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Wednesday 18 February 2015

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है... Beautiful Example of Personal Creativity

लक्ष्मी भी जब सिर्फ 14 साल की थी तब उसके पड़ौस में रहने वाले 32 साल के एक आदमी ने उसके चेहरे पर सिर्फ इसलिए तेजाब डाल दिया क्योंकि लक्ष्मी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था। तब से अब तक एक फाइटर की तरह लड़ती रही है लक्ष्मी। फिलहाल स्टॉप एसिड अटैक के साथ जुड़ी लक्ष्मी ने अपना दर्द एक पत्र में बयां किया है।
लक्ष्मी की खुली चिट्ठी
"दोस्तों मैं चाहती हूं कि आप भी इस लेटर को पढ़ें। इस लेटर में बहुत सी अनकही, अनसुनी बातें होंगी। आप हमारे बारे में बहुत कुछ जानते हैं लेकिन बहुत सी बातों से आप अनजान हैं। और मैं यह बातें लिखकर आपके सामने ला रही हूं, आप ज़रूर पढ़िएगा।
जब मेरा जन्म हुआ पापा ने बहुत खुश होकर मेरा नाम लक्ष्मी रखा था। वो कहते रहते थे कि मेरे घर लक्ष्मी आई है। पापा को बेटियों से बहुत प्यार था। मैं ही उनकी बेटी और बेटा थी। बहुत प्यार करते थे। फिर मैं बड़ी होती गई। फिर हमारा एक घर हुआ। उसी घर में मेरा बचपन था। फिर तीन सालों बाद मेरे भाई का जन्म हुआ। पापा-मम्मी ने कभी कोई कमी नहीं की।
फिर मैं जब खुद थोड़ी-थोड़ी बड़ी होने लगी तो मेरे सपने शुरू हुए। मैं बहुत गाती थी, डांस करती थी। मेरा भाई कुछ भी बजाया करता था। मैं अपने घर में, चर्च में, मंदिरों में प्रोग्राम किया करती थी। कभी राधा बनती थी, कभी परी बनती थी। गाना गाकर, डांस करके बहुत खुश थी मैं। जिस अंधेरे से मुझे प्यार था आज उसी अंधेरे से बहुत डरती हूं। जो अंधेरा मुझे रौशनी की किरन दिखाता था, लड़ना सिखाता था आज वो अंधेरा मुझे कहीं दूर ले जाता है। जब मैं बड़ी होने लगी तो मन करने लगा कि मैं जो सपने देखती हूं, उन्हें पूरा किया जाए। मेरे घरवालों ने पूछा कि क्या बनना चाहती हो। मैंने कहा सिंगर। लेकिन उन्हें पसंद नहीं आया। तब मेरे मन में आया कि जब तक खुद बाहर नहीं निकलूंगी अपने लिए कुछ नहीं कर सकती। तब मैंने अपने मम्मी पापा से कहा मैं बाहर निकलना चाहती हूं, जॉब करना चाहती हूं। उन्होंने मना कर दिया।
मैंने उन्हें समझाया कि मैं अकेले नहीं निकलती हूं, डरती हूं, जब तक बाहर नहीं जाऊंगी कैसे चलेगा। बहुत समझाने के बाद उन्होंने हां कहा। लेकिन मुझे घर से ज्यादा दूर जाना मना था। तो मैंने खान मार्केट में एक बुक शॉप पर काम पकड़ा और वहीं मैंने सिंगिंग क्लास की बात भी कर ली। पर उस वक्त तक एडमिशन खत्म हो गए थे।
उसी बीच एक लड़का था जो 32 साल का था, मेरे पीछे पड़ा था। मुझे मालूम नहीं था कि उसके मन में क्या चल रहा है। उसकी फेमिली और मेरी फेमिली एकदम फेमिली जैसे थे। ढाई साल से जानते थे। और उस लड़के ने मुझे एसिड अटैक के दस महीने पहले शादी के लिए कहा। मैं हैरान हो गई। मेरा मन बहुद दुखी हो गया। मैंने साफ-साफ कहा कि मैं आपको भाई मानती हूं, आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं। मैंने कहा कि आज के बाद बात भी मत कर लेना। मैं उनसे बात तक नहीं करती थी। स्कूल से आते जाते, वो कहा करते थे कि बहुत सुंदर होती जा रही हो। मेरे घर के पड़ौस में ही उनका ऑफिस था। बहुत परेशान किया उन्होंने, पर मेरी हिम्मत ही नहीं हुई अपने घर में बताने की। लेकिन उन सब चीज़ो से बहुत दूर थी मैं, अपने ही सपनों में खोई थी मैं। ना जाने कहां से वो इंसान शैतान के रूप में आ गया और मेरी ज़िंदगी बरबाद कर गया। उन्होंने बहुत कोशिश की, बहुत अलग-अलग ढंग से पर वो हर बार नाकाम रहा। मैं और मेरे सपने.., वो और उसका शैतानी दिमाग..!
उसने 19 अप्रेल को मुझे एसएमएस किया, शादी करना चाहता हूं, प्यार करता हूं..., नहीं दिया मैंने वापस जवाब। फिर 21 अप्रेल को फोन आता है, तुम तो अपने मां बाप का नाम रौशन करना चाहती हो ना?... तब भी मैंने कुछ गलत जवाब नहीं दिया। बस हां कर दिया। मुझे जॉब में लगे ठीक से 15 दिन भी नहीं हुए थे। हर दिन की तरह 22 अप्रेल, 2005 को मैं खान मार्केट जा रही थी, कि वो लड़का और उसके भाई की गर्लफ्रेंड ने आकर तेजाब डालकर मेरे चेहरे के साथ, मेरे सपनों को भी चूर-चूर कर दिया।
 
मासूम मां-बाबा की गुड़िया, मासूम सपने लेकर एक आस पर बाहर निकली थी। उस तेजाब ने सब बरबाद कर दिया। उस गरीबी में उन्होंने सारे अरमान पूरे किये, बस क्या था, एक पछतावा था कि हमने क्यों बाहर जाने दिया। मुझे पछतावा था कि मैं क्यों निकली बाहर, क्या ज़रूरत थी।
पर मुझे मालूम नहीं था, तेजाब क्या होता है। मेरे मां-बाप मुझे देखकर अंदर ही अंदर रोते थे। कुछ नहीं कहते थे। वो भाई बहुत छोटी उमर में बिछड़ गया अपने परिवारवालों से क्योंकि उसकी दीदी हॉस्पिटल में तड़प तड़प कर मर रही थी। उसके साथ ही मां-पापा भी। पूरा परिवार बिखर सा गया था। लेकिन इतना बड़ा हादसा करने के बाद भी उन दोनों को शर्म नहीं आई। फिर भी उनके मन में यहीं था कि कब मर जाऊं। लेकिन मैं मर ना सकी।
ढाई महीने के बाद जब मैं अपने घर गई, तो अपने आपको शीशे में देखकर डर गई। पता है दोस्तों मेरे मन में यहीं खयाल आया कि यह मेरे साथ क्या हो गया। मैंने ऐसा क्या किया था। मुझे मालूम ही नहीं था, तेजाब क्या होता है। जब पता चला तब भी मेरे मन में ऐसा नहीं हुआ कि उनके साथ ऐसा हो। बस मेरे मन में यहीं था कि उनसे पूछो कि मेरे सिर्फ ना करने पर मुझे जला दिया...क्यों...? यह सवाल है उनके लिए..।
मैं कभी नहीं चाहूंगी कि किसी के भी साथ ऐसा हो। मैं उन दोनों से नफरत भी नहीं करती क्योंकि वो मेरी नफरत के भी काबिल नहीं।
दोस्तों तेज़ाब सिर्फ चेहरा ही नहीं जलाता पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देता है। एक-एक सुई, ऑपरेशन, टांके, दर्द….., पूरा शरीर, घर, सब कुछ बर्बाद कर देता है। सपने जो कभी जगाए थे, वो सब मर जाते हैं। वो सारे अपने जो कभी अपने होने का अहसास दिलाया करते थे, वो दोस्त-रिश्तेदार, सबकुछ यह तेजाब जला देता है। वो हंसी जो कभी दिल से हंसी गई थी, बहुत याद आती है। वो पल जो मम्मी-पापा, भाई इन सबके साथ बिताए थे, अब सपनों की तरह हो गए हैं। जो सब कुछ छीन गया..., क्या यहीं प्यार है..?
मेरी सोच प्यार के लिए- प्यार वो है, जिसमें हमारा प्यार खुश है। प्यार वो है जिसकी लड़ाई में प्यार हो, गुस्से में प्यार हो, प्यार वो है जिसकी ना में भी हमें खुशी नज़र आए। प्यार वो है, जो दिल हो, आत्मा हो। प्यार की खुशी को देखकर जलना प्यार नहीं। प्यार देकर छीनना नहीं है, प्यार दबाब नहीं है, प्यार तेजाब नहीं है।
प्यार कोई बन्दिश नहीं होती। प्यार के आपको लेके बहुत अरमान होते हैं। किसी को प्यार करो तो उन्हें दबाब में मत रखों। प्यार की सुनो, प्यार को कहो। हम प्यार को लेकर बहुत से दावे करते हैं, पर क्या होता है? ज़रूरी तो नहीं जिससे हम प्यार करते हैं वो भी आपसे प्यार करे..। अगर मन में कुछ बात हो तो वो कह देनी चाहिए पर किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।
मेरे साथ क्या हुआ आप सब देख सकते हैं। कुछ देर पहले वहीं इंसान प्यार के दावे कर रहा था और कुछ देर बाद उसी लड़की पर, जिससे इतना प्यार था, तेजाब डालकर जला दिया। नहीं वो प्यार हो ही नहीं सकता। तेजाब उसकी सोच में था, तेजाब उसके मन में था, प्यार तो था ही नहीं।
मैं आप सबसे यहीं कहना चाहती हूं कि प्यार कभी किसी की जान नहीं ले सकता। अगर किसी के लिए आपके मन में गुस्सा है तो उसे इसी तरह यहां ज़ाहिर कर सकते हैं जैसे मैं कर रही हूं, उनके लिए जिनके तेजाब में प्यार था।
मैं चाहती हूं कि वो लड़का अब जेल से बाहर आ जाए और खुशी-खुशी अपने बीबी-बच्चों के साथ रहे। उन्हें अच्छी परवरिश दे और वो अपने परिवार के साथ खुश रहे। मेरे मन में उनके लिए कुछ नहीं है बस यहीं जो उन्होंने किया वो माफी के काबिल नहीं। बस यहीं है कि उनको अहसास हो इस बात का कि जो किया वो गलत किया। मेरे साथ जो हुआ, मैं उसके बाद बाहर आई, मैंने उसके बाद चेहरा नहीं छुपाया। क्यों छुपाऊं, मैंने कुछ गलत नहीं किया। लेकिन जब आप जेल से बाहर आओगे तो आपको अपनी करतूतों पर बेहद दुख होगा। आज मेरे पापा नहीं है इस दुनिया में। वो अपने साथ बहुत दर्द लेकर गए हैं। आपने हमारी अच्छाईयों और मासूमियत का बहुत बड़ा फायदा उठाया, पर आप खुश रहो।"
लक्ष्मी
लक्ष्मी की कविता उस व्यक्ति के नाम जिसने उसका चेहरा तेजाब से जला डाला
"आपने तेजाब मेरे चेहरे पर नहीं,
मेरे सपनों पर डाला था।
आपके दिल में प्यार नहीं,
तेजाब हुआ करता था।
आप मुझे प्यार की नज़र से नहीं,
तेजाब की नज़र से देखा करते थे।
मुझे दुख है इस बात का कि आपका नाम,
मेरे तेजाबी चेहरे से जुड़ गया है।
वक्त इस दर्द पर कभी मरहम नहीं लगा पाएगा,
हर ऑपरेशन में मुझे तेजाब की याद दिलाएगा।
जब आपको यह पता चलेगा कि जिस चेहरे को आपने तेजाब से जलाया,
अब उस चेहरे से मुझे प्यार है,
जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,
वो वक्त आपको कितना रुलाएगा।
जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,
कि मैं आज भी ज़िंदा हूं,
अपने सपनों को साकार कर रही हूं...।"
लक्ष्मी
लक्ष्मी आज अपने सपनों को जी रही है वो आज खुश है उसने अपना प्यार पा लिया है अपना जीवन पा लिया है। आज वो उस जैसी कई और लड़कियों की हिम्मत और विश्वास बन चुकी है जिनके चेहरे को एकतरफा प्यार, पारिवारिक दुश्मनी या फिर निजी खुन्नस के कारण तेजाब डालकर जला डाला गया।

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