पंचकुला के डॉ. मनील ग्रोवर का शोध :
जलकुंभी एक बीजपत्री(monocotyledon) व बड़े आकार केनीले फूलों वाला जलीय पौधा है।जल की सतह पर तैरने वाले इसपौधे की प्रत्येक पत्ती का वृन्त फूलाहुआ एवं स्पंजी होता है। इसमें पर्वसन्धियों (internodes) से झुण्डमें रेशेदार जड़े लगी रहती हैं। इनकातना खोखला और छिद्रदार होता है।इसके फूलों को मंजरी कहते हैं। यहदुनिया का सबसे तेज़ बढ़ने वालेपौधों में से एक है। यह अपनी संख्याको दो सप्ताह में ही दोगुना करने कीक्षमता रखता हैं और बहुत अधिकसंख्या में बीज उत्पन्न करता है।जलकुंभी के बीजों में अंकुरण कीक्षमता 30 वर्षों तक होती है। इसकेसाथ ही जलकुंभी पानी की ऊपरीसतह पर कब्जा करने के चलतेसूरज की किरणें पानी तक नहींपहुँच पाती, जिससे पानी दूषित होताहै और आक्सीजन की मात्रा कम होजाती है। इसके कारण अन्य जलीयवनस्पतियों का विकास भी नहीं हो पाता और पारिस्थितिकी संतुलन(Ecological Balance)पर विपरीत प्रभाव पड़ते हैं।
जलकुंभी एक बीजपत्री(monocotyledon) व बड़े आकार केनीले फूलों वाला जलीय पौधा है।जल की सतह पर तैरने वाले इसपौधे की प्रत्येक पत्ती का वृन्त फूलाहुआ एवं स्पंजी होता है। इसमें पर्वसन्धियों (internodes) से झुण्डमें रेशेदार जड़े लगी रहती हैं। इनकातना खोखला और छिद्रदार होता है।इसके फूलों को मंजरी कहते हैं। यहदुनिया का सबसे तेज़ बढ़ने वालेपौधों में से एक है। यह अपनी संख्याको दो सप्ताह में ही दोगुना करने कीक्षमता रखता हैं और बहुत अधिकसंख्या में बीज उत्पन्न करता है।जलकुंभी के बीजों में अंकुरण कीक्षमता 30 वर्षों तक होती है। इसकेसाथ ही जलकुंभी पानी की ऊपरीसतह पर कब्जा करने के चलतेसूरज की किरणें पानी तक नहींपहुँच पाती, जिससे पानी दूषित होताहै और आक्सीजन की मात्रा कम होजाती है। इसके कारण अन्य जलीयवनस्पतियों का विकास भी नहीं हो पाता और पारिस्थितिकी संतुलन(Ecological Balance)पर विपरीत प्रभाव पड़ते हैं।
जलकुंभी
की इस समस्या
से निजात पाने के
लिए सरकार व
अन्य कई लोगों ने अनेकों
प्रयास
किये हैं। पर्यावरण का
संरक्षण करने के
लिए पंजाब में संत
बलबीर सिंह सींचेवाल जी
ने भी तालाबों,
नदियों व नहरों
को पुनर्जीवित करने के
लिए अनेक प्रयास किये
हैं। संत सिंचेवाल
जी के इस महान
कार्य की प्रशंसा
करने वालों की कोई
कमी नहीं है।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे.
अब्दुल कलामने भी उन्हें
फरवरी 2006 में राष्ट्रपतिभवन
में बुलाकर सम्मानित
किया था। पंचकूला सैक्टर 10 में
रहने वाले दंत चिकित्सक
डॉ. मनील ग्रोवर ने
स्थानीय कारीगरों द्वारागांववासियों को
ऐसे हस्तशिल्पतैयार करने
का प्रशिक्षण दिलवाया है
जिससे तलाबों व
नदियों को जलकुंभी नामक पौधे
से मुक्त भी किया
जा सकता है
व उस जलकुंभी को
घरेलू सामान बनाने
के लिए प्रयोग भी
किया जा सकता
है।
परिचय
डॉ. मनील ग्रोवर
जी का जन्म पंजाब
के संगरूर जिले
में 27अप्रैल, 1974 में
हुआ। उनके पिता स्वर्गीय
श्री धर्म सिंह
ग्रोवर जो एकबाल
विशेषज्ञ थे तथा
माता श्री मति जीवन आशा
ग्रोवर आयुर्वेदिक डाक्टर हैं। डॉ.
मीनल ग्रोवर वइनकी
धर्म पत्नी की
समाज के विकास के
लिए कुछ अलग
करने की चाह रही
है। इनके दोनों
बच्चे मानस एवं मानित
स्थानीय स्कूल से शिक्षा ग्रहण
कर रहे हैं।
उन्होंने
सन् 2003 में अपने पिता
जी के नाम
पर ही एस
डी एसजी फाउण्डेशन
के नाम से
एक गैर सरकारी संस्था
की स्थापना पंजाबके
जिला मोहाली की
तहसी लडेराबस्सी में की,
जिसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न
क्षेत्रों में सामाजिक विकास
करना है। एसडीएसजी फाउण्डेशन
समाज के सभीसमुदायिक,
गैर सरकारी संगठनों,सरकारी और निजी
संस्थानों, बहुपक्षीय व द्विपक्षीय
एजेन्सियों के साथ आपसी सहयोग
और शिक्षा के माध्यम
से सामाजिक परिवर्तन
की प्रक्रिया में एक
उत्प्रेरक के रूप
में कार्य करना है।
इनकी इस फाउंडेशन का
मुख्य केन्द्र शिक्षा,स्वास्थय, पर्यावरण और
वन,स्वास्थय आजीविका
और महिला एवं बाल
विकास आदि हैं।
डॉ.
मनील ग्रोवर जी
ने बताया कि सन्
2007-08 के करीब जब वे वन
विभाग और पंजाब
राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
परिषद के साथ एक
प्रोजैक्ट कर रहे
थे। वेजानते थे
कि मनील ग्रोवर
जी एक अभिनव संस्था
चलाते हैं और पर्यावरण
व समाज के
विकास संबंधित कार्य करते हैं।
तब वन विभाग ने
उन्हें जल कुंभी का सफाया करने
का हल निकालने
का प्रस्ताव दिया तो
डॉ. मनील ग्रोवर
जी ने उसे स्वीकार
किया और डेराबस्सी
केपास शैदपुरा गांव
के लोगों के
साथ मिलकर जलकुंभी की बूटी
को ढ़ूँढा और वन
विभाग की मदद
सेजल कुंभी को तालाबों
से निकाल कर,सूखाकर
उसके हस्तशिल्प तैयार करवाये।
तब
उनकी गैर सरकारी संस्था
एसडीएस जी ने पंजाब
वन विभाग की मदद
से एक अभिनव तरीका
खोजा जिससे जल कुंभी
की समस्या से निजात
पाया जा सकताहै।
वैटलैंड्स के इकोलॉजिकल
बैलेंस को गड़बडाने वाली वाटर हायसिंथ
यानि
जलकुंभी को खत्म
करने के साथ-साथ
उन्होंने इस जलकुंभी
का सदुपयोग भी किया।
तब उन्होंने शैदुपुरा के
बाशिंदों को समझाया
कि किस प्रकार वे
इस जलकुंभी सेघरेलू
सामान तैयार कर
सकते हैं। उन्होंने बताया
कि उनके इस
समूह में 30 से ज्यादा
लोग शामिल थे जिनमें
कुछ कारीगर भी
थे जो गांववालों
को जलकुंभी से
बनने वाली वस्तुओं को
तैयार करने की
ट्रेनिंग देते थे।
जलकुंभी से घरेलू
सामान बनाने की प्रक्रिया
:
सबसे पहले तो
जलकुंभी को नदियों, तालाबों आदि
जगह से मशीन व
दांती द्वारा काटा
जाता है और परिवहन
के ज़रिए इसे
संसाधन केन्द्र तक पहुंचाया
जाता है। फिर जलकुंभी
के पौधों की
कटाई व छटाई की
जाती है। फिर
जलकुंभी के वृन्तों को धूप
में सूखाने के
बाद उसके सूखे हुए
वृन्तों के भाग
को बंडलों में बांध
कर कार्य स्थल
पर भेजा जाता है।
तब कारीगर जलकुंभी के
वृन्त और खादी
के धागे के प्रयोग
से ताना-बाना
वालीप्रक्रिया का इस्तेमाल
करके हस्तशिल्प जैसे पायदान,
बैग,फाइल फोल्डर
व पर्स, आदि
वस्तुएंबनाते हैं। इस प्रकार एसडीएसजी फांउडेशन
के पदाधिकारी डॉ.
मीनल ग्रोवर ने जलकुंभी
के विपरीत प्रभावोंको
ध्यान में रखते
हुए शैदुपुरा गांवके
बाशिंदों को इससे
निजात पाने के लिए
उन्हें प्रोत्साहित किया और साथ
ही जलकुंभी से
घरेलू उपयोगकी चीज़े
बनाने की पहल
भी की। डॉ. ग्रोवर
के मुताबिक फाउंडेशन
कीतरफ से गांववासियों
को समझाया गया कि
जलकुंभी से सफाई
और कमाई दोनों की जा
सकती है।
आगे की
राह :
डॉ. मनील
अपने अनुभव वतकनीक
को ऐसे व्यक्तियों
एवं संस्थाओं के साथ
साझा कर सकतेहैं
जो जलकुंभी आधारित
संसाधनसयंत्र लगाने के इच्छुक
हों। डॉमीनलएवं एस
डी एस जी फांऊडेशन
जलकुंभी को संसाधितकरके
बनाये गये सामान
कीआनलाईन मार्केटिंग एवं सप्लाई
हेतुमार्गदर्शन भी कर
सकते हैं। इच्छुकव्यक्ति
एवं संस्थान डॉ.
मीनल ग्रोवरसे निम्नलिखित
पते पर सम्पर्क
करसकते हैं।पता : रु 162 सैक्टर
10 पंचकूला,हरियाणा, भारत, मोबाइल
नंबर :9815969444 , 9872809444
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