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Friday 27 November 2015

तुराखिया ब्रदर्स : इनसे सीखिए दुनिया में छा जाना

कॉलेज की उम्र होती है अपने सपनों को सही दिशा देने की। दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करते हुए करियर की राह चुनने और उस पर आगे बढ़ने की। ऐसी ही एक राह तुराखिया ब्रदर्स ने भी कॉलेज की पढ़ाई के दौरान जब चुनी तो उनके दोस्तों को अजीब लगा। लेकिन अपनी मेहनत के बल पर तुराखिया ब्रदर्स ने कामयाबी की नई इबारत लिखी। उन्होंने एक वेबहोस्टिंग बिजनेस शुरू किया। कुछ ही दिन में उन्हें अमेरिकाचीन और ब्राजील समेत दुनिया के कई देशों से कस्टमर्स मिलना शुरू हो गए। इसी साल उन्होंने अपना बिजनस नैस्डेक पर लिस्टेड एंड्योरेंस ग्रुप को बेच दिया। इसके बाद भी उनके पास इंटरनेट एडवर्टाइजिंग बिजनस और press, website और space जैसे टॉप लेवल डोमेन हैं। दिव्यांक तुराखिया (32) और भवीन तुराखिया (34) की सफलताओं का यह सिलसिला किसी को भी प्रेरणा दे सकता है.

भवीन तुराखिया
भवीन डायरेक्टी ग्रुप के संस्थापक सीईओ हैं और 1998 से लेकर अब तक डायरेक्टी की अभूतपूर्व प्रगति का श्रेय इन्हीं को जाता है। जिसमें छह व्यवसायों के साथ एक ग्लोबल वेब प्रोडक्ट कम्पनी, 20 से ज्यादा उत्पाद, आठ सौ से ज्यादा कर्मचारी और लाखों वैश्विक ग्राहक भी शामिल हैं। इनके कुशल नेतृत्व में रिसेलर क्लब और लॉजिक बाक्सेस इंडस्ट्री लीडर बनीं जिन्हें उनके संबंधित कार्यक्षेत्र में और डायरेक्टी को लगातार एशिया में तेजी से बढ़ती टेक कम्पनी के रूप में डेलाइट और टच ने रखा है। भवीन लगातार अपने विजन, स्ट्रैटजी, इजीनियरिंग और आपरेशन्स से रिसेलर क्लब,लाजिक बाक्सेस, .pw, answerable.com webhosting.info को ऊंचाइयां प्रदान कर रहे हैं।
रिसेलर क्लब और लॉजिकबाक्सेस के जरिये प्रदान की जाने वाली सेवाओं और तमाम अन्य उत्पादों जैसे orderdox, .pw एक सोशल मीडिया के मुख्य आर्किटेक्ट हैं। उन्होंने तमाम तकनीकी पेटेंट्स को लिखा है। उन्होंने एक प्रमुख कोडिंग और प्रतिस्पर्धी मंच codechef  जन्म दिया। उन्होंने डायरेक्टी के सामुदायिक टेक कैम्प की भी शुरूआत की।
1998 में मात्र 18 साल की उम्र में जबकि वह कालेज में पढ़ते थे, उन्होंने डायरेक्टी की स्थापना की जो दुनिया भर के लोगों के लिए वेब प्रोडक्ट और सेवाओं पर आधारित बिजनेस का मंच था। अपने स्कूल और कालेज के सालों को साफ्टवेयर बनाने में, वेब एप्लीकेशन्स के विकास और कम्पनियों से बातचीत में बिताकर वह इस डायरेक्टी को लाए। जिसके पीछे थी वेब इंडस्ट्री के बारे में उनकी गहरी समझ, मजबूत तकनीकी आधार, व्यापारिक कुशलता की चाह और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात विकास की पीछे हटने वाली महत्वाकांक्षा।

भवीन वेब 2.0 लैंडस्केप की महत्वपूर्ण शख्सियत हैं। वह तमाम कालेजों और तकनीकी सेमिनार्स आदि के मुखर वक्ता भी हैं। स्थानीय साइबर क्राइम सेल के वह तकनीकी सलाहकार हैं। उन्होंने कई अवार्ड भी जीते हैं। जिसमें साल के उद्यमी का अवार्ड भी शामिल है। वह ग्लोबल आईसीएएनएन के लगातार दो कार्यकाल तक चेयरमैन भी रहे हैं।
दिव्यांक तुराखिया 
डायरेक्टी के संस्थापक है। उन्होंने डायरेक्टी को एक वैश्विक उद्यम के रूप में खड़े होने में मदद की है। उन्होंने डायरेक्टी के सतत विकास, नवाचार और विस्तार के पीछे असली ताकत के रूप में काम किया है। इन वर्षों मेंवह सक्रिय रूप से डायरेक्टी के तेजी से विकास को बनाए रखने के लिए जरूरी कॉर्पोरेट बुनियादी ढांचे के निर्माण में और पैमाने के प्रबंधन के लिए आवश्यक साझेदारी में लगे रहे हैं। डायरेक्टी को लगातार 2005, 2006, 2007 और 2008 के लिए एशिया में शीर्ष 500 सबसे तेजी से बढ़ते प्रौद्योगिकी कंपनियों के बीच बनाये रखने में उनका अहम योगदान है। 2005 मेंदिव्यांक ने Skenzo की स्थापना की और डायरेक्टी समूह के भीतर एक स्टार्टअप के रूप में और एक वर्ष में दुनिया भर में # 1 सबसे तेजी से बढ़ते डोमेन पार्किंग कंपनी के रूप में उसे स्थापित किया। Divyank डायरेक्टी के मीडिया कारोबार के सभी Media.Net, Skenzo और DomainAdvertising.com आदि की स्थापना की है। वह इन सभी व्यवसायों के दिन-प्रतिदिन के वैश्विक परिचालन की देख रेख करते हैं।
दिव्यांक को ऑनलाइन विज्ञापन और वेब सेवाओं के क्षेत्र में एक प्रर्वतक के रूप में सम्मान दिया जाता है। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन विज्ञापनइंटरनेट यातायात मुद्रीकरणवेब और ईमेल होस्टिंग,एंटी स्पैमऔर डाटा सुरक्षा के क्षेत्र में सबसे उन्नत उत्पादों को सफलतापूर्वक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके पास कई पेटेंट हैं। उन्होंने तकनीकी पत्रिकाओं और उद्योग पत्रिकाओं दोनों के लिए लेखों के रूप में योगदान दिया। वह उद्योग के अग्रणी सम्मेलनों और व्यापार शो में एक सफल वक्ता है।
दिव्यांक ने 9 साल की उम्र में प्रोग्रामिंग शुरू कर दी थी। उन्होंने इंटरनेट के शुरुआती दिनों में एक नि:शुल्क डायल-अप बीबीएस ( बुलेटिन बोर्ड प्रणाली) की शुरुआत की। 1996 में, 14 साल की उम्र में  बड़े कारोबार के लिए इंटरनेट परामर्श के माध्यम से अपना करियर शुरू किया। 1998 में, 16 वर्ष की आयु में उन्होंने डायरेक्टी की स्थापना की। आज उनके नेतृत्व में डायरेक्टी $ 350M का एक उद्यम है। दिव्यांक नियमित रूप से अमरीकाभारत और चीन भर में विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में उद्यमशीलता के बारे में बात करने के लिए आमंत्रित किये जाते हैं।
2010 मेंब्लूमबर्ग ने दिव्यांक को एकजीतने वाले योद्धाके रूप में पेश किया। 2008 मेंफाइनेंशियल एक्सप्रेस ने उन्हें भारत के ‘न्यू बिजनेस लीडर्सके रूप में और 2007 में सोसायटी पत्रिका द्वारा यंग एचीवर्स सूची में चित्रित किया गया। 2006 में,दिव्यांक बिज़नेस पत्रिका द्वारा एशिया के शीर्ष युवा उद्यमियों की सूची में शामिल थे। इसी तरह से बाद के सालों में सीएनबीसीउद्यमी पत्रिका बिजनेस स्टैंडर्ड,मनी टुडेडीडी मेट्रोनवभारत टाइम्सटाइम्स ऑफ इंडियाइंडिया टुडेएजुकेशन टाइम्सइंडियन एक्सप्रेस, Rediff.com, कंप्यूटर एक्सप्रेस आदि ने भी उन्हें प्रमुखता से जगह दी।

कभी रोहतक में रिक्शा चलाते थे अब लंदन के घर-घर में इनका जलवा

रवि शर्मा
लंदन। हालाँकि वह पहले भी चर्चा में रहे हैं, लेकिन इनदिनों एकाएक सुर्ख़ियों में आ गए हैं। वजह ये की उन्होंने लंदन के वेम्बले स्टेडियम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समारोह में मंच का बखूबी संचालन किया। रवि शर्मा, यही नाम है उनका। इन दिनों गूगल, फेसबुक और ऐसे ही अन्य माध्यमों पर लोग उनके बारे में सर्च कर रहे हैं। और करें भी क्यों न ! रवि शर्मा का जीवन बहुत से कठिनाइयों की राह से गुजर कर लंदन सफलता की मंजिल तक पहुंचा है। गौर कीजियेगा, कभी वह भारत के रोहतक में रिक्शा चलाते थे। लेकिन अपनी मेहनत और योग्यता से लंदन के रेडियो जॉकी के रूप में छा गए और वहां के घर-घर में अपनी आवाज की बदौलत जाने-पहचाने जाते हैं। 
बहुत कठिनाइयों में गुजरा बचपन 
रोहतक के बखेता गांव के निवासी रवि का बचपन बहुत कठिन था। पिता टीचर थे लेकिन घर का खर्च चल नहीं पाता। जनता कॉलोनी में घर था। फीस और ट्यूशन का खर्च निकालने के लिए उन्हें रिक्शा चलाना पड़ा। इसी से उनकी पढ़ाई का खर्च निकलता। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से किसी प्रकार उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। रवि के बोलने और बातचीत का अंदाज बहुत अच्छा था। ऊपर से आवाज भी बढ़िया। इसी दौरान उनकी नौकरी रेडियो में लग गई। संगीत और कविता की रुचि उन्हें थिएटर तक ले आई। चुनावी सभा और धार्मिक संगठनों से नाटकों के मंचन करने के लिए ऑफर आने शुरू हो गए। 1982 में लंदन स्थित एक मंडली से उन्हें बुलावा मिला। वहां पर कार्यक्रम के बाद वापस लौट आए और दो साल बाद फिर से लंदन का रुख किया। वहां उन्होंने कड़ी मेहनत और जानदार हुनर के सहारे लंदन में बसे भारतीयों के दिल में अपनी अलग पहचान बना ली है। 
और मिल गई कामयाबी 
 1984 में लंदन जाने के बाद उन्होंने सफलता की बुलंदियां छूना शुरू कर दिया। रवि ने बीबीसी के लिए स्वतंत्र रूप में काम करना शुरू किया। कुछ साल बाद एक दूसरे चैनल के साथ जुड़ गए। अब 60 साल की उम्र में वे लंदन के लाइका रेडियो में बतौर स्टार जॉकी काम कर रहे हैं। इस रेडियो पर रवि वहां बसे भारतीयों को हिंदी संगीत और देसी परंपराओं से जोड़े हुए हैं। इतना ही नहीं उन्हें जब भी मौका मिलता है तो वे शादी-विवाह में पंडित का काम और कवि सम्मेलन में भी शिरकत करते हैं। 
परिवार का मिला साथ 
 रवि बताते हैं कि उन्हें हमेशा परिवार का पूरा साथ मिला। मुझे अपने स्टेज शो लेकर मॉरीशस, जर्मनी, स्वीडन, हॉलेण्ड, नार्वे और रीयूनियन जाने का मौका मिला है। भावुक होकर वह बताते हैं, सोचिए रोहतक के एक गाँव में जन्मा निम्न मध्य वर्ग का एक लड़का जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए रिक्शा चलाने को मजबूर था, आज विश्व भर के दौरे कर रहा है। मेरे दादा जी, पिता जी सभी अध्यापक थे। हम चार भाई और दो बहनें हैं। रेडियो का सफर मैंने 1976 में ऑल इण्डिया रेडियो रोहतक से शुरू किया था। 1985 में विवाह हुआ। पत्नी आशा किरण एक सरकारी महकमे में मैनेजर हैं। एक बेटा संकल्प और बेटी रागिनी अभी स्कूल जाते हैं। 
मिले हैं बहुत से पुरस्कार 
रेडियो के सफर में रवि शर्मा को कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। एशियन फिल्म और मीडिया बरमिंघम का यूके एशियन अवार्ड, नेशनल डीजे, बेस्ट ब्रॉडकास्टर अवार्ड, यूके हिन्दी समिति का संस्कृति सम्मान। वह कहते हैं कि अच्छा लगता है जब कभी सम्मान या पुरस्कार मिलते हैं। मैं बस काम कर रहा हूँ, यदि सम्मान भी मिल जाते हैं तो कहीं कुछ अच्छा लगता है। मैने अपने जीवन में गलतियां करके सीखा है। अच्छा लगता है जब भीड़ में एक पहचान बन जाती है। 
हरियाणवी क्रिकेट कमेंट्री भी है प्रसिद्ध
 रवि शर्मा ने दशकों पूर्व हरियाणवी अंदाज में क्रिकेट कमेंट्री की थी। इसमें उन्होंने रोहतक के पास स्थित अस्थल बोहर गांव के मैदान में खरावड़ और मकड़ौली के बीच हुए मैच को हरियाणवी अंदाज में बया किया था। हरियाणवी अंदाज में उनकी कमेंट्री को लोगों ने खूब सराहा और यू-ट्यूब पर हजारों भारतीयों ने इसे देखा। 
डेढ़ लाख में हुई थी शर्ट की नीलामी 
 लंदन में रवि शर्मा की आवाज के प्रशंसकों की लंबी फेहरिस्त है। 15 साल पहले रवि शर्मा लंदन के प्रसिद्ध सनराइज रेडियो के सुपर स्टार थे। उस समय वे इतने लोकप्रिय थे कि उनकी एक शर्ट डेढ़ लाख रुपये में नीलाम हुई थी। 
13 नवंबर बन गया सबसे ख़ास 
30 साल बाद भी दिल में देश और हरियाणा जिंदा है। 13 नवंबर को लंदन में मोदी के मंच के लिए अंग्रेजी, हिंदी, पंजाबी और गुजराती जानने वाले शख्स की जरूरत थी। ऐसे में आयोजकों के मन में बिना किसी दुविधा के पहला नाम रवि शर्मा का ही आया। वेम्बले स्टेडियम से मोदी ने लंदन में रहने वाले भारतीय मूल के 60 हजार लोगों को जब संबोधित किया तो इस पूरे समारोह का संचालन रवि ने ही किया।

Saturday 4 April 2015

पबनावा रेलवे स्टेशन एक सामाजिक समरसता की अटूट मिसाल

 गांव पबनावा की 36 बिरादरियों के लोगों ने साबित कर दिखाया है कि जज्बा हो तो कुछ भी कर सकतेहैं। पबनावा जसमहिंद्र रेलवे स्टेशन काफी अर्सें से कई समस्याओं से जूझ रहा था। सबसे बड़ी समस्या थी नीचे प्लैटफॉर्म की। रेलगाड़ी से उतरते वक्त गिरने का खतरा बना रहता था। कई लोग गिरे भी। इस बारे में ग्रामीणों ने कई बार अफसरों को शिकायत दी। लेकिन समाधान नहीं हुआ।ग्राम जन समिति के प्रधान 85 साल के लाला हरी राम ने बताया कि गत वर्ष 31 अक्तूबर को रेलवेके चीफ इंजीनियर दिल्ली से पबनावा रेलवे स्टेशन का दौरा करने आए हुए थे। गांव वालों ने उन्हें रेलवे स्टेशन की समस्याओं के बारे में बताया। इस पर चीफ इंजीनियर ने ही उन्हें राय दी कि गांव वाले अपने फंड से स्टेशन प्लैटफॉर्म को ऊंचा कर सकते हैं।
गांव के सरपंच ने पंचायत बुलाकर सर्वसम्मति से स्टेशन का विकास करवाने का निर्णय लेते हुए ग्रामजन समिति का गठन कर दिया। इसमें सभी बिरादरी से 14 सदस्यों की कमेटी गठित की गयी। उसकी देख-रेख में काम शुरू कर दिया गया। गांव की सभी बिरादरियों के लोगों ने सहयोग राशि दी।लाला हरी राम ने बताया कि गांव के सहयोग से स्टेशन पर 1700 फीट लंबी चारदीवारी और रेलगाड़ी से उतरने के लिए ऊंचा कोपिंग बनाया गया है। अब यात्रियों को गाड़ी से उतरने-चढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आती। प्लैटफॉर्म को ऊपर उठाने में 700 ट्राली मिट्टी की डाली गयी हैं। इसके अलावा रेलवे की ओर मुहैया करवाई गयी रेलिंग को गांव वाले अपने खर्च पर लगवा रहे हैं। पूरे काम पर करीब 10 लाख खर्च हो चुके हैं।

शहीद कैप्टन जसमहिंद्र के नाम पर है स्टेशन का नाम
कमेटी के प्रधान लाला हरी राम ने बताया कि 1965 की लड़ाई में शहीद कैप्टन जसमहिंद्र की यादमें सरकार ने पबनावा रेलवे स्टेशन का नाम पबनावा जसमहिंद्र रेलवे स्टेशन रखा था। आज भी शहीद जसमहिंद्र सिंह समूचे गांव व युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।

रणाराम एक विलक्षण जीव प्रेमी

जिले के कानेलाव गांव के रणाराम खेतीहर मजदूर है। उन्होंने ने तो पशु-पक्षियों को नियन्त्रित करने के लिए प्रशिक्षण लिया है और ना ही वे उनके साथ रहे है। रणा प्यार की भाषा जरूर जानते है, तभी तो उनकी एक आवाज पर गांव के तालाब के कछुए दौड़े चले आते है।
संवेदनशील कछुए जो हल्की सा आहट पर अपने खोल में छिप जाते हैं, रणा के आते ही बेखौफ होकर चहलकदमी करने लगते हैं। इस दौरान काफी संख्या में ग्रामीण वहां मौजूद रहते है लेकिन कछुए उनसे नहीं डरते।

पांच साल की मेहनत

रणाराम बताते है कि ये सिलसिला करीब पांच साल पहले शुरू हुआ। एक सुबह वह गांव के आखरिया के निकट स्थित तालाब में रोटी लेकर गया तो उसकी आवाज सुनकर काफी कछुए बाहर आ गए। उसने हाथों से कछुओं को रोटी खिला दी। फिर तो एेसा सिलसिला चला जो अभी तक बरकरार है। अब तो तालाब में रहने वाले सारे कछुए उसके दोस्त बन गए।

गांव के बड़े तालाब में स्थिति ये है कि कछुए सुबह गांव के चौक की ओर स्थित किनारे पर उसका इंतजार करते हैं। अलसुबह वह घर से रोटियां बनाकर लाता है। जैसे ही तालाब किनारे पहुंचकर कछुओं को आवाज लगाता है तो तालाब में जगह-जगह से कछुए भागे चले आते हैं। कुछ ही देर में तालाब किनारे कछुए ही कछुए नजर आने लग जाते हैं।

दिनचर्या में हुआ शुमार

रणाराम मीणा नियमित रूप से घर से आठ से दस रोटी बनाकर लाता है और कछुओं को खिलाता है। कछुओं से उसकी दोस्ती का आलम यह है कि थोड़ी देर में तालाब किनारे कछुओं का झुण्ड लग जाता है। दोस्ती के इस अनूठे नजारे को देखने के लिए गांव के लोग भी एकत्र हो जाते हैं।

केवल रणा से प्रेम

रणा जब किसी काम से गांव से बाहर जाते हैं तो उनके बेटे या परिवार के अन्य सदस्य को जिम्मेदारी सौंप कर जाते हैं। हालांकि, उनका बेटा जब रोटी खिलाने जाता है तो कछुए तालाब से बाहर नहीं आते। वो तालाब के पानी में ही रोटी डालकर चला जाता है।

उमेश वर्मा एक भूकम्प वैज्ञानिक

इस साधारण से दिखने वाले चेहरे को नजरअंदाज़ करने जा रहे हैं तो जरा दो मिनट रुकिए और इस साधारण चेहरे के पीछे छूपे इस असाधारण व्यक्ति के बारे में जरा जान लीजिये !

इनका नाम है उमेश वर्मा,पटना के महेन्द्रू के रहने वाले हैं,मोतिहारी के महारानी जानकी कुंवर कन्या उच्च विद्यालय में विज्ञान शिक्षक हैं,इन्होने एक खास कैलकुलेशन के जरिये एक नायाब खोज की है, ऐसी खोज जिसके बारे में दुनिया के किसी व्यक्ति ने सोचा तक नहीं! इन्होंने विमानों के उड़ान हेतु सहायता करने वाली डाटा उपलब्ध कराने वाली संस्था से प्राप्त कुछ डाटा व इससे सम्बंधित गणितीय कैलकुलेशन से भूकंप के पूर्वानुमान की एकदम सटीक जानकारी प्राप्त करने का दावा किया है.
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अब तक करीब एक दर्जन विश्व भर में आये भूकम्पो का एकदम सटीक पूर्वानुमान कर घोषणा कर चुके हैं, कई देशों से बुलावा पर बुलावा आ रहा हैं, लेकिन देशभक्ति का पागलपन इन्हें इस तरकीब को किसी अन्य देश के साथ साझा करने से रोक रहा है, इन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन्नोवेटिव कौंसिल का सदस्य बनाया है,जिसकी वजह से इन्हें यदा कदा पटना बुलाया जाता है लेकिन प्रतिभा के धनी इस व्यक्ति की प्रतिभा को उचित सम्मान व सहायता की आवश्यकता है,जिसकी बदौलत ये भूकंप से होने वाली अरबो रुपये की क्षति को अपने पूर्वानुमान की वजह से कम कर सकें, लेकिन रुकिए इनकी प्रतिभा सिर्फ पूर्वानुमान तक ही सिमित नहीं है,इन्होने भूकंप से फायदा उठाने की भी तरकीब विकसित की है, इनके मुताबिक़ एक बार के भूकंप से 200 मेगावाट तक की बिजली बड़े आराम से पैदा की जा सकती है.