हाथों में ऐसी कलात्मकता की लकड़े में प्राण फूंक कर सजीवता का चैला पहनाने दें और लोगों के मुंह से प्रशंसा में निकलें वाह-वाह। कमोबेश कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है निकटवर्ती नून गांव में। यहां के रहने वाले रतनलाल सुथार व देवीलाल सुथार के कारखानों में लकड़ी पर नक्काशी का काम लकड़ी की कीमत को कई गुणा बढ़ाकर विदेशों में निर्यात होकर भारतीय हस्तकला का परिचय दे रहा है।
रतनलाल सुथार ने बताया कि कारखाने में लकड़ी के हाथी, घोड़ा, झूले, मुंह देखने वाले दर्पण की फ्रेम, नक्काशी की हुई कुर्सी व टेबल सहित नाना प्रकार की सामग्रियां निर्मित होकर विदेशों में निर्यात की जा रहा है।
मेहनत की कमाई : हस्तकला में महारथ रखने वाले देवीलाल सुथार का कहना है कि हस्तकला का धंधा मेहनत का धंधा है। इस काम से घर चलने जितने मजदूर व नफा हो जाता है। सामग्री निर्माण का ऑर्डर समय पर मिल जाता है, तो काम की गति बनी रहती है। वरना काम के अभाव में खाली हाथ बैठने पड़ता है।
कद्र में आ रही कमी : रतनलाल सुथार का कहना है कि समय के साथ लोगों के द्वारा हस्तकला की कद्र में कमी आ रही है। कलाकार व कलाकृति की कीमत मशीनी युग में गिर चुकी है। लोग अब कलाकार को उस नजर से नहीं देखते है जो पहले देखा करते थे।
सरकार दे प्रोत्साहन : कलाकारों का कहना है कि सरकार को हस्तकला के विलुप्त होने पर ध्यान देना चाहिए। यह कला एकबार विलुप्त होने पर बार-बार जीवित नहीं हो सकती है। भारत सदियों से हस्तकला के क्षेत्र में अग्रणी रहा है। इसे पुन; अग्रणी बनाने पर सरकार प्रोत्साहन दें।
No comments:
Post a Comment