इस बार मध्यप्रदेश यात्रा के दौरान जयपुर से दोपहर दो बजे निकल कर रतलाम जाने के निश्चय किया तक़रीबन छह सौ किलोमीटर का सफर था साथी अमित जो सुबह नौ बजे से गाड़ी चला रहा था ने कहा चलिए सर देख लेंगे। जब पार्टनर ने कहा देख लेंगे तो मैंने भी कह दिया देख लेंगे। खैर गिरते पड़ते चित्तौड़गढ़ के सोमानी रेस्टोरेंट पर पंद्रह रूपये का पापड़ खाने का अनुभव लेते हुए सुबह आठ बजे रतलाम शहर जा पहुंचे और अमित ने एक होटल वाली गली में गाडी घुसा दी। उस समय में ऊंघ रहा था पर जैसे ही गाडी घूमी तो थोड़ी मेरी नींद खुल गयी और एक अजीब सा शोर मेरे कानों में सुनाई दिया। मैंने उस एक नजर घुमाई तो देखा पुलिस की पीसीआर खड़ी है , कुछ सीटियों की आवाजें सुनाई पड़ रही हैं। मैंने मन में सोचा "सुसरा लगै है रौला हो ग्या" और बिना कोई ध्यान दिए मैँ होटल की सीढ़ियां चढ़ने लगा। कमरा लेकर सो गया, शाम को छह बजे नहा कर घूमने के इरादे से नीचे उतरा तो देखा बाहर सुबह से भी ज्यादा भीड़ भड़क्का और रौला कटा हुआ था। पुलिस की पीसीआर भी वहां खड़ी हुई थी। मुझे लगा के भाई लगता है कोई कसूता ही प्रोग्राम सेट हो गया है । उत्सुक भाव से आगे बढ़ा तो शोर शराबे वाली जगह से कोई सौ मीटर दूर से ही लोगों की लाइन जैसी स्थिति दिखी और पास जा कर देखा दिमाग घूम गया। यह एक चाय की दुकान थी जिसके दोनों और सौ सौ मीटर के इलाके में लाइन लगी थी और लोग चाय लेकर वहीँ पर भजिये , पोहा , वडा पाँव , समोसे का आनंद ले रहे थे। तकरीबन दस के आसपास पर्सनल सिक्योरिटी गार्ड सादी वर्दी में ट्रैफिक और भीड़ को नियंत्रित करने में मदद कर रहे थे। दुकान का नाम था बजरंग टी स्टाल। वास्तु के नियमों की ऐसी तैसी करती दूकान के मालिक है दशरथ भाई सुपुत्र राम लाल जिनकी दूकान के लम्बाई सात मीटर , आगे की चौड़ाई तीन मीटर और पीछे की चौड़ाई मात्र एक मीटर थी। बीस लीटर के पतीले में चाय का एक बैच तैयार किया जाता है। प्रत्येक गर्म पतीले को उठने के लिए चारपाई का पावा बड़ी बेदर्दी से ठोका गया है । पतीले में ठुके हुए लकड़ी के पावे की मदद से पतीला कारीगर के हाथ में आसानी से आ जाता है। चाय को छानने के चक्कर से बचने के लिए कपडे की एक पोटली में चाय की पत्ती बाँध कर पतीले में लटका दी जाती है। पांच रुपये की हाफ चाय जिसे कटिंग कहा जाता है और दस रुपये की फुल चाय। बिना पैसे दिए पोहा लो चाय लो , एक लो या दस लो कोई पैसा नहीं मांगता। साइड में खड़े हो कर आराम से खाओ और चाय पियो। मन करे एक और ले लो। उसके बाद जा कर गल्ले पर खड़े दशरथ भाई या उनके बेटे को बताओ क्या क्या खाया पिया , वो पैसे बताएँगे और बस हो गया हिसाब। तीस रुपये में आप लगभग हर एक आइटम टेस्ट कर सकते हैं। क्या पुलिस वाले , क्या दुकानदार और क्या स्टूडेंट सुबह साढ़े चार बजे से दिन भर और रात ग्यारह बजे तक ऐसे ही मेला लगा रहता है। दशरथ भाई छटी कक्षा पास करके काम धंधे की तलाश ,में रतलाम आ गए। कई छोटे मोटे काम आजमाने के बाद तीस वर्ष पहले एक आड़ा टेढ़ा जमीन का टुकड़ा ले लिए और तीन की छत रख कर बजरंग बली जी के नाम से चाय बेचने लगे। तब से ले कर आज तक सिर्फ गुडरिक चायपत्ती ही प्रयोग करते हैं । चाय में पानी कभी नहीं मिलाया जाता सिर्फ दूध में पत्ती और ईलायची। सुनील और विकास इनके दो बेटे हैं जो बारी बारी से दूकान पर गल्ले की ड्यूटी देते हैं। चाय देने और गिलास उठाने के लिए 10 लड़कों की टीम है। कुल मिला कर एक छोटी से दूकान जिसमें बैठने की कोई जगह नहीं है और दूकान मालिक भी नौ घंटे खड़ा ही रहता है कम से कम बीस परिवारों का पेट भर रही है। दुकान में चारों और सात सी सी टीवी कैमरे लगाये गए हैं ताकि भीड़ का फायदा उठा कर कोई झोल झाल ना कर सके। प्रिय पाठकों दशरथ भाई का मोबाइल नंबर 9179787303 है । आप कभी भी रतलाम जाएँ तो दशरथ भाई की चाय जरूर पी कर आएं। उनकी दूकान रेलवे स्टेशन रतलाम से मात्र दो सौ मीटर पर स्तिथ है।
बजरंग रेस्टोरेंट का दृश्य सामने से सुबह छेह बजे
सी सी टी वी डिस्प्ले
दशरथ भाई की टीम
दशरथ भाई का चित्र
No comments:
Post a Comment