रोशनलाल विश्वकर्मा मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मेख गांव में रहते हैं। वह एक किसान हैं लेकिन लोग इनको एक नवप्रर्वतक के रूप में जानते हैं। वह ज्यादा पढ़े-लिखे तो नहीं है लेकिन उन्होंने वो किसान हैं, लेकिन लोग उनको इनोवेटर के तौर पर जानते हैं, वो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन उन्हांेने एक ऐसी मशीन विकसित की है जिसका फायदा आज दुनिया भर के किसान उठा रहे हैं। रोशनलाल विश्वकर्मा ने पहले नई विधि से गन्ने की खेती कर उसकी लागत को कम और उपज को बढ़ाने का काम किया, उसके बाद ऐसी मशीन को विकसित किया जिसका इस्तेमाल गन्ने की ‘कलम’ बनाने के लिए आज देश में ही नहीं दुनिया के दूसरे देशों में किया जा रहा है।
रोशनलाल विश्वकर्मा ने ग्यारवीं कक्षा तक की पढ़ाई पास ही के एक गांव से की। उनका परिवार का मूल व्यवसाय खेती था और पढ़ाई छोड़ने के बाद लिहाजा वो भी इसी काम में जुट गए। खेती के दौरान उन्होने देखा कि गन्ने की खेती में ज्यादा मुनाफा है। लेकिन तब किसानों को गन्ना लगाने में काफी लागत आती थी इसलिए बड़े किसान ही अपने खेतों में गन्ने की फसल उगाते थे। तब रोशनलाल ने ठाना कि वो भी अपने दो-तीन एकड़ खेत में गन्ने की खेती करेंगे इसके लिए उन्होने नये तरीके से गन्ना लगाने का फैसला लिया। रोशनलाल का कहना है कि उनके मन में ख्याल आया कि जैसे खेत में आलू लगाते हैं तो क्यों ना वैसे ही गन्ने के टुकड़े लगा कर देखा जाए। उनकी ये तरकीब काम आ गई और ऐसा उन्होने लगातार 1-2 साल किया। जिसके काफी अच्छे परिणाम सामने आए। इस तरह उन्होने कम लागत में ना सिर्फ गन्ने की कलम को तैयार किया बल्कि गन्ने की पैदावार आम उपज के मुकाबले 20 प्रतिशत तक ज्यादा हो गई। इतना ही नहीं पहले 1 एकड़ खेत में 35 से 40 क्विंटल गन्ना रोपना पड़ता था और इसके लिए किसान को 10 से 12 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ते थे। ऐसे में छोटा किसान गन्ना नहीं लगा पाता था। लेकिन रोशनलाल की नई तरकीब से 1 एकड़ खेत में केवल 3 से 4 क्विंटल गन्ने
की कलम लगाकर अच्छी फसल हासिल होने लगी।
इस तरह छोटे किसान भी गन्ना लगा सकते थे बल्कि उसके कई दूसरे फायदे भी नज़र आने लगे। जैसे किसान का परिवहन का खर्चा काफी कम हो गया था क्योंकि अब 35 से 40 क्विंटल गन्ना खेत तक ट्रैक्टर ट्रॉली में लाने ले जाने का खर्चा बच गया था। इसके अलावा गन्ने का बीज उपचार भी आसान और सस्ता हो गया था। धीरे-धीरे आसपास के लोग भी इसी विधि से गन्ना लगाने लग गये। जिसके बाद अब दूसरे राज्यों में भी इस विधि से गन्ना लगाया जा रहा है।
रोशनलाल जी यहीं नहीं रूके उन्होने देखा कि हाथ से गन्ने की कलम बनाने का काम काफी मुश्किल है इसलिए गन्ने की कलम बनाने वाली मशीन बनाकर रोशनलाल विश्वकर्मा ने इंजीनियरों को दी चुनौती उन्होने ऐसी मशीन के बारे में सोचा जिससे ये काम सरल हो जाए। इसके लिए उन्होने कृषि विशेषज्ञों और कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह भी ली। उन्होंने बताया कि वे खुद ही लोकल वर्कशॉप और टूल फैक्ट्रीज में जाते और मशीन बनाने के लिए जानकारियां इकट्ठा करते थे। तब कहीं जाकर वो ‘शुगरकेन बड चिपर’ मशीन विकसित करने में सफल हुए। सबसे पहले उन्होने हाथ से चलाने वाली मशीन को विकसित किया। जिसका वजन केवल साढ़े तीन किलोग्राम के आसपास है और इससे एक घंटे में 300 से 400 गन्ने की कलम बनाई जा सकती हैं। फिर धीरे धीरे वह इस मशीन में भी सुधार करते रहे और इन्हांने हाथ की जगह पैर से चलने वाली मशीन बनानी शुरू की। जो एक घंटे में 800 गन्ने की कलम बना सकती है।
आज उनकी बनाई मशीनें मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र, यूपी, उड़ीसा, कर्नाटक, हरियाणा और दूसरे कई राज्यों में भी बिक रही है। उनकी इस मशीन की मांग ना सिर्फ देश में बल्कि अफ्रीका के कई देशों में भी बहुत बढ़ रही है। रोशनलाल की बनाई गई इस मशीन के विभिन्न मॉडल 1500 रुपये से शुरू होते हैं।
फिर शुगर फैक्ट्री और बड़े फॉर्म हाउस ने रोशनलाल जी से बिजली से चलने वाली मशीन बनाने की मांग कीे। जिसके बाद उन्होंने बिजली से चलने वाली मशीन बनाई जो एक घंटे में दो हजार से ज्यादा गन्ने की कलम बना सकती है। अब उनकी इस मशीन का इस्तेमाल गन्ने की नर्सरी बनाने में होने लगा है। इस कारण कई लोगों को रोजगार भी मिलने लगा है। किया हुआ है। अपनी उपलब्धियों के बदौलत रोशनलाल ना सिर्फ विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं बल्कि खेती के क्षेत्र में बढिया खोज के लिए उनको राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। फिर उन्हांेने ऐसी मशीन को विकसित किया जिसके इस्तेमाल से आसानी से गन्ने की रोपाई भी की जा सकती है।
इस मशीनको ट्रेक्टर के साथ जोड़कर 2-3 घंटे में एक एकड़ खेत में गन्ने की रोपाई की जा सकती है। जहां पहले इस काम के लिए ना सिर्फ काफी वक्त लगता था बल्कि काफी संख्या में मजदूरों की जरूरत भी पड़ती थी। ये मशीन निश्चित दूरी और गहराई पर गन्ने की रोपाई का काम करती हैं। इसके अलावा खाद भी इसी मशीन के जरिये खेत तक पहुंच जाती है। रोशनलाल ने इस मशीन की कीमत 1लाख 20 हज़ार रुपये तय की है जिसके बाद बाद विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्र और शुगर मिल ने इस मशीन को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। साथ ही उन्होने इस मशीन के पेटेंट के लिए आवेदन भी किया हुआ है। अपनी उपलब्धियों के बदौलत रोशनलाल ना सिर्फ विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं बल्कि खेती के क्षेत्र में बढिया खोज के लिए उनको राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
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