नवादा. बात 32 साल पहले की है। बिहार के नवादा जिले के धनवां गांव की पुष्पा की शादी गया जिले के फतेहपुर के धनगांव में लालनारायण सिंह के पुत्र विनोद कुमार के साथ हुई थी। तब पुष्पा 13 साल की थी। छह साल बाद उसका द्विरागमन हुआ। लेकिन 3 माह बाद पति की ब्लड कैंसर से मौत हो गई। पुष्पा पढ़ाई जारी रखना चाहती थी। लेकिन, ससुरालवाले तैयार नहीं थे। तब पुष्पा के पिता अर्जुन सिंह ने नवादा के आरएम डब्लू कॉलेज में ग्रेजुएशन में दाखिला कराया। पुष्पा को तीन साल बाद ननद की शादी में ससुरालवाले ले गए। शादी में ननद और ननदोसी के विवाह के कपड़े को पुष्पा ने छू लिया था, तब न केवल उन्हें फटकारा गया, बल्कि अशुभ बताते हुए उस कपड़े को धुलवाए गए। उस घटना के बाद उसके जीवन बदलाव आ गया।
द्विरागमन के बाद ही पति की मौत कैंसर से हो गई, लोगों ने लाख लांछन लगाए, सब-कुछ सहती रही, हार नहीं मानी
पुष्पा ज्ञान-विज्ञान समिति में ज्वाइन की। तब पुष्पा के मां-पिता को उसके ग्रामीण तरह-तरह का ताना देकर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। बदचलन और पतुरिया कहने लगे, पर पुष्पा और उसके परिवार के लोग विचलित नहीं हुए। वह आगे बढ़ती गई। वह ग्रेजुएशन और टीचर ट्रेनिंग की। स्वास्थ्य, शिक्षा और अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन को आगे बढ़ाया। वह राज्य महिला सेल की संयोजिका हुई।
2006 में जब वह चितरघट्टी पंचायत में टीचर बनी, तब भी सामाजिक अभियान जारी रखा। महिलाओं को आर्थिक उन्नति की राह बताने लगी। नाबार्ड के जरिए 50 से अधिक समूह का गठन करवाई। लिहाजा, 2014 में भदसेनी की एक समूह को राज्य का बेस्ट समूह का अवार्ड मिला। अराजक तत्व पुष्पा के व्यक्तिगत चरित्र पर लांछन भी लगाते रहे।
मिला था मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार, दो लाख नगद से हुई थीं सम्मानित
सामाजिक क्षेत्र में समर्पण के कारण 2009 में शिक्षा विभाग ने उसे राज्य साधन सेवी बनाया। 11 नवंबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार दिया। पुरस्कार के पहले भी लांछन लगाया गया। लेकिन वह रुकी नहीं।
दूसरी तरफ, पुष्पा अपने छोटे भाई मुकेश और बहन विनीता की पढ़ाई कराई। बहन की बगैर दहेज की शादी भी कराई। अंधविश्वास, अशिक्षा और कुपोषण के खिलाफ उसकी लड़ाई जारी है। पुष्पा से गांवों में विधवा जैसा कपड़ा और आचरण की उम्मीद करते हैं। मांस-मछली खाने पर सवाल उठाते हैं। लेकिन पुष्पा वह ऐसी किसी परंपरा को नहीं मानती।
नजरिया बदलें, हमारी भी इच्छाएं होती हैं
^मैं पसंद का कपड़े पहनती हूं और सार्वजनिक तौर पर मांस-मछली खाती हूं। वह बाल विवाह का विरोध करती रही। कई विधवा और अंतरजातीय विवाह करवाई। पिता का सहयोग नहीं मिला होता तो, अन्य महिलाओं की तरह घर के भीतर विधवा का जीवन जी रही होती। मेरा यही मानना है कि लोगों को विधवाओं के प्रति अपने नजरिए को बदलना चाहिए। उनकी भी इच्छाएं होती हैं। -
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