आज हम बात करते है एक ब्रांड के सुपरब्रांड बनाने के सफ़र के बारे में
| सबसे पहले बात करते हैं “ब्रांड” शब्द के बारे में | दोस्तों ! आपने महसूस भी
किया होगा कि किसी भी ब्रांड का नाम लेते ही उस ब्रांड का लोगो, प्रोडक्ट और उसकी
लोकप्रियता का दृश्य हमारे आँखों के सामने उभर आता है | आपने देखा होगा कि पुराने
जमाने में ब्रांड का मतलब होता था पहचान का निशान | पहले लोग अपनी वस्तुओं पर
निशान लगाकर पहचान चिन्ह बनाते थे और यहाँ तक अपने पशुओं को पहचानने के लिए भी
गर्म लोहे से पशुओं के शरीर पर निशान बना दिया जाता था, फिर 1827 से ब्रांड शब्द
का इस्तेमाल बिजनेस की दुनिया में शुरू हुआ | तब से ब्रांड का मतलब हुआ एक अलग
पहचान ! खासियत ! दूसरों से भिन्नता ! अनूठापन ! आज ब्रांड का अर्थ है ग्राहक के
दिमाग में कंपनी या प्रोडक्ट की अलग पहचान | हर एक ब्रांड की एक कहानी होती है और
एक वादे पर खत्म होती है | इसी प्रकार हर
ब्रांड के पीछे एक प्रोडक्ट होता है और उस प्रोडक्ट के पीछे एक इंसान होता है |
तो आइये ! आज बात करते हैं आदिदास ब्रांड की जिसका प्रोडक्ट है
स्पोर्ट्स शू और उसे बनाने वाले का नाम है एडोल्फ डैस्लर | आदिदास ब्रांड के पीछे
दो भाइयों की मेहनत है | बाथरूम में बैठकर जूते बनाने से शुरू हुआ ये सफ़र आज पूरी
दुनिया में पहुँच चुका है | आज एडिडास ब्रांड का हर सामान बनता है | लेकिन एडिडास
ब्रांड का मुख्य प्रोडक्ट है स्पोर्ट्स शूज | जर्मनी के एक छोटे से कसबे में रहने वाले
एडोल्फ डैस्लर ने एक सपना देखा कि दुनिया का हर खिलाड़ी उन्हीं के जूते पहनकर खेलें
| सपना इतना बड़ा था कि आज तक पूरा नहीं हो पाया है | पर ऐसा कोई खेल नहीं जिसमें
एडिडास का नाम जुड़ा ना हो |इसके बिना कोई भी खिलाड़ी मैदान पे नहीं उतर सकता | एडी
अपने भाई रुडोल्फ़ के साथ मिलकर बाथरूम में हाथ से जूते बनाते थे | उन्होंने कभी
नहीं सोचा होगा कि एक दिन ये बाथरूम प्रोडक्ट दो बड़ी कंपनी में बदल जायेगा | उनका
एक ही लक्ष्य था ग्राहकों की सुविधा |
उन्होंने खिलाड़ियों से मिलकर सलाह लेना शुरू किया और लोगों की सलाह पर
ही उन्होंने दुनिया का पहला स्पाइक्स जूता बनाया | 1927 में दोनों भाइयों ने
कारखाना खोला | 1928 में एम्स्टर्डम ऑलंपिक में
पहली बार ऑलंपिक खिलाडियों ने डैस्लर के जूते पहने | इसके बाद 1936 के बर्लिन
ऑलंपिक में जेसिन ओवेन्स ने यही जूते पहनकर चार गोल्ड मैडल जीते | बस फिर तब के
बाद से एडिडास को पैर मिल गए और वह अपने आप दौड़ने लगा | स्पोर्ट्स वर्ल्ड एडी
डैस्लर के जूतों का दीवाना हो गया | उस समय एडिडास को डैस्लर के नाम से जाना जाता
था और यह नाम 1949 में रजिस्टर किया गया | डैस्लर एक गोल्डन शूज बन गया | लेकिन
कहते हैं न ! अच्छा वक्त हमेशा नहीं रहता | स्पोर्ट्स मुकाबले की तरह दोनों भाइयों
में विवाद हो गया | 1948 में यहीं से दुनिया को दो कम्पनीज़ मिली | एडोल्फ़ डैस्लर
ने एडिडास और रुडोल्फ़ ने प्यूमा के नाम से बिजनेस शुरू किया | एडिडास अब भी
स्पोर्ट्स शूज में बादशाह है | 1987 में एडी डैस्लर ने वरीसो को कंपनी बेच दी | पर
डैस्लर का नाम अब भी बाकी है | कंपनी को बेचना इसलिए भी पड़ा क्योंकि सन् 1978 में
एडी डैस्लर की मृत्यु हो गयी थी | जिस समय एडोल्फ़ की मृत्यु हुई उस समय एडिडास हर
साल 4.5 करोड़ जूते बना रहा था |
स्पोर्ट्स वर्ल्ड में अपना योगदान देने के लिए उन्हें अमेरिकन
स्पोर्टिंग गुड्स इंडस्ट्री हॉल ऑफ़ फेम में शामिल किया गया | पहली बार यह सम्मान
एक गैर सरकारी को मिला था | सन् 2006 में एडिडास ने 11.8 अरब डॉलर में
प्रतिस्पर्धी कंपनी रीबोक को खरीदकर अपनी स्थिति मजबूत कर ली | एडी डैस्लर की
एकाग्रता और लगन की बदौलत नामुमकिन भी मुमकिन हो गया | शायद इसलिए 2004 में एडिडास
की टैग लाइन रखी गयी : “ इम्पॉसिबल इज़ नथिंग” |
No comments:
Post a Comment