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Saturday 4 April 2015

पबनावा रेलवे स्टेशन एक सामाजिक समरसता की अटूट मिसाल

 गांव पबनावा की 36 बिरादरियों के लोगों ने साबित कर दिखाया है कि जज्बा हो तो कुछ भी कर सकतेहैं। पबनावा जसमहिंद्र रेलवे स्टेशन काफी अर्सें से कई समस्याओं से जूझ रहा था। सबसे बड़ी समस्या थी नीचे प्लैटफॉर्म की। रेलगाड़ी से उतरते वक्त गिरने का खतरा बना रहता था। कई लोग गिरे भी। इस बारे में ग्रामीणों ने कई बार अफसरों को शिकायत दी। लेकिन समाधान नहीं हुआ।ग्राम जन समिति के प्रधान 85 साल के लाला हरी राम ने बताया कि गत वर्ष 31 अक्तूबर को रेलवेके चीफ इंजीनियर दिल्ली से पबनावा रेलवे स्टेशन का दौरा करने आए हुए थे। गांव वालों ने उन्हें रेलवे स्टेशन की समस्याओं के बारे में बताया। इस पर चीफ इंजीनियर ने ही उन्हें राय दी कि गांव वाले अपने फंड से स्टेशन प्लैटफॉर्म को ऊंचा कर सकते हैं।
गांव के सरपंच ने पंचायत बुलाकर सर्वसम्मति से स्टेशन का विकास करवाने का निर्णय लेते हुए ग्रामजन समिति का गठन कर दिया। इसमें सभी बिरादरी से 14 सदस्यों की कमेटी गठित की गयी। उसकी देख-रेख में काम शुरू कर दिया गया। गांव की सभी बिरादरियों के लोगों ने सहयोग राशि दी।लाला हरी राम ने बताया कि गांव के सहयोग से स्टेशन पर 1700 फीट लंबी चारदीवारी और रेलगाड़ी से उतरने के लिए ऊंचा कोपिंग बनाया गया है। अब यात्रियों को गाड़ी से उतरने-चढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आती। प्लैटफॉर्म को ऊपर उठाने में 700 ट्राली मिट्टी की डाली गयी हैं। इसके अलावा रेलवे की ओर मुहैया करवाई गयी रेलिंग को गांव वाले अपने खर्च पर लगवा रहे हैं। पूरे काम पर करीब 10 लाख खर्च हो चुके हैं।

शहीद कैप्टन जसमहिंद्र के नाम पर है स्टेशन का नाम
कमेटी के प्रधान लाला हरी राम ने बताया कि 1965 की लड़ाई में शहीद कैप्टन जसमहिंद्र की यादमें सरकार ने पबनावा रेलवे स्टेशन का नाम पबनावा जसमहिंद्र रेलवे स्टेशन रखा था। आज भी शहीद जसमहिंद्र सिंह समूचे गांव व युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।

रणाराम एक विलक्षण जीव प्रेमी

जिले के कानेलाव गांव के रणाराम खेतीहर मजदूर है। उन्होंने ने तो पशु-पक्षियों को नियन्त्रित करने के लिए प्रशिक्षण लिया है और ना ही वे उनके साथ रहे है। रणा प्यार की भाषा जरूर जानते है, तभी तो उनकी एक आवाज पर गांव के तालाब के कछुए दौड़े चले आते है।
संवेदनशील कछुए जो हल्की सा आहट पर अपने खोल में छिप जाते हैं, रणा के आते ही बेखौफ होकर चहलकदमी करने लगते हैं। इस दौरान काफी संख्या में ग्रामीण वहां मौजूद रहते है लेकिन कछुए उनसे नहीं डरते।

पांच साल की मेहनत

रणाराम बताते है कि ये सिलसिला करीब पांच साल पहले शुरू हुआ। एक सुबह वह गांव के आखरिया के निकट स्थित तालाब में रोटी लेकर गया तो उसकी आवाज सुनकर काफी कछुए बाहर आ गए। उसने हाथों से कछुओं को रोटी खिला दी। फिर तो एेसा सिलसिला चला जो अभी तक बरकरार है। अब तो तालाब में रहने वाले सारे कछुए उसके दोस्त बन गए।

गांव के बड़े तालाब में स्थिति ये है कि कछुए सुबह गांव के चौक की ओर स्थित किनारे पर उसका इंतजार करते हैं। अलसुबह वह घर से रोटियां बनाकर लाता है। जैसे ही तालाब किनारे पहुंचकर कछुओं को आवाज लगाता है तो तालाब में जगह-जगह से कछुए भागे चले आते हैं। कुछ ही देर में तालाब किनारे कछुए ही कछुए नजर आने लग जाते हैं।

दिनचर्या में हुआ शुमार

रणाराम मीणा नियमित रूप से घर से आठ से दस रोटी बनाकर लाता है और कछुओं को खिलाता है। कछुओं से उसकी दोस्ती का आलम यह है कि थोड़ी देर में तालाब किनारे कछुओं का झुण्ड लग जाता है। दोस्ती के इस अनूठे नजारे को देखने के लिए गांव के लोग भी एकत्र हो जाते हैं।

केवल रणा से प्रेम

रणा जब किसी काम से गांव से बाहर जाते हैं तो उनके बेटे या परिवार के अन्य सदस्य को जिम्मेदारी सौंप कर जाते हैं। हालांकि, उनका बेटा जब रोटी खिलाने जाता है तो कछुए तालाब से बाहर नहीं आते। वो तालाब के पानी में ही रोटी डालकर चला जाता है।

उमेश वर्मा एक भूकम्प वैज्ञानिक

इस साधारण से दिखने वाले चेहरे को नजरअंदाज़ करने जा रहे हैं तो जरा दो मिनट रुकिए और इस साधारण चेहरे के पीछे छूपे इस असाधारण व्यक्ति के बारे में जरा जान लीजिये !

इनका नाम है उमेश वर्मा,पटना के महेन्द्रू के रहने वाले हैं,मोतिहारी के महारानी जानकी कुंवर कन्या उच्च विद्यालय में विज्ञान शिक्षक हैं,इन्होने एक खास कैलकुलेशन के जरिये एक नायाब खोज की है, ऐसी खोज जिसके बारे में दुनिया के किसी व्यक्ति ने सोचा तक नहीं! इन्होंने विमानों के उड़ान हेतु सहायता करने वाली डाटा उपलब्ध कराने वाली संस्था से प्राप्त कुछ डाटा व इससे सम्बंधित गणितीय कैलकुलेशन से भूकंप के पूर्वानुमान की एकदम सटीक जानकारी प्राप्त करने का दावा किया है.
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अब तक करीब एक दर्जन विश्व भर में आये भूकम्पो का एकदम सटीक पूर्वानुमान कर घोषणा कर चुके हैं, कई देशों से बुलावा पर बुलावा आ रहा हैं, लेकिन देशभक्ति का पागलपन इन्हें इस तरकीब को किसी अन्य देश के साथ साझा करने से रोक रहा है, इन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन्नोवेटिव कौंसिल का सदस्य बनाया है,जिसकी वजह से इन्हें यदा कदा पटना बुलाया जाता है लेकिन प्रतिभा के धनी इस व्यक्ति की प्रतिभा को उचित सम्मान व सहायता की आवश्यकता है,जिसकी बदौलत ये भूकंप से होने वाली अरबो रुपये की क्षति को अपने पूर्वानुमान की वजह से कम कर सकें, लेकिन रुकिए इनकी प्रतिभा सिर्फ पूर्वानुमान तक ही सिमित नहीं है,इन्होने भूकंप से फायदा उठाने की भी तरकीब विकसित की है, इनके मुताबिक़ एक बार के भूकंप से 200 मेगावाट तक की बिजली बड़े आराम से पैदा की जा सकती है.