आपने अक्सर देखा होगा कि बच्चे अपने खिलौनों से खेलते-खेलते कुछ समय बाद उसके बारे में जानकारियां जुटाने की कोशिश करने लगते हैं। मसलन-कैसा बना है? क्या-क्या इस्तेमाल हुआ है बनाने में? वगैरह-वगैरह। हम सब के जीवन में ऐसे दौर आते हैं। शायद यही वजह है कि घरों में सबसे बदमाश बच्चों के खिलौने सबसे पहले टूटते हैं। कुछ ऐसा ही बचपन शुभम मल्होत्रा का भी गुज़रा। दसवीं पास करने के बाद शुभम के पास भविष्य के लिए दो विकल्प थे। पहला डॉक्टर और दूसरा इंजीनियर बनना। शुभम ने इंजीनियरिंग को चुना। हर चीज़ की गहनता से पड़ताल करना और खोज करने का गुण शुभम के अंदर अपने भाई से आया। उनके भाई खराब इलेक्ट्रॉनिक चीजों को खुद ही ठीक करने का प्रयास करते-करते कई नई चीजों के बारे में गहराई से जानने की कोशिश करते। दोनों भाईयों ने मिलकर खुद ही घर में इंटरकॉम सिस्टम भी बनाया था।
11वीं कक्षा में शुभम आईआईटी की तैयारी करने कानपुर आ गए। यह उनके लिए नया अनुभव था जहां हजारों बच्चे एक ऑडिटोरियम में साथ पढ़ाई करते थे। यहां शुभम ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा का प्री पास कर लिया लेकिन मेन्स में पास नहीं हो पाए। इसके बाद शुभम ने बिट्स गोआ में प्रवेश लिया। यहां शुभम ने कॉलेज में बिट्स और बाईट्स नाम का कंप्यूटर क्लब ज्वाइन किया, जिसने उनकी बहुत मदद की। बिट्स गोआ के छात्रों ने तय किया कि वे कुछ नया करेंगे और उन्होंने रीयल सॉफ्टवेयर पर काम करना शुरु किया। फिर उन्होंने सोचा, क्यों न किसी नए प्रोजेक्ट पर काम किया जाए। उनकी इस योजना के लिए प्रशासन ने उन्हें अनुमति दे दी। उन्होंने कैंपस में ही एक सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट सेंटर खोला। अब शुभम और उनके मित्रों का अपना एक लैब था जहां वे लोग 24 घंटे बिना किसी रोकटोक के काम कर सकते थे। शुभम ने एक वोटिंग सॉफ्टवेयर तैयार किया जिसका उन्होंने कॉलेज इलेक्शन में प्रयोग किया, उनके इस काम की काफी सराहना हुई। बिट्स गोआ के अपने प्रथम वर्ष में वह ग्रिड कंप्यूटिंग की तरफ काफी आकर्षित हुए। द्वितीय वर्ष में शुभम ने माइक्रोसॉफ्ट इमेजिन कप में भाग लिया उनकी टीम ने एक 'एल बोट' का निर्माण किया जो पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दे सकता था। इस प्रतियोगिता में उनकी टीम को द्वितीय पुरस्कार मिला और पुरस्कार राशि के तौर पर अस्सी हजार रुपए उन्हें प्राप्त हुए जो कि चार लोगों की टीम के लिए काफी अच्छी राशि थी। उसके बाद शुभम और उनकी टीम ने आईआईटी कानपुर द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में भाग लिया जहां उन्होंने दिन रात काम किया और अंत में उन्हें प्रथम पुरस्कार दिया गया।
आमतौर पर इंजीनियरिंग के छात्रों की कैंपस रिक्रूटमेंट हो जाती है लेकिन शुभम की नहीं हो पाई। उन्हें एक ऑफर सीएससी से आया जिसकी ज्वाइनिंग डेट काफी लेट थी। इस दौरान उनकी माइक्रोसॉफ्ट में भी बातचीत चली लेकिन बात नहीं बनी। बीएचईएल में नौकरी की संभावनाएं थीं लेकिन शुभम पब्लिक सेक्टर कंपनी के साथ नहीं जुडऩा चाहते थे। फिर शुभम और उनके मित्रों ने व्हाइट हैट सिक्योरिटी नाम से एक कंपनी शुरू की जोकि स्कूल और कॉलेज में सिक्योरिटी की वर्कशॉप आयोजित करती थी। लेकिन ये प्रयोग ज्यादा समय नहीं चल पाया क्योंकि इस दौरान उनके कुछ मित्रों की नौकरी लग गई और उन्होंने यह काम छोड़ दिया। इस दौरान शुभम की मुलाकात कृष्णा से हुई जो कि कैपिलेरी कंपनी में उच्च पद पर थे। कृष्णा ने शुभम को कैपिलेरी कंपनी ज्वाइन करने का ऑफर दिया। शुभम का काम दिल्ली की विभिन्न दुकानों पर क्लाइंट सॉफ्टवेयर इंस्टाल करना था। एक बार कोलकाता से एक सॉफ्टवेयर जिस सीडी से आया वो टूट गई और नई सीडी मंगवाने के लिए समय नहीं था तब शुभम ने अपनी सूझबूझ से इस दिक्कत को दूर किया। शुभम ने यहां तीन साल काम किया और कंपनी के लिए काफी उपयोगी साबित हुए। जब उन्होंने कंपनी ज्वाइन की थी तब कंपनी में मात्र दस लोग काम कर रहे थे और तीन साल के बाद संख्या सत्तर हो गई थी। शुभम को यहां रोज एक जैसा काम करना पड़ रहा था जिसे करते करते वे अब बोर हो चुके थे साथ ही थक भी गए थे इसलिए उन्होंने कैपिलेरी कंपनी छोड़ दी। फिर उसके बाद भारती सॉफ्ट बैंक ज्वाइन किया। शुभम ने यहां पर एंड्रोइड के लिए एक गेम 'सौंग क्वेस्ट' बनाया जो बहुत हिट रहा और एक मिलियन से ज्यादा डाउनलोड किया गया।
भारती सॉफ्ट बैंक में नौकरी करने के दौरान उन्हें धीरे-धीरे समझ आने लगा कि स्मार्ट टेलिविजन उपभोक्ताओं को किन -किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लोगों द्वारा प्रयोग किया गया रिमोर्ट इतना सुविधाजनक नहीं होता जितना उसे होना चाहिए। तब शुभम ने सोचा कि क्यों न वो इसी विषय पर कुछ काम करें ताकि उपभोक्ता को स्मार्ट टेलिविजन चलाने में आसानी हो। इसके बाद शुभम ने इसी विषय पर काम करना शुरु कर दिया। शुभम ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर 'टीवी' नाम की एक कंपनी की शुरुआत की जिसके वे सहसंस्थापक बने। फिर उन्होंने एक बॉक्स का निर्माण किया जो इस्तेमाल करने में काफी आसान और सुविधाजनक था। अब लोगों को अपने स्मार्ट टेलिविजन को कंट्रोल करने में आसानी हो रही थी। बॉक्स का साइज काफी बड़ा था जिसे बाद में छोटा कर वे एक डौंगल के आकार तक ले आए। 'टीवी' एक ऐसा डिवाइस है जो टेलिविजन पर आसानी से फिट हो जाता है। इसके बाद एक सॉफ्टवेयर डाउनलोड करना होता है जिसके बाद उपभोक्ता आसानी से अपने मोबाइल से ही टेलिविजन को कंट्रोल कर सकता है। मोबाइल के जरिए अपने टेलिविजन सेट में अपने मनपसंद वीडियो व फोटो देख सकता है। इंटरनेट चला सकता है और वो भी बड़ी आसानी से। यह एक ऐसा काम था जिसे शुभम हमेशा से करना चाहते थे।
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