हमारे भारत देश में सड़कों की हालत बहुत बुरी है । इस खतरनाक समस्या का हल करने का हमारे ही जैसे एक नागरिक ने बीड़ा उठाया है। उनका नाम गंगाधर तिलक कटनम है । यह एक रिटायर रेलवे कर्मचारी है। वे 67 वर्ष के हैं और इतने बुज़ुर्ग होते हुए भी वे रोज़ सुबह अपनी कार लेकर सड़कों पर घूमते हैं और जहां उन्हें कोई भी गढ्ढा दिखाई देता है, वे उसकी मुरम्मत स्वयं करते हैं । किसी के लिए भी इतने साल नौकरी करने के बाद काम करना कठिन होता है । हर व्यक्ति अपने रिटायरमेंट का समय अपने परिवार और दोस्तों के साथ आराम से और खुशीपूर्वक बिताना चाहता है ।
लेकिन गंगाधर तिलक सेवा निवृत्त होने के बावजूद अपना समय दूसरों की भलाई में लगाना चाहते हैं। लेकिन क्या हम गंगाधर तिलक कटनम जी को एक नियमित आदमी कह सकते हैं ? नहीं क्योंकि वह एक ऐसे इंसान है जो अपने मिशन पर काम कर रहे हैं । उनके लिए सड़कों के गढ्ढे भरना एक मिशन है। इसलिए वह हर दिन अपनी कार लेकर सड़कों पर घूमते हैं और जहां भी गढ्ढा दिखाई देता है उसे भरने में पूरी कोशिश करते हैं ।
उनकी कार की पिछली सीट पर वे कुछ तारकोल मिश्रित बजरी के बोरे रखते हैं, शुरूआत में वे बजरी सड़कों से इक्कठा करते थे लेकिन बाद में उन्होंने ठेकेदारों से खरीदना शुरू कर दिया। उनकी यह यात्रा 5 बजरी के बोरों से शुरू हुई थी और अब गंगाधर जी अपनी कार में 8 से 10 बोरों को रखते हैं उनके इस तरह के समर्पण ने हैदराबाद की सड़कों को यात्रियों के लिए सुरक्षित बना दिया है । उन्होंने बताया कि एक दिन वह कार चला रहे थे और अचानक से उनकी कार गढ्ढे में फंसने के कारण गढ्ढे में भरे गंदे पानी के छींटे गली में खेल रहे बच्चों पर गिर गए । तब उस समय उन्हें बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई ।
फिर तब ही उन्होंने 5000 रूपये खर्च कर जरूरत अनुसार पदार्थ खरीदा और उस गढ्ढे को भर दिया। तब के बाद से उन्होंने कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और अब तक वे 1,125 गढ्ढों को भर चुके हैं। दो या ढाई साल तक उन्होंने अकेले ही अपने खर्चे पर गढ्ढों को भरा, लेकिन अब कुछ नागरिक और सॉफ्टवेयर इंजीनीयर भी उनके साथ आ गए हैं और उन्होंने इच्छिक श्रमिक सहयोग को ‘श्रमदान’ का नाम दिया है । उन्होंने बताया कि जब वह रिटायरमेंट के बाद एक इंफोटेक कंपनी में काम करते थे तो वह अपने इस मिशन को समय नहीं दे पाते थे, तब उन्होंने यह फैसला किया कि वे ये नौकरी छोड़ देंगे और अपना पूरा समय अपने इस मिशन को देंगे ।
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