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Friday, 24 March 2017

रेलवे स्टेशनों में चार चांद लगा रहा है एक इलैक्ट्राॅनिक इंजीनियंर

पेशे से इलेक्ट्राॅनिक इंजीनियर ने मुंबई के एक रेलवे स्टेशन को गोद लिया। जिसके बाद उन्होंने उसका ऐसा कायाकल्प किया कि आज रेलवे ने दूसरे कई स्टेशनों को चमकाने की जिम्मेदारी उन्हें दे दी है। ‘डाई हाई इंडियन’संगठन के संस्थापक गौरांग दमानी कभी अमेरिका में नौकरी करते थे लेकिन अपनी मिट्टी की खुशबू औरदेश के लिए कुछ करने का जज़्बा उनको वतन वापस खींच लाया।आज उनके पास 1400 से ज्यादा वालंटियर की टीम है जो मुंबई केअलग-अलग रेलवे स्टेशन को सजाने में जुटे हैं।


गौरांग दमानी ने साल 1993 में मुंबई यूनिवर्सिटी से बीई की पढ़ाईपूरी की इसके बाद वो एक प्रोग्रामर के रूप में काम करने के लिए अमेरिका चले गये। उन्होंने देखा कि वहां के लोगों को अपनी सभ्यता और संस्कृति पर बहुत गर्व है। इसीकारण आज उनका विश्व में प्रथमस्थान है। गौरांग का मानना था किभारतीय लोग चाहे भारत में रहें या विदेश में अपने देश को लेकर उनकीसोच नकारात्मक ही रहती है। 

जबकि वो मानते थे कि यदि हम भारतीय चाहे तो कई चीजों में विश्वमें प्रथम स्थान बना सकते हैं। इसी सोच के साथ उन्हांेने साल 2000 में‘डाई हाई इंडियन डॉट कॉम’ की स्थापना की। इसमें वो भारतीयों की सफलता की कहानियों को जगह देते थे। लेकिन इस वेबसाइट को चलाते हुए उन्होंने सोचा किअमेरिका मे रहकर वो अपने देश केलिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाएंगे इसलिए 8 साल वहां गुजारने के बादवो मुंबई लौट आए।यहां आकर उन्हांेने अपनी वेबसाइट के काम को जारी रखा। इस दौरान उन्हांेने देखा कि सरकारी विभागों में काम कराने के लिए लोगों को बहुत चक्कर लगाने पड़ते हैं। वो चाहे बीएमसी हो या पुलिस विभाग हर जगह काम कराने के लिए लोगों को पैसा देना पड़ता था। 

तब गौरांग ने सोचा कि अगर किसी काम को कराने के लिए लोगों के पास पूरी जानकारी और पेपर होंगे तोभ्रष्टाचार अपने आप कम होजायेगा। इसके लिए उन्होने खुद ही जानकारियां जुटाई और उनको अपनी वेबसाइट में डाला। ताकि लोगों को पता चल सके कि किसकाम को करवाने के लिए क्या क्या पेपर चाहिए। गौरांग मुबंई के किंग्ससर्कल रेलवे स्टेशन के पास रहते हैं। इसलिए उनका इस स्टेशन मेंबहुत आना जाना रहता था। वहां की गंदगी को देखकर उन्होंने कई बारबीएमसी और सीएसटी में इसकीलिखित शिकायत की। 

इससे परेशान होकर सीएसटी के एक ऑफिसर ने अगस्त 2014 में उन्हें बुलाकर कहा कि आपको अगरसफाई की इतनी चिन्ता है तो आप खुद क्यों नहीं सफाई कर देते। इसपर गौरांग ने कहा कि अगर रेलवे इसकी इजाजत दे तो वो इसे साफ कर देगें। जिसके बाद उसी साल दिसम्बर में रेलवे ने उनको स्टेशन की सफाई की इजाजत दे दी।गौरांग ने स्टेशन को साफ करने के लिए सबसे पहले युवाओं को वालंटियर के तौर पर अपने साथ जोड़ा। इसके बाद उन्हांेने इनकेअलग अलग समूह बनाकर उनकोअलग अलग काम दिये। 

वालंटियर के तौर पर इन्होंने सिर्फ युवाओं को ही नहीं जोड़ा बल्कि अपनी सोसायटी के लोगों की भी मदद ली।इसके बाद गौरांग और उनकी टीम ने पूरे स्टेशन को साफ कर दिया। इस दौरान इन्हांेने देखा कि स्टेशन पर कूड़ेदान नहीं होने के कारण लोग कचरा इधर उधर फेंक देते थे।इतना ही नहीं स्टेशन में जरूरत के मुताबिक लाइट की भी व्यवस्था नहीं थी। इस वजह से चोरी के अलावा वहां पर मर्डर भी होते थे। इसके लिए उन्होंने स्टेशन में कूड़ेदान की व्यवस्था की और बीएमसी, रेलवे और दूसरी संस्थाओं की मदद से 30 स्ट्रीट लाइट लगवाई। इससे जहांएक ओर स्टेशन और उसकेआसपास अपराध कम हुए वहींदूसरी ओर वो इलाका भी काफी हद तक साफ रहने लगा। स्टेशन की दीवारों को लोगपेशाब और थूक कर गंदा कर देतेथे। तब गौरांग ने ना सिर्फ उसदीवार को साफ करवाया बल्कि स्कूली बच्चों की मदद से वहां परसुन्दर चित्रकारी करवाई जिससे किलोग वहां पर न थूकें। 

इस तरह एक महीने में ही गौरांग और उनकी टीम ने किंग्स सर्कल रेलवे स्टेशन कोएकदम साफ सुथरा कर दिया। स्टेशन के सौन्द्रर्यकरण के लिए उन्होंने वहां पर फूलों के गमले और खाली जगह पर पौधे लगाये औरउनकी देखभाल के लिए एक आदमी को भी रखा ताकि वो उन पौधों को नियमित तौर पर पानी दे सके। इसके अलावा उन्होंने एक सफाई कर्मचारी को भी रखा। यह काम उन्होंने 700 वालंटियर के साथ मिलकर किया।किंग्स सर्कल रेलवे स्टेशन की साफ सफाई देख रेलवे ने उनको दूसरे स्टेशनों पर भी इसी तरह के काम करने की अनुमति दे दी।जिसके बाद उन्होंने सायन के रेलवेस्टेशन को साफ करने का बीड़ा उठाया। 

इस स्टेशन को साफ करने के लिए भी उन्होने किंग्स सर्कल रेलवे स्टेशन के तरीके को ही अपनाया। गौरांग का कहना है कि सायन रेलवे स्टेशन की सफाई उनके लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण थी,क्योंकि सायन स्टेशन एशिया केसबसे बड़े स्लम धारावी के पास स्थित है। यहां पर उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी स्टेशन की दीवार, जिसे लोगों ने काफी गंदा किया हुआ था। इसके लिए गौरांग और उनकी टीम ने स्कूली बच्चों की मदद ली। इन बच्चों की मदद सेस्टेशन और उसके आसपास जागरूकता और हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। साथ ही रेलवे पुलिस से अनुरोध किया कि जो लोग दीवारों को गंदा करेंगे उन पर जुर्माना लगाया जायेगा। इस दौरान स्कूली बच्चों ने 6 हजार से ज्यादालोगों से हस्ताक्षर कराये। बावजूद इसके गौरांग का मानना है किउनको इस काम में उतनी सफलता नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिएथी, अभी भी वो इस स्टेशन को चमकाने के काम में जुटे हुए हैं।सायन रेलवे स्टेशन की सुंदरता को बनाये रखने के लिए गौरांग और उनकी टीम को कॉलेज के छात्रों और दूसरी संस्थाओं की काफी मदद मिल रही है। साथ ही इनके इस काम को देखते हुए कॉरपोरेट जगतभी इनकी मदद करने के लिये आगे आया है। सायन में टाइटन,टीसीएस और महिंद्रा लाइफस्पेसेस के कर्मचारियों ने वालंटियर के तौरपर यहां की साफ सफाई में हिस्सा लिया। 

वहीं महिंद्रा लाइफस्पेसेस नेतो इनको सफाई के इस काम के लिए फंडिग भी दी है। इसके अलावा कुछ और लोग भी हैं जो इनकी आर्थिक और दूसरे तरीके से मदद करते हैं।गौरांग इस साल फरवरी से माहिम रेलवे स्टेशन में भी सफाई अभियान चला रहे हैं, इसके अलावाउन्हांेने रे रोड में भी सफाई का काम शुरू किया है। रे रोड पर उन्हांेने ज्यादातर पिलरों को अलग अलग पेंटिग से सजाया है। जो कि अलग भारतीय कलाओं पर आधारित है।

अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में गौरांग का कहना है फिलहाल उनका काम रे रोड और माहिम रेलवे स्टेशन पर चल रहा है और किसी भी स्टेशन को साफ करने के लिए उनको कम से कम 6 महीने का समय लगता है। इसके बाद ही वोआगे किसी और स्टेशन की सफाई के बारे में सोचेंगे।

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