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Thursday 17 June 2021

काला धन पीने की मशीनों के कलपुर्जे

कालाधन भारत की ज्वलंत समस्या है जिसके बारे में हरेक भारतीय बात शुरू तो बड़े उत्साह जे साथ करता है लेकिन जल्द ही वो बुझ जाता है क्योंकि उसे पता है कि कुछ होना जाना नही है।

कुछ वर्ष पहले कालाधन वापसी जे नाम पर देश मे एक बड़ा आंदोलन हुआ और एक जुमला चलाया गया कि सभी भारतीयों को पंद्रह पंद्रह लाख रुपये मिल सकते हैं। 

लोगों ने भी बस किसी एक उम्मीद में बड़ा फैंसला ले लिया और किसी के हाथ कुछ खास लगा नही है और कोई काला धन देश ।के वापिस आया नही है।

आखिर जस देश के लोगों को हुआ क्या है? 

कुछ सुधार क्यों नही होता है?

एक दशक से भी पुरानी बात है मैं एक दफ्तर में काम किया करता था और वहां बहुत सारे डिवीजन हुआ करते थे सभी डिवीजन के डिविजनल हेड आंतरिक प्रोमोशन से आगे बढ़ कर अपने अपने विभागों को लीड किया करते थे।

लेकिन एक डिवीजन ऐसा था जहां प्रथा कुछ अलग थी वहां डेपुटेशन पर विभागाध्यक्ष लाने का डिज़ाइन था और इस डिवीजन का नाम था कंस्ट्रक्शन। एक मोटे लाला जी इसके हेड थे और हमेशा स्माइलिंग चेहरा और बड़ी तेज चाल से वो चला करते थे उनके चेहरे के हावभाव भी सीमेंट की तरह फिक्स रहते थे।

मतलब नमस्ते लेने से पहले और नमस्ते लेने के बाद भी कोई ख़ास बदलाव मैंने कभी देखा नही। सभी जानते थे कि पूरे विभाग में जबरदस्त गर्मी का माहौल रहता था। लोगों का आना जाना और देर शाम तक चलने वाली मीटिंग्स।

हम लोग काल्पनिक बातों के साथ वहां आने जाने वाले लोगों की शक्लें देख कर कहानियां बना लिया करते थे और बस फिर कभी लंच में और आगे पीछे वो कहानियां डिसकस करके अपना मनोरंजन किया करते थे।

एक दिन लंच खत्म ही हुआ था और मैं धूप सेकने के लिए दफ्तर वाली गैलरी को क्रॉस करके छज्जे की ओर गया हुआ था। हमारे दफ्तर में एक बड़ा सा स्लान्टिंग छज्जा था जहां पचास सौ आदमी भी खड़े ही जाएं तो फिर भी जगह बच जाए।

वहां अक्सर लोग खड़े होकर अपना मूड फ्रेश कर लिया करते थे मैं तो अक्सर कोई बड़ी नोटिंग बनाने से पहले वहीं खड़े होकर ऑक्सीजन पिया करता था और फिर प्रोपोज़ल लिखने में जुटा करता था।

मैं वहां खड़ा ही था कि मोटे लाला जी आये और मुझे कहा हट जा हट जा और दीवार पर चढ़े और सीधे दूसरे फ्लोर से पहले फ्लोर के छज्जे पर कूद गए। जब तक मैं नीचे झांकता तो वो पहले फ्लोर से कूद कर ग्राउंड फ्लोर और फिर ग्रिल वाली दीवार कूद कर परिसर से बाहर मुख्य सड़क पर आ गए और एक बाइक वाले से लिफ्ट लेकर आगे निकल गए।

सब कुछ सेकेंडों के हिसाब से हुआ और उनके पीछे पीछे दौड़ते हुए उनकी ब्रांच के एक दो लोग भी आये लेकिन तब तक वो आंखों से ओझल हो चुके थे और मैं भयंकर शॉक में था के एक टोटली अनफिट आदमी इतनी बड़ी कला भी दिखा सकता है।

जैसे ही मैं अपनी सीट पर जाने के लिए अंदर पहुंचा तो वहां शोर मचा हुआ था कि विजिलेंस वालों का छापा पड़ा है और लाला जी को इण्टरकॉम पर फ़ोन आ गया था कि विजिलेंस वाले गलती से एक फ्लोर आगे पीछे हो गये और गलत केबिन में घुस गए इतनी देर में वो सही जगह पहुंचते और इण्टरकॉम पर बात सही जगह पहुंच गई और सब्जेक्ट को यह पता था कि हाथ मे नही आने के लिए तूने कौन सा रुट अख्तियार करना है।

बस सेकंडों के हिसाब से लाला जी तो निकल गए और पीछे रह गयी बातें जब वो विजिलेंस वाले आये तो वो भी माथा पीट रहे थे क्योंकि उन्होंने ऊपर से नीचे के रास्ते हर जगह आदमी खड़े किए हुए थे बस एक वही जगह ऐसी थी जहां उन्होंने कोई बंदोबस्त नही किया था।

खैर वो वापिस चले गये और दफ्तर के लोग मेरे से पूछ रहे थे  क्योंकि सिर्फ दो तीन लोग ही थे जिन्होंने यह करिश्मा अपनी आंखों से होते हुए देखा था। 

मैं दिन भर यह सोचता रहा कि यदि लाला जी पकड़े जाते तो उनकी नौकरी में गधे हांड जाते और लेकिन वो कितने दिन और भागेंगे। मुझे मेरे विभाग के अनुभवी अधिकारियों ने बताया कि रंगे हाथ न द स्पॉट पकड़े जाने की बात अलग होती है। शायद कुछ न हो।

अगले दिन ही सुबह 11 बजे एक ऐसी खबर आई जिसने मुझे अंदर तक से हिला दिया। वो खबर यह थी कि अगले दिन सुबह ही लाला जी ने गुड़गांव में किसी सरकारी प्रोजेक्ट जो हज़ारों करोड़ कीमत का था में बतौर विभागाध्यक्ष जॉइन कर लिया है।

मुझे फिर अनुभवी लोगों ने बताया कि ऐसे बहादुर लोग पॉलिटिशियन्स  की पहली पसंद होते है। इन्हें कमाऊ पूत कहकर ढोल ढक कर रखे जाते हैं।

कालेधन की मशीन के सभी पुर्जे ऐसे ही होते हैं।

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