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Thursday 23 March 2017

मिट्टी के घड़ों से बचाया जा सकता है फसलों को दीमक के प्रकोप से

आज भी हमारे देश में कृषि का काफी क्षेत्र असिंचित है और एसी कृषि भूमि है जहाँ नाम मात्र को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध है फल स्वरूप कीफसलें उगाने के लिए किसानों को वर्षा के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। आप देख ही रहे है कि वर्षा कम होने तथा समय पर न होने की वजह से हर वर्ष देश के किसी न किसी किस्से में अकाल की स्थिति बनी रहती है। कहते हैं ‘‘टोटे में आटा गीला’’ यही कहावत हमारी खेती विशेषकर असिंचित
व अर्द्धसिंचित खेती में पूरी तरह लागू होती है, कहने का अभिप्राय यह है कि एक ओर हमारे अनेक किसान असिंचित व अर्द्धसिंचित खेती में सूखे जैसी प्राकृतिक मार को झेलते हैं वहीं अपनी फसलों को कई प्रकार के कीड़ों आदि से होने वाली बर्बादी को रोकने के लिए महंगे रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग फसलों पर करते हैं जबकि फसल उत्पादन आशनुरूप होगा इसकी कोई गारण्टी नहीं होती।



फसलों के हानिकारक कीटों में दीमक नामक कीट एक ऐसा प्रमुख कीट है जो खेत में नमी कम होते ही निश्चित रूप से फसलों को जड़ों के पास से काट कर नष्ट कर देता है और अपनी संख्या में भी तेज़ी से विस्तार करता है। खुश्की में अधिक सक्रिय रहने के गुण के कारण ही इस दीमक कीट का प्रकोप असिंचित व अर्द्धसिंचित फसलों में प्राय निश्चित माना जाता है। किसान फसल उगाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन कई प्रकार के कीट फसलों को नष्ट कर जाते हैं। परंपरागत विधि अपनाकर कीटनाशकों के बिना ही इनका नियंत्रण किया जा सकता है। इससे कीटनाशकों पर होने वाला खर्च बचेगा। खेत की मिट्टी से ज्यादा पैदावार पाने के लिए किसानों को कड़ी
मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन मिट्टी में पनपने वाले कीड़े-मकोड़े जैसे दीमक आदि फसलों को चट कर जाते हैं। इन कीटों से फसलों को सुरक्षित रखने के लिये भी कीटनाशकों पर किसानों को काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। परंतु अब तो किसान वैज्ञानिक विधि अपनाने की बजाय परंपरागत तकनीक से खेतों में बढ़ रही दीमक पर काबू पा रहे हैं। कुछ परंपरागत तकनीकों को अपनाकर अपनी फसल को दीमक बचाने व फसल को कमजोर होने से बचाने के में सफल भी हुए हैं।

दीमक का फसलों पर असर:-

दीमक पोलीफेगस कीट होता है। यह सभी फसलों को बर्बाद करता है। भारत में फसलों कों तकरीबन 45 प्रतिशत से ज्यादा नुकसान दीमक से होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार दीमक कई प्रकार की होती है। दीमक भूमि के अंदर अंकुरित पौधों को चट कर जाती है। कीट ज़मीन में सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों को खाते हैं। इस कीट का वयस्क मोटा होता है। जो धूसर भूरे रंग का होता हैं। इस कीट की सुंडियाँ मिट्टी की बनी दरारों अथवा गिरी हुई पत्तियों के नीचे छिपी होती है। रात के समय दीमक मिट्टी से बाहर निकलकर पौधों की पत्तियों या मुलायम तनों को काटकर गिरा देती हैं। आलू के अलावा टमाटर, मिर्च, बैंगन, पत्ता गोभी, राई, मूली, गेहूँ आदि फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।

दीमक से बचाव की परंपरागत तकनीक:-

किसान परंपरागत तकनीक से खेतों में बढ़ रही दीमक पर काबू पा रहे हैं। ऐसे ही एक सफल किसान है बल्लूपुरा राजगढ़ के घनश्याम जोगी। तकरीबन एक साल पहले इन्होंने एक परंपरागत तकनीक अपनाई और अपनी फसल को दीमक से बचा लिया। घनश्याम जोगी जी ने बताया कि उन्हें यह विधि अपनाने से अच्छा परिणाम मिला है और अब उनकी जागरूकता से गाँव के काफी किसान इस विधि से दीमक को नष्ट कर रहें है। यदि कपड़ा भी खेत में डाल दें तो चार घंटे में ही दीमक उस कपड़े में को नष्ट कर देता है। किसानों का यह भी कहना है कि लगातार कीटनाशकों के प्रयोग से खेत की मिट्टी खराब होती है। वहीं ये कीैटनाश्क मानवस्वास्थय के लिए भी घातक हैं। जोगी जी ने बताया कि इसीलिए उन्होंने कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया है और परंपरागत तकनीक को अपना लिया है।

मटकों द्वारा बचा सकते हैं फसलों को दीमक से:-


घनश्याम जी ने बताया कि उन्होंने पांच मटके लिए और उनमें छोटे-छोटे छेद किए। उपले के टुकड़े और मक्के के भुट्टों से दाने निकालने के बाद उन गिंडियों को उन मटकों में डालें। फिर उन घड़ों को खेत के चारों ओर रख  दें और पांचवें मटके को खेत के बीच में रखें। इन घड़ों को इस प्रकार मिट्टी में दबाएं जिससे घड़े का मुंह ज़मीन से कुछ बाहर निकला हो। घड़े पर कपड़ा बांध कर उसमें पानी भी डालें। पंद्रह से बीस दिन बाद मटको को खोल कर देखने पर सभी दीमक मटकों में जमा हो जाते हैं। इन मटकों को निकालकर कचरे में आग लगाकर, जलाकर नष्ट कर दें। यह प्रयास 5 बार करने से दीमक खेत से खत्म हो जायेगा। किसान जोगी बताते हैं किसानों को इस परंपरागत तकनीक की जानकारी माता श्री गौमती देवी जनसेवा विधि के मुख्य कार्यक्रम समन्वयक वेदप्रकाश शर्मा ने मुहैया करवाई थी।

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