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Monday, 15 July 2013

160 साल पुरानी टेलीग्राम सेवा की हुई विदाई, समीर दीक्षित [Edited by: Malkhan Singh] | मुंबई, 14 जुलाई 2013 | अपडेटेड: 23:41 IST

देशभर में 14 जुलाई रात 9 बजे से 160 साल पुरानी टेलीग्राम सेवा बंद हो गई. जिस टेलीग्राम सेवा के इस्तेमाल से अंग्रेजों ने अपने व्यापर को बढ़ाया और भारतीयों ने अपनों तक संदेश भेजे, वो टेलीग्राम सेवा अब हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास बन गई है. बीएसएनएल ने आर्थिक दिक्कतों और स्टाफ की कमी को वजह बताकर इस सेवा को बंद करने का फैसला लिया.
पेशे से मैनेजर छुट्टी के दिन रविवार को अपने दोस्तों और घर से दूर परिवार वालों को संदेश भेजने में मशूगूल थे और वो भी टेलीग्राम के जरिए. जी हां, एसएमएस और ईमेल के जमाने में अनुज इतनी खुशी से टेलीग्राम भेज रहे थे, क्योंकि टेलीग्राम सेवा भारत में हमेशा के लिए बंद होने जा रही थी. 
टेलीग्राम सेवा के आखिरी मौके पर बैंकर अभिषेक अपने बच्चों के साथ बीएसएनएल पोस्ट आफिस पहुंचे. अभिषेक को अपनी नौकरी लगने की सूचना जिस टेलीग्राम के जरिए मिली, उसकी अहमियत और आखिरी बार भेजने के लिए वो अपने बच्चों को भी साथ लाए, ताकि वो भी इस स्वर्णिम इतिहास के साक्षी बनें.
साल 1863 में अंग्रेजों ने जिस टेलीग्राम सेवा को शुरू किया था, वो बाद में देश में संचार की जान बन गई. इसी टेलीग्राम सेवा के जरिए लोगों के जहां अपनी नौकरी लगने की सूचना मिलती थी तो वहीं किसी के बीमार होने का संदेश. होली, दिवाली, रमजान पर इसी टेलीग्राम के जरिए अपनों तक शुभकामनाएं संदेश पहुंचते थे. यही नहीं, आज भी सरकारी कामकाज, कोर्ट के फारमान और तमाम अहम संदेश टेलीग्राम सेवा के जरिए भेजे जाते हैं.
टेलीग्राम पर इतने भरोसे की वजह थी इसकी सटीकता, लेकिन बदलते दौर में तकनीक के आगे टेलीग्राम सेवा पिछड गई और अब जमाना मोबाइल का है. जहां सिर्फ 1 पैसे में देश के किसी कोने में संदेश भेजे जा सकते हैं, बात की जा सकती हैं, वहीं 30 शब्दों का एक टेलीग्राम भेजने के लिए 28 रुपए लगते थे.
आमदनी कम, खर्च ज्यादा
जाहिर है ऐसे में इस सेवा के संचालन में बीएसएनएस को जहां सालाना 100 करोड़ रुपये का खर्च आ रहा था तो आमदनी सिर्फ 75 लाख की ही हो रही थी. स्टाफ की कमी वो अलग. सेवा भले ही बंद हो रही हो, लेकिन इस सेवा के संचालन में जुडे लोग टेलीग्राम सर्विस के बंद होने से उदास हैं. पिछले 35 साल से टेलीग्राम सर्विस में काम कर रहे एस बी सिंह इस सेवा का दिल से कनेक्शन मानते थे.
मुंबई टेलीग्राम सर्विस विभाग अधिकारी एस बी सिंह ने कहा, 'मैंने 1978 में इसे ज्वाइन किया. इतने साल हो गए इस सर्विस में, इसमें मैंने खुशी और गम सब रंग देखे हैं.'

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