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Monday, 19 August 2013

SATYAM "13-year-old son of a farmer cracks IIT, now aims to be an IAS officer"

13-year-old son of a farmer cracks IIT, now aims to be an IAS officer
Satyam was home-schooled till standard 8 as his family didn't have the necessary financial means to send him to a school.

Bhojpur: Satyam, the 13-year-old son of a farmer in Bihar, is the youngest to crack the IIT entrance exam. He now aspires to be an IAS officer. He secured an all India rank of 679 out of 1,50,000 who had taken the IIT-JEE exam.
"I'm very happy that I'm the youngest IITian and I broke the record of one who had already been the youngest IITians. So I am feeling proud that I'm the youngest IITian of the country," said Satyam.

Born to farmer parents, it has not been an entirely easy ride for Satyam. But notwithstanding the obstacles in life, Satyam, qualified and cleared IIT-JEE exam twice. He had taken the exam first when he was 12-year-old after getting special permission from CBSE but he took the exam again as he was not happy with his rank.

He grew up in a humble background but achieved what what most students can't dream of attaining ever. Cracking IIT-JEE entrance exam at the age of 13 is only the first milestone out of many milestones he wishes to achieve in his life. He aspires to become an aeronautical engineer by the age of 20 and working for NASA is his next target.
He was home-schooled till standard 8 as his family didn't have the necessary financial means to send him to a school and the government institution in his village lacked basic teaching facilities. The CBSE granted him special permission to take the Rajasthan Board Exam and the Resonance Institute in Kota gave him free admission to prepare for IIT exams.
"I feel proud that my son cracked IIT at the age of 13. He also made his village proud," said his father.
Satyam now has his eyes firmly set on his goals. After completing B-Tech in computer science from IIT, he wants to launch a social media platform and then take the UPSC exam to become an IAS officer.

"After completing my B-tech from IIT, I'll be around 17 years. So in the break of 17 to 21 years, I'll be preparing for IAS. After completing 21 years, I'll be giving IAS exams," Satyam said.
Meanwhile, Satyam's family is hoping for a better future for themselves as he has made a giant progress in life.

Sunday, 18 August 2013

Short Symbols


 








HOW TO MAKE SYMBOLS WITH KEYBOARD

Alt + 0153..... ™... trademark symbol
Alt + 0169.... ©.... copyright symbol
Alt + 0174..... ®....registered trademark symbol
Alt + 0176 ...°......degre­e symbol
Alt + 0177 ...±....plus-or­-minus sign
Alt + 0182 ...¶.....paragraph mark
Alt + 0190 ...¾....fractio­n, three-fourths
Alt + 0215 ....×.....multi­plication sign
Alt + 0162...¢....the cent sign
Alt + 0161.....¡..... .upside down exclamation point
Alt + 0191.....¿..... ­upside down question mark
Alt + 1...........smiley face
Alt + 2 ......☻.....bla­ck smiley face
Alt + 15.....☼.....su­n
Alt + 12......♀.....f emale sign
Alt + 11.....♂......m­ale sign
Alt + 6.......♠.....s­pade
Alt + 5.......♣...... ­Club
Alt + 3............. ­Heart
Alt + 4.......♦...... ­Diamond
Alt + 13......♪.....e­ighth note
Alt + 14......♫...... ­beamed eighth note
Alt + 8721.... ∑.... N-ary summation (auto sum)
Alt + 251.....√.....s­quare root check mark
Alt + 8236.....∞..... ­infinity
Alt + 24.......↑..... ­up arrow
Alt + 25......↓...... ­down arrow
Alt + 26.....→.....ri­ght arrow
Alt + 27......←.....l­eft arrow
Alt + 18.....↕......u­p/down arrow
Alt + 29......↔... left right arrow

विकलांगता पर हौसले की जीत, पांव से ट्रेक्टर चलाते हैं जगतार


physically disability

किसी ने सही कहा है कि युद्ध में वही जीतता है, जो अंत तक उम्मीद बनाए रखता है। कभी सब कुछ खत्म नहीं होता। वह चाहे जीवन रूपी समर ही क्यों न हो। इसे सही मायनों में चरितार्थ किया है 43 वर्षीय जगतार सिंह ने।
हल्दरी गांव के इस किसान को पैरों की सहायता से ही खेती करते, उन्हीं से कॉपी पर लिखता देख हर कोई दंग रह जाता है। जगतार बताते हैं कि 24 जून 1991 का काला दिन उसे आज भी याद है जब खेती करते वक्त ट्यूबवेल से करंट लग गया। चंडीगढ़ पीजीआइ में कई दिन जिंदगी व मौत के बीच जूझने के बाद डॉक्टरों को उसके दोनों बाजू काटने पड़े। इस हादसे के बाद पूरा परिवार सदमे में आ गया था।
करीब दो साल बाद उसने होश संभाला और इस मुश्किल घड़ी में भी जीवन जीने का रास्ता निकाला। धीरे-धीरे पैरों से ट्रैक्टर चलाने का अभ्यास शुरू किया। पैर से ट्रैक्टर का स्टेयरिंग संभालने, गियर लगाने और रेस नियंत्रित करने में निपुणता हासिल करने से उसे एक नई प्रेरणा मिली। अब वह सामान्य किसान की तरह खेतों में ट्रैक्टर चलाने के साथ ही अन्य कृषि कार्य बखूबी कर रहा है। इतना ही नहीं वह अपने पैरों से ही लिखने का काम भी कर लेता है।

Saturday, 17 August 2013

कैलेंडर की कहानी

डॉ. हरिकृष्ण देवसरे

प्राचीन यूनानी सभ्यता में 'कैंलेंड्‍स' का अर्थ था - 'चिल्लाना'। उन दिनों एक आदमी मुनादी पीटकर बताया करता था कि कल कौन सी तिथि, त्योहार, व्रत आदि होगा। नील नदी में बाढ़ आएगी या वर्षा होगी। इस 'चिल्लाने वाले' के नाम पर ही - दैट हू कैलेंड्‍स इज 'कैलेंडर' शब्द बना। वैसे लैटिन भाषा में 'कैलेंड्‍स' का अर्थ हिसाब-किताब करने का दिन माना गया। उसी आधार पर दिनों, महीनों और वर्षों का हिसाब करने को 'कैलेंडर' कहा गया है।

एक समय था जब कैलेंडर नहीं थे। लोग अनुभव के आधार पर काम करते थे। उनका यह अनुभव प्राकृतिक कार्यों के बारे में था। वर्षा, सर्दी, गर्मी, पतझड़ आदि ही अलग-अलग काम करने के संकेत होते। 

धार्मिक, सा‍माजिक उत्सव और खेती के काम भी इन्हीं पर आधारित थे। समय का सही बँटवारा करना मुश्किल हो जाता। लोगों ने अनुभव किया कि दिन-रात का बँटवारा कभी गड़बड़ नहीं होता। इसी तरह रात में चंद्रमा दिखने का भी एक क्रम है। 

चंद्रमा दिखने का यह क्रम, जिन्हें चंद्रमा की कलाएँ भी कहा गया, निश्चित समय के बाद अवश्य जारी रहता। इस तरह दिन-रात और चंद्रमा की कलाओं के आधार पर दिनों की गिनती की गई। फिर इस अवधि को नाम दिया गया। तारे और चंद्रमा केवल सूर्यास्त के बा‍द दिखते और सूर्यास्त होने पर अँधेरा हो जाता, इसलिए इस अवधि को 'रात' कहा गया। 

सूर्योदय होने से लेकर सूर्यास्त तक की अवधि को 'दिन' का नाम दिया गया। यह भी अनुभव किया गया कि मौसम सूर्य के कारण बदलते हैं। चंद्रमा का चक्र नए चाँद से नए चाँद तक माना गया। सूर्य का चक्र एक मौसम से दूसरे मौसम तक माना गया।

चंद्रमा का चक्र साढ़े उन्तीस दिन में पूरा होता है। उसे 'महीना' कहा गया। सूर्य के चारों मौसम को मिलाकर 'वर्ष' कहा गया। फिर गणना के लिए 'कैलेंडर' या 'पंचांग' का जन्म हुआ। अलग-अलग देशों ने अपने-अपने ढंग से कैलेंडर बनाए क्योंकि एक ही समय में पृथ्‍वी के विभिन्न भागों में दिन-रात और मौसमों में भिन्नता होती है। लोगों का सामाजिक जीवन, खेती, व्यापार आदि इन बातों से विशेष प्रभावित होता था इसलिए हर देश ने अपनी सुविधा के अनुसार कैलेंडर बनाए।

वर्ष की शुरुआत कैसे करें इसके लिए किसी महत्वपूर्ण घटना को आधार माना गया। कहीं किसी राजा की गद्‍दी पर बैठने की घटना से (विक्रम संभव) गिनती शुरू तो कहीं शासकों के नाम से जैसे रोम, यूनान, शक आदि। बाद में तो ईसा के जन्म (ईस्वी सन्) या हजरत मोहम्मद साहब द्वारा मक्का छोड़कर जाने की घटनाओं से कैलेंडर बने और प्रचलित हुए।

रोम का सबसे पुराना कैलेंडर वहाँ के राजा न्यूमा पोंपिलियस के समय का माना जाता है। यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था। आज विश्वभर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है। उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बनाया कैलेंडर ही है। जूलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस की सहायता ली थी। इस नए कैलेंडर की शुरुआत जनवरी से मानी गई है। इसे ईसा के जन्म से छियालीस वर्ष पूर्व लागू किया गया था। जूलियस सीजर के कैलेंडर को ईसाई धर्म मानने वाले सभी देशों ने स्वीकार किया। उन्होंने वर्षों की गिनती ईसा के जन्म से की। 

जन्म के पूर्व के वर्ष बी.सी. (बिफोर क्राइस्ट) कहलाए और (बाद के) ए.डी. (आफ्टर डेथ) जन्म पूर्व के वर्षों की गिनती पीछे को आती है, जन्म के बाद के वर्षों की गिनती आगे को बढ़ती है। सौ वर्षों की एक शताब्दी होती है। 

संसार के सभी देश अब एक समय मानते हैं और आपस में तालमेल बिठाकर घड़ियों को शुद्ध रखते हैं। आज समय की पाबंदी बड़ी महत्वपूर्ण हो गई है और लोग उसका मूल्य समझने लगे हैं। 

Friday, 16 August 2013

Engineers without degrees


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UNIVERSAL LAWS



  1. Law of Mechanical Repair - After your hands become coated with grease, your nose will begin to itch and you'll have to pee.
  2. Law of Gravity - Any tool, nut, bolt, screw, when dropped, will roll to the least accessible corner.
  3. Law of Probability -The probability of being watched is directly proportional to the stupidity of your act.
  4. Law of Random Numbers - If you dial a wrong number, you never get a busy signal and someone always answers.
  5. Law of the Alibi - If you tell the boss you were late for work because you had a flat tire, the very next morning you will have a flat tire.
  6. Variation Law - If you change lines (or traffic lanes), the one you were in will always move faster than the one you are in now (works every time).
  7. Law of the Bath - When the body is fully immersed in  water, the telephone rings.
  8. Law of Close Encounters -The probability of meeting  someone you know increases dramatically when you are with  someone you don't want to be seen with.
  9. Law of the Result - When you try to prove to someone  that a machine won't work, it will.
  10. Law of Biomechanics - The severity of the itch is  inversely proportional to the reach.
  11. Law of the Theater - At any event, the people whose  seats are furthest from the aisle arrive last.
  12. The Starbucks Law - As soon as you sit down to a cup  of hot coffee, your boss will ask you to do something which will last  until the coffee is cold.
  13. Murphy's Law of Lockers - If there are only two people  in a locker room, they will have adjacent lockers.
  14. Law of Physical Surfaces - The chances of an  open-faced jelly sandwich landing face down on a floor covering are directly correlated to the newness and cost of the carpet/rug.
  15. Law of Logical Argument - Anything is possible if you  don't know what you are talking about.
  16. Brown's Law of Physical Appearance - If the clothes fit, they're ugly.
  17. Oliver's Law of Public Speaking - A closed mouth gathers no feet.
  18. Wilson's Law of Commercial Marketing Strategy  As  soon as you find a product that you really like, they stop making it.
  19. Doctors' Law - If you don't feel well, make an  appointment to go to the doctor, by the time you get there you'll feel  better. Don't make an appointment and you'll stay sick.

PULKIT GAUR..... The Robotic Man of India












पुलकित गौड़
उम्र: 32 साल
स्कूलिंग : केंद्रीय विद्यालय जोधपुर
एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल ब्रांच में बीटेक डिग्री
प्रोफेशन : ग्रिडबोट्स डॉट कंपनी के संस्थापक
उपलब्धि : रोबोटिक्स का प्रमोशन।
पिता : दिनेश कुमार गौड़, आईबी से रिटायर एडिशनल डायरेक्टर
मां : आंगनबाड़ी महिला एवं बाल विकास में सुपरवाइजर।

रोबोट बनाने का जुनून ही था कि कैलिफोर्निया की मेडिटैब कंपनी की 16 लाख रुपए सालाना की नौकरी छोड़ी। रोबोटिक्स प्रोजेक्ट्स पर खुद के ब्लॉग लिखने पर 2006 में गूगल कंपनी ने 45 लाख सालाना का ऑफर दिया। तय किया, अमेरिका या किसी अन्य देश के लिए काम नहीं करना। अपने देश के लिए काम करके इसे दुनिया में नई पहचान देनी है। 2007 में ग्रिडबोट्स डॉट कॉम कंपनी खोली। 2008 में टंकी साफ करने वाला रोबोट बनाया। यह रोबोट टंकी को खाली किए बिना ही उसकी गंदगी को निकाल देता है। यह रोबोट बनाने के लिए मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने उन्हें इंडिया के टॉप-18 इनोवेटर में शामिल किया। हाल ही में उनकी कंपनी ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के लिए रोबोट तैयार किया है। न्यूक्लियर प्लांट्स के लिए बनाया गया यह रोबोट 100 मीटर की दूरी से मेटेरियल को स्टील के डिब्बों में बंद कर देता है।

Friday, 9 August 2013

अन्नादुराई" ये एक ऑटोरिक्षा चालक हैं ....


अन्नादुराई" ये एक ऑटोरिक्षा चालक हैं .... ये चेन्नई मे रिक्षा चलाते हैं
इनके रिक्षा मे बैठने पर ये सेवाएँ मिलती हैं

1. निःशुक्ल मोबाइल बैटरि चार्जर
2. निःशुक्ल टीवी देखिये
... 3. निःशुक्ल WI-FI
4. निःशुक्ल पढ़ने के लिए पुस्तकें
5. ग्राहकों के लिए इनाम देने का सिस्टम
6. एक गरीब बच्चे की सहायता
7. शिक्षकों के लिए विशेष दिनों पर किराये मे छूट

और ये सब करने के बाद भी अन्नादुराई 11 KM चलने का सिर्फ 15 रुपए ही लेते हैं !

अन्नादुराई के शब्दों मे कहें तो "मेरे लिए ग्राहक की सेवा सर्वोपरि है .... पैसे मेरे लिए उतने अधिक आवश्यक नहीं हैं लेकिन मुझे खुशी तब होती है जब मेरे द्वारा दी गयी सेवा से ग्राहक कृतज्ञ और संतुष्ट होते हैं"
 —

टेलीमार्केटिंग से बचने के तरीके...

आजकल टेलीमार्केटिंग कम्पनियों का जमाना है, रोज-ब-रोज कोई ना कोई बैंक, इंश्योरेंस, फ़ाईनेंस एजेन्सी आदि-आदि फ़ोन कर-कर के आपकी नींद खराब करते रहते हैं, ब्लडप्रेशर बढाते रहते हैं, और आप हैं कि मन-ही-मन कुढते रहते हैं, कभी-कभी फ़ोन करने वाले को गालियाँ भी निकालते हैं, लेकिन अब पेश है कुछ नये आईडिया इन टेलीमार्केटिंग कम्पनियों से प्रभावी बचाव का - इनको आजमा कर देखिये कम से कम चार तो आपको पसन्द आयेंगे ही -

  1. जैसे ही टेलीमार्केटर बोलना बन्द करे, उसे तत्काल शादी का प्रस्ताव दे दीजिये, यदि वह लड़की है तो दोबारा फ़ोन नहीं आयेगा, और यदि वह लड़का है तो शर्तिया नहीं आयेगा...
  2.  टेलीमार्केटर से कहें कि आप फ़िलहाल व्यस्त हैं, तुम्हारा फ़ोन नम्बर, पता, घर-ऑफ़िस का नम्बर दो, मैं अभी वापस कॉल करता हूँ..
  3.  उसे, उसी की कही तमाम बातों को दोहराने को कहें, कम से कम चार बार..
  4. उसे कहें कि आप लंच कर रहे हैं, कृपया होल्ड करें, फ़िर फ़ोन को प्लेट के पास रखकर ही चपर-चपर खाते जायें, जब तक कि उधर से फ़ोन ना कट जाये..
  5. उससे कहिये कि मेरी सारे हिसाब-किताब मेरा अकाऊंटेंट देखता है, लीजिये उससे बात कीजिये और अपने सबसे छोटे बच्चे को फ़ोन पकडा़ दीजिये...
  6. उससे कहिये आप ऊँचा सुनते हैं, जरा जोर से बोलिये (ऐसा कम से कम चार बार करें)..
  7. उसका पहला वाक्य सुनते ही जोर से चिल्लाईये - "अरे पोपटलाल, तुम... ! माय गॉड, कितन दिनों बाद फ़ोन किया,,,, और,,,,, और...................बहुत कुछ लगातार बोलिये... फ़िर वह कहेगा कि मैं पोपटलाल नहीं हूँ, फ़िर भी मत मानिये, कहिये "अरे मजाक छोड़ यार "....अगली बार फ़ोन आ जाये तो गारंटी...
  8. उससे कहिये कि एकदम धीरे-धीरे बोले, क्योंकि आप सब कुछ हू-ब-हू लिखना चाहते हैं, फ़िर भी यदि वह पीछा ना छोडे, तो एक बार और उसी गति से रिपीट करने को कहें....
  9. यदि ICICI से फ़ोन है तो उसे कहिये कि मेरे ऑफ़िस के नम्बर पर बात करें और उसे HSBC का नम्बर दे दें.

SPIRITUAL COW DUNG HAND MADE PAPER



INTRODUCTION

Indigenous Cow ( Desi Cow) is the revitalization of ‘ prana’ ( Life – living existence) and mother cow owns the earth. Each and every particle and droppings from mother cow are strong contributors to the existence of mankind. With this object we use the gobar ( Cow dung)of indeginous cow.
We wish to introduce ourselves as the producer of ecofreindly recyclable DIVINE hand made paper having identity by the name of " COW CHHAAP" ( meaning " impression of our mother cow " ) 
This project has been set up under the initiative of our charitable organization whose main motive is to spread eco-friendly environment and provide a source of income to the gaushala and thereby help in stopping cows being slaughtered.

SAYINGS BY OUR ANCIENT SCULPTURES ABOUT COW DUNG

The cow has been a symbol of wealth since ancient Vedic times.
In the scriptures, we find the sage Vyasa saying that cows are the most efficacious cleansers of all. As per Rig Veda 10.87.16: “ya paurueyea kraviā samakte yo aśveyena paśunāyātudhāna,yo aghnyāyā bharati kīramaghne teāśīrāi harasāpi vśca"
Which usually is translated as: "The fiend who consumes flesh of cattle, with flesh of horses and of human bodies, who slaughters the milk producing cow, O Agni, tear off the heads of such with fiery fury". The milk-giving cow here is described as “Aghnya” which means “that what is not to be sacrificed”. 

BRIDGING THE GAP OF GAINING ECONOMIC IMPORTANCE
Now in this world of democracy, you cannot tear off the heads of such people who slaughters cow for economic gain, but surely we may make our combine efforts to get rid of this malpractice by helping in giving high economic value to our mother cow.
Here, our role comes in as to trace out the ways how we can increase revenue with the use of divine dung ( gobar). In our initial experimentation phase we came to know that the fibre extracted out of the divine cow dung can be used to make paper.
We further went on our research phase where lot of experimentation work was carried out and came to the conclusion that we can make good quality paper from the currently less economic valued cow dung.
ADVANTAGES
Hindus believe that at the time ‘ prana’ and soul leaves the body it is severely painful that the attention is distracted thereby the rememberance of almighty becomes impracticable or impossible. We believe ‘ antmati swagati’. One gets disposal according to the thoughts of the last moment because we Hindus believe in existence of soul and salvation of soul.
Our imagination is that if the surroundings are full of divinely effects, the thinking of the last moment will get effected. In this way if the walls are surrounded with positive symbols and cow dung, the memory and rememberance of almighty will be practicable as we have developed cow dung paper with divine symbols, slogans and mantras to be used as wallpapers in whatever surroundings. These may be desired by people.
In our ancient times, the gobar used to applied on the walls of the houses and temples to make the environment positive as well as to give energy in its surroundings. But with the passage of time it is impracticable to do so. But with our mission to save cows, we have developed with the help of our research team a special quality cow dung hand made wall paper which can be pasted on the walls to apply the old practice in these modern days of technology and science.
The main advantages of using divine hand made paper are enumerated as under:
  • Organic
  • Eco-friendly
  • Positive atmosphere in the environment.
  • Positive energy in the environment.
  • Helps in saving trees, thereby helping in making our earth green.
  • Spreading awareness among our youth generation the need for using renewable energy resources.
  • Recyclable
  • Very high spiritual value
ALTERNATIVE USE OF COW PRODUCTS
The five products (panchgavya) of the cow — milk, curd, ghee butter, urine and dung — are all used in puja (worship) as well as in rites of extreme penance. The milk of the family cow nourishes children as they grow up, and cow dung (gobar) is a major source of energy for households throughout India in ancient times. Cow dung is among the materials used for a tilak - a ritual mark on the forehead. Most Indians do not share the western revulsion at cow excrement, but instead consider it an heavenly and useful natural product. Everything from a cow was used from their droppings to assistance with plowing the fields. The day-to-day work with the cow was much more important to the people's lives. Every part of the cow holds religious symbolism.
We would like to have your kind association so that the people become aware of our old tradition and culture and emphasize on using such things in order to lay a helping hand to save mother cow from being slaughtered.

Contact Details 

 Ca. Sachin Singhal
+91 98973 11709
info@gaupal.in