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Saturday, 25 March 2017

तितलियों से फूलेगा-फलेगा हमारा संसार

तितलियाँ सदियों से मनुष्यों को आकर्षित करती आई है। उनके रंग-बिरंगे पंख हमे प्रकृति की खूबसूरती दर्शाते है। बच्चों को उनका पीछा करना अच्छा लगता है, कवि उनकी खूबसूरती से मोहित होकर कवितायें लिखते है। उनका प्रवास चक्र कई बुद्धिमान शोधकर्ताओं और वेज्ञानिकों के लिए अभी भी एक अबूझ पहेली है और विषम खोज का विषय है। प्रकृति प्रेमियों के लिए तितलियाँ जीवन का आधार है, जिनहोने धरती पर जीवन को बनाए रखने मे अपना अनमोल योगदान दिया है। वे इसके लिए कृतज्ञ है और शायद समय आ गया है कि हम भी इन रंग-बिरंगे खूबसूरत जीवों के प्रति अपनी कृतज्ञता दर्शाये और अपना कर्तव्य निभाए, जिससे इन्हे विलुप्त होने से बचाया जा सकें। सममिलन मेंगलुरु के समीप एक छोटे से कस्बे बेलुवई मे अपने इस कर्तव्य को निभाने का प्रयास कर रहे है।


सममिलन कहते है कि “क्या आप जानते है, पूरी धरती पर 18000 तरह कि तितलियाँ पायी जाती है, इनमे से भारत मे 1500 तरह कि तितलियाँ पायी जाती है और पश्चिमी घाट मे लगभग 340। ये तितलियाँ हमारे पारिस्थितिक तंत्र का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये प्राकृतिक भोजन तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, परागीकरण मे सहायक है, और तितलियों कि संख्या सीधे तौर जैव विविधता कि पूरक है। जितनी ज्यादा तितलियाँ हमारे आस-पास होगी उतना ही अच्छा और मजबूत हमारा पारिस्थितिक तंत्र होगा।”


सममिलन का बचपन हरे-भरे जंगलों, नदी-नालों के समीप खेलते हुए बिता। वे बचपन से ही अपने घर के पास पायी जाने वाली जैव विविधता के प्रति आकर्षित रहे है। नदी पर जाकर मछलियाँ पकड़ना, पेड़-पौधों और उनपर आश्रित विभिन्न जीवों के साथ वक़्त बिताना उनके जीवन को समझना उनका शौक रहा है। पर तितलियों मे उनकी रुचि उनके कॉलेज के समय जन्मी, जब कॉलेज मे उनके एक प्राध्यापक ने उन्हे स्थानीय तितलियों पर शोध करने का कार्य दिया था। उसके बाद जब भी उनको समय मिलता वे अपने आस-पास के क्षेत्र मे तितलियों को खोजते हुए उनके बारे मे और ज्यादा जानकारी जुटाने लगे। पर जैसा की हर आम भारतीय युवा के साथ होता है, उनके पास भी कोई दिशा नहीं थी कि उन्हे भविष्य मे क्या करना है और उससे भी महत्वपूर्ण उन्हे बिलकुल पता नहीं था कि उन्हे क्यों करना है। इसी दिशाहीनता की वजह से उन्होने स्नातक के पश्चात होटल मैनेजमेंट मे उच्च स्नातक किया और बेंगलुरु मे नौकरी करने लगे। कुछ समय बाद उन्हे मेंगलुरु के ही एक कॉलेज मे होटल मैनेजमेंट के अध्यापक की नौकरी मिल गयी। जब वे मेंगलुरु लौट के आए तो उनका तितलियों के प्रति प्रेम पुनः जाग्रत हो गया और अपने खाली समय मे वे उनपर अधिक से अधिक शोध और पढ़ने लगे। उनके जीवन मे अहम मोड़ तब आया जब वे भारतीय तितलियों पर आइज़ेक खेमीकर द्वारा लिखी गयी एक किताब पढ़ रहे थे। उस किताब मे बताया गया था की कैसे हम अपने घर के आस-पास तितलियों को आकर्षित कर सकते है और उन्हे बचा सकते है। तब 2011 मे उन्होने अपनी ज़मीन पर कुछ-कुछ प्रयोग करना शुरू किया और बटरफ्लाइ पार्क की नींव रखी। अपने प्रयोगों की सफलता को देखकर उन्होने 2013 मे आधिकारिक तौर SS Butterfly पार्क को लोगों के लिए खोल दिया। वे बताते है कि “ इस पार्क का उद्देश्य यहाँ की स्थानीय तितलियों को एक सुरक्षित और प्राकृतिक माहौल प्रदान करना है जिससे उनकी संख्या मे ज्यादा से ज्यादा इजाफ़ा हो सके, उनपर शोध करना, लोगों को खासतौर पर युवाओं को तितलियों के प्रति जाग्रत करना और ज्यादा से ज्यादा युवाओं को तितलियों को बचाने की मुहिम मे शामिल करना है। अब हम तितलियों के जीवन पर एक डॉक्युमेंट्री बना रहे है, जिससे हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस बारे मे जाग्रत कर सकेंगे।”


सममिलन आगे कहते है कि “तितलियों के हमारे जीवन से चले जाने का सबसा बड़ा कारण हम ही है। हमने अपने निजी स्वार्थ के लिए जंगलों को काट दिया है, शहरों के अंधाधुंध विकास के लिए वहाँ से पेड़ो का नामो-निशान मिटा रहे है। हमने उनसे उनका घर छिन लिया है। यहीं नहीं गाँवो जहाँ थोड़ी बहुत हरियाली बची हुई है वहाँ पर हमने रसायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग कर के उनके घरों को जहरीला बना दिया है। कीटनाशकों की वजह से उनके अंडे उचित वातावरण होने के बावजूद पनप नहीं पाते है, और जो कभी गलती से पनप भी गए तो जहर की वजह से इल्लियाँ(caterpillar) तितलियाँ बनने से पहले ही मर जाती है और अब जेनेटिक मोड़ीफ़ाइड बीजों के खेतों तक पहुँचने की वजह से इनके लुप्त होने का खतरा और भी गहरा गया है। और खतरा सिर्फ इनके लुप्त होने का ही नहीं है, हमारे लुप्त होने का भी है क्योंकि इन बीजों के फूलों से परागीकरण संभव नहीं है और अगर परागीकरण नहीं होगा तो हमारी प्राकृतिक खाद्य व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगी और तब हमारे पास पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। 


उसपर से भी बड़े दुख की बात यह है की जब हम पर्यावरण या जीव-जंतुओं के संरक्षण की बात करते है तब हम सिर्फ बड़े जानवर जैसे- शेर, बाग, हाथी, गेंडे या पक्षियों की ही बात करते है। तितलियों, मधुमख्खियों, छोटे कीट-पतंगों के बारे मे कोई बात नहीं करता है, कोई इस दिशा मे नहीं सोचता है। हमे कभी भी स्कूल मे यह नहीं बताया गया है कि इन छोटे-छोटे जीवों का हमारे जीवन मे क्या महत्व है और जिस दिशा मे हम बढ़ रहे है मुझे नहीं लगता कि शायद ही कभी हमे इस बारे मे बताया जाएगा। इसलिए जरूरी है कि हम खुद पहल करे और अपने जीवन मे छोटे-छोटे बदलाव लाकर इस मुहिम मे शामिल हो और इन जीवों कि रक्षा करे। आज मेरी एक छोटी सी कोशिश कि वजह से इस पार्क मे करीब 135 तरह कि तितलियाँ और सेकड़ों तरह के अन्य कीट-पतंग देखे जा सकते है तो सोचिए जब हम सब मिलकर प्रयास करेगे तो क्या नतीजे होंगे। इन नतीजों को पाने के लिए बस जरूरत है तो बस सोचने की, सीखने की, समझने की, अच्छी शिक्षा की, और उसे अपने जीवन मे शामिल करने की। हम सब काबिल है अपने पर्यावरण की रक्षा करने मे बस जरूरत है तो कदम बढ़ाने की और हाथ से हाथ मिलने की। और अगर हमने यह अभी नहीं किया तो फिर कभी नहीं कर पाएंगे।”

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