भागलपुर
शहर के लालूचक मोहल्ले से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर गंगा की एक सहायक
नदी जमुनिया धार बहती है. इस धार के मोहनपुर घाट पर एक अस्थायी पुल दिखाई
देती है. यह कच्ची पुल देखने में भले ही कोई साधारण पुल दिखाई दे, पर इस
पुल को किसी भी तरह साधारण नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसे बनाने में एक आदमी
का असाधरण लगन, परिश्रम, धैर्य औऱ परमार्थ की भावना लगी है. हजारों
जिंदगियों में थोड़ी सी सहुलियत लाने वाली इस पुल को बनाने में भुटकू मंडल
नाम का यह नाटे कद का आम आदमी पिछले 25 सालों से जुटा है.
सर
पे गमछा बांधे, धोती और ब्लेजर पहने भुटकू को जब क्षेत्र के लोग नदी में
ईंट और मिट्टी डालते देखते हैं तो उन्हें यह तसल्ली हो जाती है कि इस वर्ष
भी गांव से शहर जाने में गंगा कि यह सहायक नदी रूकावट नहीं बनेगी. भूटकू घाट
पर भूटकू की पुल जल्द ही बनकर तैयार हो जीएगी. जी हां पुल वाले इस इलाके
को अब भुटकू घाट के नाम से ही जाना जाता है. क्षेत्र के लोगों के अनुसार हर
साल इस 100 फिट लंबी पुल का निर्माण भुटकू पिछले 25 साल से करते आ रहें
हैं.
इस
जुनून की शुरूआत कैसे हुई? यह प्रश्न पूछने पर भुटकू कहते हैं कि “मैं
पहले पास के नाथनगर इलाक़े में सब्ज़ी बेचा करता था. फिर समाज के कहने पर
मैं जमुनिया धार में नाव चलाने लगा. बारिश के बाद नदी का पानी कम हो जाया
करता है. समाज के कहने पर मैने ही पुल बनाने की जिम्मेदारी अपने उपर ली
थी.”
गांव
वाले कभी-कभार पुल बनाने के लिए श्रमदान भले कर देते हैं पर पुल बनाने से
लेकर इसकी मरम्मत की पूरी ज़िम्मेदारी भुटकू अकेले ही निभातें हैं और फिर
बरसात में जब यह पुल डूब जाती है तो भुटकू अपनी नाव से लोगों को पार भी
उतारते हैं.
आप
जानना चाहेंगे कि इस काम के लिए भुटकू क्या मेहनताना लेते हैं तो पढ़िए इस
बारे में खुद भुटकू का क्या कहना है. “नकद शायद ही कोई देता है, कोई अनाज
देता है तो कोई सब्जी, घरेलू उपयोग के बाद जो अनाज और सब्जी बचती है उसे
बेचकर घर की बाकी जरुरतें पूरा करते हैं.” पर भुटकू को इस काम के लिए
सम्मान बहुत मिला है. पुल वाले इस इलाके को अब भुटकू घाट के तौर पर ही जाना
जाने लगा है. यह सम्मान ही भुटकू की जीवन की सबसे बड़ी कमाई है. वे कहते
हैं, “सब उन्हें दादा, बाबू, नाना कह कर बुलाते हैं. यह बहुत इज्जत की बात
है.”
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साल के इस बुजुर्ग को इस उत्साह से पुल बनाने में जुटा देख हैरानी होती
है. भुटकू जानते हैं कि उनकी अथक परिश्रम से बनने वाली इस पुल को हर साल कि
तरह इस साल भी बाढ़ बहा ले जाएगी फिर भी उनका हौसला जरा सा भी नहीं डिगता.
जैसे कोई बच्चा समुद्र किनारे रेत का घर बना रहा हो यह जानते हुए कि अगली
लहर उसे बहा ले जाएगी. सच ही है, ऐसे निस्वार्थ कार्य के लिए बच्चों सी
निश्छलता तो चाहिए ही.
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