छोटे हरे राटौल आम जिसका स्वाद बेमिसाल है और इसकी लज्ज़त के दीवाने भारत, पाकिस्तान, सऊदी अरब, और अन्य देशों में रहते हैं।पाकिस्तान हर वर्ष अनवर रटौल आम का अच्छा-खासा निर्यात अरब देशों में करता है जबकि हिन्दुस्तान की सर-ज़मीन से उपजे इस आम की नायाब किस्म को वैज्ञानिकों, व्यापारियों, नीति-निर्माताओं का आज भी इंतज़ार है।
उत्तरप्रदेश के बागपत जिले की खेकड़ा तहसील के गांव राटौल के तीन परिवारों(सिद्दीकी, फरीदी, और सैय्यद) से राटौल आम का गहरा नाता है। सन् 1850 में राटौल गांव के रहने वाले हाकिम-उद-दीन अहमद सिद्दीकी जो कि अंग्रेज़ सरकार में डिप्टी कमिश्नर और मैजिस्ट्रेट पद पर नौकरी करते थे और सरकारी काम से अलग-अलग जगह जाया करते थे। इसलिए उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों से आमों की कई किस्में अपने बाग में लगाई।
सन् 1920 के आस-पास मोहम्मद आफाक फरीदी ने आम के एक पेड़ के कुछ पत्ते तोड़े और चबाए तो गाज़र का स्वाद आया। मालूम करने पर पता चला कि आम के उस बाग में पिछले सीज़न में गाज़र की खेती की गई थी। बाग के आस-पास गन्ने की खेती भी बहुतायात में थी और मोहम्मद फरीदी को इस किस्म में कुछ अलग स्वाद आया तो इसके पौधे अपने बाग में लगाने के लिए ले आये। आमों के ये पौधे गांव में ही रहने वाले सैयद अनवर-उल-हक के बाग में रोप दिये गए और मोहम्मद फरीदी इन पौधों की देखभाल करने लगे। जब सैयद अनवर-उल-हक को पता चला तो उन्होंने तुरंत उस आम के पेड़ पर अपना मालिकाना हक जताया और किस्म का नाम अनवर राटौल रख दिया।
1947 के भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण सिद्दीकी परिवार और अनवर-उल-हक का परिवार पाकिस्तान चला गया और आफाक फरीदी और उनके बच्चे राटौल में ही रहते रहे। अश्फाक फरीदी के बचपन के मित्र नवाब कालाबाग जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान के रावलपींडी शहर में रहते थे को फरीदी ने कुछ आम उपहार के तौर पर भेजे। बंटवारे के समय सैयद अनवर-उल-हक का परिवार राटौल आम के पौधे अपने साथ पाकिस्तान ले गया और वहां पर इसका बाग लगाया और बहुत मेहनत से इसका प्रचार-प्रसार किया। आज ‘अनवर-राटौल’ दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है।
आम के शौकीन लोगों के बीच राटौल आम न सिर्फ अपने स्वाद, बल्कि खुशबू के लिए भी जाना जाता है। राटौल आम पर अमर शर्मा के अपने https://audioboom.com/boos/3392082- पर जिक्र किया है। राटौल गांव के बाशिंदे किसानों से बात करने पर पता लगा कि राटौल आम की खासियत यह है कि जब ये आम टपक कर पेड़ से अपने-आप नीचे गिरते हैं और यदि उन आमों में से एक आम को भी 12 घंटे के लिए कमरे में बंद कर दिया जाये तो 12 घंटे बाद कमरे को खोलने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो कमरे में बहुत ज्यादा आम रखे हुए हों और उस एक आम की महक से ही पूरा कमरा महक जाता है। यही कारण है कि राटौल आम की खुशबू अन्य आमों से भिन्न है।
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्व विद्यालय के पूर्व लैक्चरर और राटौल गांव में आम के बाग के मालिक साहब सिद्दीकी से बात करने पर हमें राटौल आम की खूबी और बारीकियों का पता चलता है। सिद्दीकी साहब ने बताया कि जिस प्रकार मोटी खाल के लोग आजकल ज्यादा कामयाब होते हैं क्योंकि जो पतली चमड़ी या नरम मिज़ाज़ के लोग होते हैं वे नहीं चल पाते। इसी तरह इस आम का भी हाल है क्योंकि यह आम नरम मिज़ाज़ का है तो ज्यादा दूर तक नहीं जा पाता। इसलिए ज्यादा लोगों तक भी नहीं पहुँच पाता और जल्दी ही खराब हो जाता है। उन्होंने बताया कि राटौल आम एक तुखमी आम है इसीलिए यह सीधा गुठली से पैदा होता है।
गांव के बाशिंदे और दिल्ली विश्व विद्यालय के इतिहास के भूतपूर्व प्रोफैसर ज़ाहूर सिद्दीकी जी बताते है। कि राटौल आम की किस्म को पैदा करने में दो आदमियों का सबसे बड़ा योगदान रहा एक हाकिम-उद-दीन साहब और दूसरे उनके भाई आफताब सिद्दीकी। राटौल गंव में उनके दो बाग नूर बाग और भोपाल बाग बहुत मशहूर हैं वहां आम की अलग-अलग किस्में लगाई गई है। लेकिन बड़े पैमाने पर नर्सरी के तौर पर शेख मोहम्मद अफाक फरीदी ने अपनी नर्सरी में 400 से ज्यादा किस्म लगाई थी।
ये वही दौर था जब मुल्तान के व्यापारियों ने समझ लिया था कि राटौल आम एक बेहतरीन किस्म है और उन्होंने इसकी किस्में मंगवानी शूरू कर दी। ज़ाहूर सिद्दीकी ने बताया कि अनवर-उल-हक के बाग में यह किस्म लगाई गई थी और बंटवारे के बाद उनके बड़े बेटे अबरारूल-हक पाकिस्तान चले गए और अपने पिता के नाम को प्रसिद्ध करने के लिए यह किस्म राटौल गांव से लाई गई थी, इसलिए उन्होंने इस किस्म का नाम ‘अनवर राटौल’ रखा।
भारत से पाकिस्तान पहुँचे राटौल आम के साथ एक बेहद दिलचस्प किस्सा जुड़़ा हुआ है। पाकिस्तान के छठे राष्ट्रपति मोहम्मद जिया-उल-हक ने एक बार भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी को आम के फलों की टोकरी भेजी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी को आम बहुत अच्छे लगे और फिर इन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति को आम भेजने के लिए धन्यवाद पत्र लिखा तथा साथ ही पत्र में उन आमों की किस्म की प्रशंसा भी की। यह पत्र उस दौर में प्रमुख प्रकाशनों में प्रकाशित भी हुआ लेकिन एक आदमी की नाराजगी ने इस पत्र को आकर्षण का केन्द्र बना दिया।
इस आदमी का नाम था जावेद फरीदी इन्होंने इंदिरा गांधी जी से इस बारे में बताने के लिए दिल्ली जा कर मुलाकात भी की और उन्हें समझाया कि किस प्रकार यह किस्म भारत में विकसित हुई और यह वास्तव में पाकिस्तान द्वारा स्वयं विकसित की गई किस्म नहीं है। ‘‘जावेद फरीदी ने कहा कि यह सब कुछ विभाजन के दौरान हुआ है।“ उन्होंने इंदिरा गांधी जी को बताया कि किस प्रकार बंटवारे के बाद अनवर-उल-हक के बड़े बेटे अबरारूल-हक पाकिस्तान चले गए और अपने पिता के नाम को प्रसिद्ध करने के लिए इस किस्म का नाम ‘अनवर राटौल’रखा।
राटौल आम किस कदर लोगों के दिलों दिमाग पर हावी था, यह राटौल गांव की निवासी निशाद सैय्यदा द्वारा बताये गये एक किस्से से पता चलता है। निशाद सैय्यदा जी ने बताया कि बंटवारे के बाद जब रास्ते खुले तो वे अपनी अम्मी के साथ सन् 1953 में अपने मामाओं से मिलने पाकिस्तान गई, तो हम बतौर तोहफा उनके लिये राटौल आम की पेटी ले गये थे। लाहौर में हम अपने चाचा जी के पास रूके, तो जो आम हम ले गये थे वो लाहौर में ही खत्म हो गये। फिर जब वे कराची गये अपने मामा के पास तो इनके मामा जी इनकी अम्मी से बोले, ‘बहन कम से कम तुम आम की गुठलियां ही ले आती तो हम उसकी खुशबू से ही मुखमिन हो जाते।’ इस किस्से से हमें पता चलता है कि किस कदर राटौल आम लोगों द्वारा पसंद किया जाता है।
राटौल के स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चलता है कि मौजूदा दौर में बाग के आस-पास कई भठ्ठे बन गये हैं जिससे बागों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। दिल्ली के विस्तार के कारण जमीनों के रेट बहुत अधिक बढ़ गये हैं। बागों के अस्तित्व पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। राटौल आम के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं :
1. कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा राटौल आम पर अनुसंधान प्रोजैक्ट स्थापित करके इसके संरक्षण और विकास की दिशा में कार्य किया जा सकता है।
2. उत्तर प्रदेश सरकार राटौल आम के लिए विशेष जोन घोषित करने के बारे में विचार करके कोई नीति बनानी चाहिए।
3. APEDA वाणिज्य मंत्रालय को मिल कर विदेशों में राटौल आम की मांग को पूरा करने में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने की नीति पर विचार करना चाहिये।
4. राटौल आम की सम्पूर्ण बागवानी यदि जैविक ढंग से होने लगे और इसके प्रमाणीकरण व्यवस्था पर भी ध्यान देकर उसे प्राप्त किया जाये तो राटौल आम के विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ सकती है।
5. भारत सरकार के भगौलिक उपदर्शन एक्ट, 1999 द्वारा स्थापित भागौलिक उपदर्शन रजिस्ट्री की धारा 2(1) के तहत इसके पंजीकरण के प्रयास किये जाने चाहियें।
6. अभी हाल ही में 20 मई 2015 को पारित जिनेवा कानून जिसका अभिप्राय लिस्बन समझौता से है के अंतर्गत फलों के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भागौलिक उपदर्शन के पंजीकरण की व्यवस्था की जानी चाहिये।
7. राटौल आम पैदा करने वाले बागवानों की एक प्रोड्यूसर कंपनी का गठन कराया जाना चाहिए।