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Friday 16 January 2015

फूटा घड़ा

बहुत समय पहले की बात है , किसी गाँव में एक किसान रहता था . वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था . इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था , जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था .
उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था ,और दूसरा एक दम सही था . इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था .ऐसा दो सालों से चल रहा था .
सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है , वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है . फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया , उसने किसान से कहा , “ मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ ?”
“क्यों ? “ , किसान ने पूछा , “ तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?”
“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ , मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है , और इस वजह से आपकी मेहनत बर्वाद होती रही है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा.
किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला , “ कोई बात नहीं , मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो .”
घड़े ने वैसा ही किया , वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया , ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा .
किसान बोला ,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे , सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था . ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था , और मैंने उसका लाभ उठाया . मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग -बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे , तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया . आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ . तुम्ही सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ?”
सीख-दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है , पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं . उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा.

Thursday 15 January 2015

तेरी शादी धूम धाम से करूँगा !

एक माँ - बाप
और एक लड़की का गरीब परिवार
रहता था . वह बड़ी मुश्किल से एक
समय के
खाने का गुज़ारा कर पाते थे...
सुबह के खाने के लिए शाम
को सोचना पड़ता था और शाम
का खाना सुबह के लिए ... एक
दिन
की बात है , लड़की की माँ खूब
परेशान
होकर
अपने पति को बोली की
एक तो हमारा एक समय
का खाना पूरा नहीं होता और
बेटी साँप की तरह
बड़ी होती जा रही है
गरीबी की हालत
में
इसकी शादी केसे करेंगे ?
बाप भी विचार में पड़ गया.
दोनों ने दिल पर पत्थर रख कर एक
फेसला किया की कल
बेटी को मार
कर गाड़ देंगे... दुसरे दिन का सूरज
निकला ,
माँ ने लड़की को खूब लाड प्यार
किया , अचे से नहलाया , बार -
बार उसका सर चूमने लगी . यह सब
देख कर
लड़की बोली :
माँ मुझे कही दूर भेज रहे हो क्या ?
वर्ना आज तक आपने
मुझे ऐसे कभी प्यार नहीं किया ,
माँ केवल चुप रही और रोने लगी ,
तभी उसका बाप हाथ में
फावड़ा और चाकू लेकर आया ,
माँ ने लड़की को सीने से लगाकर
बाप के
साथ रवाना कर दिया . रस्ते में
चलते - चलते बाप के पैर
में कांटा चुभ गया , बाप एक दम से
निचे बेठ गया , बेटी से
देखा नहीं गया उसने तुरंत
कांटा निकालकर
फटी चुनरी का एक
हिस्सा पैर पर
बांध दिया . बाप बेटी दोनों एक
जंगल
में पहुचे
बाप ने फावड़ा लेकर एक
गढ़ा खोदने लगा बेटी सामने बेठे -
बेठे
देख रही थी ,
थोड़ी देर बाद गर्मी के कारण
बाप
को पसीना आने लगा . बेटी बाप
के पास गयी और
पसीना पोछने के लिए
अपनी चुनरी दी... बाप ने
धक्का देकर
बोला तू दूर
जाकर बेठ। थोड़ी देर बाद जब बाप
गडा खोदते - खोदते थक गया ,
बेटी दूर से बैठे -बैठे देख
रही थी,
जब
उसको लगा की पिताजी शायद
थक
गये तो पास आकर
बोली पिताजी आप थक गये है .
लाओ
फावड़ा में खोद देती हुँ आप
थोडा आराम कर लो
मुझसे आप की तकलीफ
नहीं देखी जाती . यह सुनकर बाप
ने
अपनी बेटी को गले लगा लिया,
उसकी आँखों में आंसू
की नदिया बहने लगी ,
उसका दिल पसीज गया ,
बाप बोला : बेटा मुझे माफ़ कर दे ,
यह
गढ़ा में तेरे लिए ही खोद
रहा था .
और तू मेरी चिंता करती है , अब
जो होगा सो होगा तू हमेशा मेरे
कलेजा का टुकड़ा बन कर रहेगी में
खूब मेहनत करूँगा और
तेरी शादी धूम धाम से करूँगा...--- ( विकास राज )

बॉम्बे ब्लड ग्रुप

अमूमन हम चार तरह के ब्लड ग्रुप के बारे में जानते हैं- ए, बी, एबी और ओ। मगर एक और है, बॉम्बे ब्लड ग्रुप, जिससे संबंधित 15 माह के एक बच्चे का एम्स में दिल का सफल ऑपरेशन किया गया है। बॉम्बे एक दुर्लभ ब्लड ग्रुप है, और माना जाता है कि पूरे देश में इस ग्रुप वाले महज 200 लोग ही हैं। इस ब्लड ग्रुप के बारे में सर्वप्रथम जानकारी 1952 में डॉ वाई एम भिंडे, डॉ सी के देशपांडे और डॉ एच एम भाटिया ने दी। लैंसेट पत्रिका में छपे अपने लेख में उन्होंने बताया कि किस तरह एक मरीज के ब्लड टेस्ट में उन्हें खून के ऐसे ग्रुप का पता लगा, जो तब तक ज्ञात किसी ब्लड ग्रुप से मेल नहीं खाता था। चूंकि यह मामला बॉम्बे (अब मुंबई) में सामने आया था, इसलिए उन्होंने इसका नाम बॉम्बे ब्लड ग्रुप रखा। हालांकि आधिकारिक रूप से इस ब्लड ग्रुप को अब एचएच ब्लड ग्रुप कहा जाता है। यह इसलिए दुर्लभ माना गया है, क्योंकि इसमें एंटीबायोटिक्स बनाने के लिए जरूरी ′एच एंटीजन′ नहीं होती। एंटीजन लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर पाई जाती है और खून की अदला-बदली में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दुनिया भर में इस ग्रुप वाले महज 40 लाख लोग ही हैं।

लो आ गई पानी से चलने वाली बाइक, देती है 250 का माइलेज A bike that run on Water displayed, gives milage of 250kms/liter of water.

अब आने वाले समय हो सकता है आप पानी से चलने वाली बाइक की सवारी कर रहे हों, क्योंकि अब ऎसी बाइक बनाई जा चुकी है। इतना ही नहीं बल्कि यह बाइक पेट्रोल से चलने वाली बाइक्स को भी माइलेज के मामले में मात करती है। यह बाइक एक लीटर पानी में 250 किलोमीटर चलती है। पानी से चलने के कारण इस बाइक में किसी दुर्घटना का भी कोई खतरा नहीं। इसमें एक और खास बात ये है कि इस बाइक को बनाने में महज 1900 रूपए का खर्चा आया है।

पानी से चलने वाली इस बाइक को दसवीं के छात्र नित्याशीष भंडारी ने बनाया है तथा इसे 42वें स्टेट लेवल साइंस मैथमेटिक्स एंड इंवायरमेंट एग्जीबिशन-2015 में प्रदर्शनी के लिए रखा गया है। भंडारी ने पेट्रोल बाइक में बदलाव कर उसे पानी से चलने वाली बना दिया। उन्होंने इस बाइक को पानी चलाने के लिए ऑक्सी हाइड्रोजन सेल की तीन प्लेट्स 3/6 इंजन में फिट करवाई जो पानी को ऑक्सी हाइड्रोजन गैस में बदल देती हैं। हालांकि इस बाइक को एकबार स्टार्ट करने के लिए पेट्रोल की जरूरत होती है इसके बाद यह तुरंत गैस पकड़ लेती है। इसके बाद इंजन में जितनी गैस जनरेट होती है उतनी ही खर्च होती रहती है। नित्याशीष के मुताबिक इस किट को कार में भी लगाया जा सकता है जिससे छोटी कारें बहुत ही आसानी से चल सकती है। इस किट की एक और खास बात ये है इसमें इस्तेमाल करने के लिए पाने पानी की जरूरत नहीं बल्कि समुद्री जल या डिजिटल वॉटर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह समुद्र के एक लीटर पानी से 250 किलोमीटर चलती है। 

Tuesday 13 January 2015

Business Creativity



सभी साथियों को पोंगल की शुभ कामनाएं


कविता लेखक अनिल कम्बोज गढ़ी बीरबल, इंद्री, करनाल, हरियाणा

जो लडकिया लव के चककर मे पडकर अपने माँ-बाप को छोडकर
घर से भाग जाती है
मै उन लडकीयो के लिए कुछ कहना चाहुंग
बाबुल की बगिया में जब तू , बनके
कली खिली,
तुमको क्या मालूम की,
उनको कितनी खुशी मिली ।
उस बाबुल को मार के ठोकर, घर से भाग जाती हो,
जिसका प्यारा हाथ पकड़ कर, तुम पहली बार
चली ॥
तूने निष्ठुर बन भाई की, राखी को कैसे
भुलाया,
घर से भागते वक़्त माँ का आँचल याद न आया ?
तेरे गम में बाप हलक से, कौर निगल ना पाया,
अपने स्वार्थ के खातिर, तूने घर में मातम फैलाया ॥
.
वो प्रेमी भी क्या प्रेमी,
जो तुम्हें भागने को उकसाये,
वो दोस्त भी क्या दोस्त, जो तेरे यौवन पे ललचाये ।
ऐसे तन के लोभी तुझको,
कभी भी सुख ना देंगे,
उलटे तुझसे ही तेरा, सुख चैन
सभी हर लेंगे ॥
.
सुख देने वालो को यदि, तुम दुःख दे जाओगी,
तो तुम भी अपने जीवन में, सुख
कहाँ से पाओगी?
अगर माँ बाप को अपने, तुम ठुकरा कर जाओगी,
तो जीवन के हर मोड पर, ठोकर
ही खाओगी ॥
.
जो - जो भी गई भागकर, ठोकर
खाती है,
अपनी गलती पर, रो-रोकर अश्क
बहाती है ।
एक ही किचन में, मुर्गी के संग साग
पकाती है,
हुईं भयानक भूल, सोचकर अब पछताती है ॥
.
जिंदगी में हर पल तू,
रहना सदा ही जिन्दा,
तेरे कारण माँ बाप को, ना होना पड़े शर्मिन्दा ।
यदि भाग गई घर से तो, वे जीते जी मर
जाएंगे,
तू उनकी बेटी है यह, सोच - सोच
पछताएंगे ॥

जूट की रस्सी से बुनी चारपाई

अमृतसर जाएं तो इस बीस फुट के विरासती मंजे पर जरूर बैठें

अमृतसर.  जूट की रस्सी से बुनी इस चारपाई की लंबाई बीस फुट और चौड़ाई सोलह फुट है। इस पर पचास लोग आराम से बैठ जाते हैं। प्रजापत कुम्हार बिरादरी ने इस अनमोल धरोहर को सात दशकों से सहेज कर रखा है। इसे आप शहर के बीचोबीच स्थित पुराने टेलीफोन एक्सचेंज के पास रूढ़ सिंह की हवेली के सामने देख सकते हैं।  जगवीर सिंह कहते हैं कि यह विशाल चारपाई हमारे बुजुर्गों की निशानी है। इस पर बैठ कर ताश खेलने, शराब, तंबाकू या बीड़ी-सिगरेट पीने की सख्त मनाही है।

भागलपुर बिहार में पिछले 25 सालों से अकेले ये व्यक्ति बनाता आ रहा है पुल|

बिहार के एक और शख्स भुटकू मंडल भी जाने  जाते हैं. लेकिन जो निर्माण भुटकू करते हैं वह स्थायी नहीं है. वे हर साल एक नदी पार करने के लिए पुल बनातें हैं और हर साल बाढ़ उस पुल को बहा ले जाती है. यह सिलसिला पिछले 25 साल से अनवरत जारी है.

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भागलपुर शहर के लालूचक मोहल्ले से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर गंगा की एक सहायक नदी जमुनिया धार बहती है. इस धार के मोहनपुर घाट पर एक अस्थायी पुल दिखाई देती है. यह कच्ची पुल देखने में भले ही कोई साधारण पुल दिखाई दे, पर इस पुल को किसी भी तरह साधारण नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसे बनाने में एक आदमी का असाधरण लगन, परिश्रम, धैर्य औऱ परमार्थ की भावना लगी है. हजारों जिंदगियों में थोड़ी सी सहुलियत लाने वाली इस पुल को बनाने में भुटकू मंडल नाम का यह नाटे कद का आम आदमी पिछले 25 सालों से जुटा है.
सर पे गमछा बांधे, धोती और ब्लेजर पहने भुटकू को जब क्षेत्र के लोग नदी में ईंट और मिट्टी डालते देखते हैं तो उन्हें यह तसल्ली हो जाती है कि इस वर्ष भी गांव से शहर जाने में गंगा कि यह सहायक नदी रूकावट नहीं बनेगी. भूटकू घाट पर भूटकू की पुल जल्द ही बनकर तैयार हो जीएगी. जी हां पुल वाले इस इलाके को अब भुटकू घाट के नाम से ही जाना जाता है. क्षेत्र के लोगों के अनुसार हर साल इस 100 फिट लंबी पुल का निर्माण भुटकू पिछले 25 साल से करते आ रहें हैं.

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इस जुनून की शुरूआत कैसे हुई? यह प्रश्न पूछने पर भुटकू कहते हैं कि “मैं पहले पास के नाथनगर इलाक़े में सब्ज़ी बेचा करता था. फिर समाज के कहने पर मैं जमुनिया धार में नाव चलाने लगा. बारिश के बाद नदी का पानी कम हो जाया करता है. समाज के कहने पर मैने ही  पुल बनाने की जिम्मेदारी अपने उपर ली थी.”

गांव वाले कभी-कभार पुल बनाने के लिए श्रमदान भले कर देते हैं पर पुल बनाने से लेकर इसकी मरम्मत की पूरी ज़िम्मेदारी भुटकू अकेले ही निभातें हैं और फिर बरसात में जब यह पुल डूब जाती है तो भुटकू अपनी नाव से लोगों को पार भी उतारते हैं.

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आप जानना चाहेंगे कि इस काम के लिए भुटकू क्या मेहनताना लेते हैं तो पढ़िए इस बारे में खुद भुटकू का क्या कहना है. “नकद शायद ही कोई देता है, कोई अनाज देता है तो कोई सब्जी, घरेलू उपयोग के बाद जो अनाज और सब्जी बचती है उसे बेचकर घर की बाकी जरुरतें पूरा करते हैं.” पर भुटकू को इस काम के लिए सम्मान बहुत मिला है. पुल वाले इस इलाके को अब भुटकू घाट के तौर पर ही जाना जाने लगा है. यह सम्मान ही भुटकू की जीवन की सबसे बड़ी कमाई है. वे कहते हैं, “सब उन्हें दादा, बाबू, नाना कह कर बुलाते हैं. यह बहुत इज्जत की बात है.”

65 साल के इस बुजुर्ग को इस उत्साह से पुल बनाने में जुटा देख हैरानी होती है. भुटकू जानते हैं कि उनकी अथक परिश्रम से बनने वाली इस पुल को हर साल कि तरह इस साल भी बाढ़ बहा ले जाएगी फिर भी उनका हौसला जरा सा भी नहीं डिगता. जैसे कोई बच्चा समुद्र किनारे रेत का घर बना रहा हो यह जानते हुए कि अगली लहर उसे बहा ले जाएगी. सच ही है, ऐसे निस्वार्थ कार्य के लिए बच्चों सी निश्छलता तो चाहिए ही.

Sunday 13 October 2013

Wife carrying disabled Husband on her back.







Jesse Cottle joined the Marine Corps in August 2003, and lost his legs in Afghanistan while on patrol in 2009. He met his future bride, Kelly, while he was recovering from his wounds during a swim meet in San Diego. Kelly was a swimmer for Boise State, and she says Jesse was very different, and not just because of his legs, but just because of who he was. They got married last year and live in San Diego. They were visiting Kelly’s family back in Idaho and as they took family portraits, the photographer suggested a photo in the water. Kelly told Jesse to pop off your legs so she could take him in the water. She said it was something they often do, and the photog took a picture of Kelly carrying her husband. Jesse says the supportive messages they’ve been getting have been humbling.