटिंग. हम कोशिश करेंगे कि तुलछाराम जी की चमत्कारिक कहानी दुनियाभर में पहुंचे.

Friday 4 October 2013

अमृतसर जाएं तो इस बीस फुट के विरासती मंजे पर जरूर बैठें

अमृतसर.  जूट की रस्सी से बुनी इस चारपाई की लंबाई बीस फुट और चौड़ाई सोलह फुट है। इस पर पचास लोग आराम से बैठ जाते हैं। प्रजापत कुम्हार बिरादरी ने इस अनमोल धरोहर को सात दशकों से सहेज कर रखा है। इसे आप शहर के बीचोबीच स्थित पुराने टेलीफोन एक्सचेंज के पास रूढ़ सिंह की हवेली के सामने देख सकते हैं।  जगवीर सिंह कहते हैं कि यह विशाल चारपाई हमारे बुजुर्गों की निशानी है। इस पर बैठ कर ताश खेलने, शराब, तंबाकू या बीड़ी-सिगरेट पीने की सख्त मनाही है।

Monday 9 September 2013

चन्द्र शेखर लोहुमी : उत्तराखण्ड के महान वैज्ञानिक

चन्द्र शेखर लोहुमी (1904-1984)
cs_lohimi
स्व० चन्द्र शेखर लोहुमी जी
अल्मोड़ा जिले के सतराली गांव के एक गरीब किसान श्री बचीराम लोहनी के घर वर्ष १९०४ में जन्मे चन्द्र शेखर लोहुमी जी ने मात्र हाईस्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की थी, इन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा से वह कर दिखाया, जो साधन संपन्न वैज्ञानिकों के लिये एक चुनौती बन गया।
लोहुमी जी ने १९३२ में प्रथम श्रेणी में मिडिल की परीक्षा पास की और उसके बाद अध्यापन को अपना पेशा बनाया। लोहुमी जी ने पढ़ाई की एक सुगम विधि भी तैयार की और उसी विधि से छात्रों को पढ़ाने लगे। इससे प्रभावित होकर तत्कालीन शिक्षा मंत्री (१९३२) कमलापति त्रिपाठी जी ने इन्हें ५०० रु० का अनुदान दिया और १९६४ में इन्हें राष्ट्रपति के हाथों इन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला।
१९६७ में इन्होंने लेन्टाना (कुरी घास) को नष्ट करने वाले कीट की खोज कर तहलका मचा दिया। १९७८ में जैव विज्ञान चयनिका के अंक १ में इन्होंने लिखा था कि “१८०७ में कुछ पुष्प प्रेमी अंग्रेज अपने साथ मैक्सिको से एक फूलों की झाड़ी साथ लाये थे। इसके कुछ पौधे नैनीताल और हल्द्वानी के पास कंकर वाली कोठी में लगाये गये थे। शनैः-शनैः यह झाड़ी पूरे भाबर क्षेत्र और पहाड़ों में भी फैल गई। आज तो स्थिति यह है कि लेन्टाना उत्तराखण्ड के घाटी इलाकों में भी फैल गया है। हजारों एकड़ जमीन इस घास के प्रभाव में आने के कारण कृ्षि विहीन हो गई है” लेन्टाना बग के कीट को खोजने के लिये मास्टर जी ने ४ साल तक अथक प्रयास किया, इसके लिये उन्होंने २४ किस्म के अनाज, ६ फूलों, १८ फलों, २३ तरकारियों, २४ झाड़ियों, ३७ वन वृक्षों और २५ जलीय पौधों पर परीक्षण किया। इनके इस शोध को विश्व भर के सभी कीट विग्यानियों और वनस्पति शाष्त्रियों ने एकमत से स्वीकार किया। इस जैवकीय परीक्षण के लिए आई०सी०ए०आर० (इण्डियन काउन्सिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च) ने इन्हें १५००० का किदवई पुरस्कार देकर सम्मानित किया। प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने ५००० और पंतनगर वि०वि० ने १८००० का नकद पारितोषिक दिया। पन्तनगर वि०वि० ने पांच साल तक १०० रुपये की मासिक सहायता भी दी और कुमाऊं वि०वि० ने भी १००० का पारितोषिक दिया।
Pankaj375
लेन्टाना की झाड़ी और फूल
लेन्टाना को जैविक ढंग से नष्ट करने की जानकारी देने के लिये इन्हें लखनऊ और दिल्ली से टी०वी० और रेडियो पर वार्ता के लिये बुलाया गया। पन्तनगर, कुमाऊ, जे एन यू, पूसा इंस्टीट्यूट, विवेकानन्द अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा ने भी इन्हें परीक्षण से प्राप्त उपलब्धियों की जानकारी लेने के लिये आमंत्रित किया। १९७४ में बेसिक शिक्षा परिषद ने इन्हें परिषद का सदस्य मनोनीत किया। १९७६ में जिलाधिकारी नैनीताल और अल्मोड़ा ने इनका नाम पद्मश्री पुरस्कार के लिये नामित किया, लेकिन यथासमय संस्तुति न पहुंचने के कारण वह इस पुरस्कार से वंचित रह गये।
लोहुमी जी ने सुर और लोनिया व ईटवा (ईट-पत्थर) पर १९७५ से अन्वेषण कार्य प्रारम्भ किया, इस विषय पर आपका विस्तृत लेख ८ अक्टूबर, १९७८ के साप्ताहिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुआ। मक्के की डंठल की राख पर आपने २ साल तक शोध किया, उस पर योजना भेजी, योजना विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग, उ०प्र० से स्वीकृत हो गई, यह योजना अभी पंतनगर वि०वि० में चलाई जा रही है। ११ अगस्त, १९७६ को सप्रू हाउस, दिल्ली में भारतवर्ष के वैज्ञानिकों का सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में “जैवकीय विधि से नियंत्रण तथा विज्ञान कैसे लिखा जाय” विषय पर इन्होंने वैज्ञानिकों के सामने अपने विचार रखे। सभी ने इनकी मुक्त कंठ से सराहना की। तिपतिया घास और तुन की लकड़ी पर भी इनके प्रयोग सफल रहे। मधुमक्खी पालन पर भी आपने अन्वेषण किया।
लेन्टाना बग पर आपने एक पुस्तक लिखी है, जो इण्डियन काउन्सिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च, दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई है। यह पुस्तक देश और विदेश की भाषाओं में भी प्रकाशित हुई है। लोहुमी जी जैसे विज्ञान और अंग्रेजी से अनभिज्ञ व्यक्ति ने वह कर दिखाया, जो साधन संपन्न वैज्ञानिक नहीं कर सके।
(स्व० लोहुमी जी का दुर्लभ चित्र उनके भतीजे श्री मुकेश लोहनी जी ने उपलब्ध कराया है, इस हेतु मेरा पहाड़ उनका हृदय से आभार प्रकट करता है।)


Read more: http://www.merapahad.com/chandra-shekhar-lohumi-great-scienctist-from-uttarakhand/#ixzz2eOmgg3Ne

Thursday 5 September 2013

Ingenuity on a Shoe String

White sticks, dark glasses, a guide dog if they’re lucky – the vision impaired have made do with crude tools to navigate the external world for decades. They’ve coped with danger and inconvenience, frustration and helplessness, and reconciled to a life of dependence. Now, something as routine as a shoe holds out the promise of safety, confidence and independence for millions of people.

The Challenge

With an engineering degree and a passion for tinkering with novel interfaces – and systems that enable more natural forms of interaction that just keyboard and mouse – IT engineer Anirudh Sharma decided to turn his attention to finding a tech solution to the navigation challenges of the visually impaired. But he was clear he didn’t want to rely on their sense of hearing, which is what conventional aids often do. ‘I wanted a more intuitive design involving the sense of touch,’ he says. To understand the challenges of navigating a world without vision, Anirudh studied the commuting patterns of two visually impaired Bangalore businessmen, Chandrashekhar Raju and Santosh Kejriwal.

The Idea

Le Chal, an ingenious solution that ticks all the boxes – scalable, effective and cost-effective. The genius is in the simplicity of the idea – to get ‘Haptic’ feedback (relating to the sense of touch) from a user’s shoes. The user spells out their destination on a GPS-based phone that used a specially-designed app (any Android-based phone is fine); a combination of three ubiquitous technologies – Bluetooth, Google Maps and GPS do the rest. Once the GPS establishes the user’s location, Google Maps comes into play and finds directions for the destination. Bluetooth is used to establish ‘communication’ between the phone and shoes, and the user is on his way – vibrators on different sides of the shoes vibrate, indicating whether you need to go left, right or straight ahead.
There was another challenge – Anirudh wasn’t an expert at making shoes; he also didn’t want to limit production to a particular brand or company. His design, therefore, needed to be compatible with generic shoes. The ingenuity of his solution is that it involves installing a circuit board in the heel and vibrators on each side of a shoe, and can be done on any existing pair, at a nominal cost of approx Rs 2000. It’s waterproof, and a proximity sensor in the front of the shoe offers an added bonus: alerting the user to obstacles up to 10 ft away.

The Innovator

A 24-year-old Bangalore boy who till recently worked at HP Labs, Anirudh studied IT Engineering and loved college because it brought him into contact with others equally passionate about  design, tech and startups. Recently he, and like-minded innovator Krispian Lawrence, an electronics engineer from the University of Michigan, set up Ducere Technologies, a startup based in Hyderabad that explores their shared passion for design, products and systems. ‘We aren’t in the business of making thousand-dollar shoes – that’s not what we do,’ he says. ‘We don’t want it to cost more than a good pair of shoes, for the idea is to maximise its reach among the millions who actually need it.

The Impact

He wasn’t sure Le Chal was a good idea till he built an initial prototype and showed it to people around him, which triggered their interest. He needn’t have doubted himself – the Indian edition of MIT’s magazineTechnology Review recently named him Innovator of the Year under 35 for 2012; the award recognises those innovators whose work is likely to have the highest impact locally and globally. The prototype for Le Chal has gone through various iterations as tests progress, with over 25 visually-impaired users part of the testing process; the final goal of freezing tech specs and initiating manufacturing is now much closer.

The Way Forward

He’s hoping to take a sabbatical once Le Chal’s tech specs are frozen and manufacturing initiated, and head to MIT for an interdisciplinary course on Media Technologies. Long-term though, he intends for his research focus to stay the same: novel new media systems, prototyping and computer vision, though fields to which it is applied could vary from assistive technologies to sports to virtual reality.