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Saturday 25 March 2017

आर्किटैक्ट बीजु भास्कर ने बनाया प्राकृतिक घर का आशियाना

एक बच्चे के युवक बनने की प्रक्रिया में शिक्षा का अहम स्थान होता है और उस शिक्षा को प्राप्त करने के लिए जरूरी है, नए अनुभव प्राप्त करना। इन अनुभवों को हम चार दीवारों के भीतर बैठकर कभी नहीं प्राप्त कर सकते है। मैं हमेशा मानता आया हूँ कि “Travel is our best teacher” जब आप उन चार दीवारों से बाहर निकलते है तो कई नए लोगों से मिलते है, नयी जगहों, नयी संस्कृतियों का अनुभव प्राप्त करते है। जब हम यात्रा करते है तो हम कई ऐसे कार्य करने का अनुभव प्राप्त होता है जो आमतौर पर हमे कभी करने का मौका नहीं मिलता। यात्राएं हमे संकीर्णता अंधविश्वासों से परे खुले दिमाग से सोचने पर मजबूर करती है। यात्रा और शिक्षा कभी एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते । दूसरे शब्दों मे कहें तो यात्रा के बिना शिक्षा अधूरी है। भारत मे ही कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कच्छ से कलिमपोंग तक इतनी विविधता भरी पड़ी है, जहाँ हमारे लिए सीखने के लिए बहुत कुछ है। इतिहास, वास्तुशिल्प, खेती, पर्यावरण, गीत-संगीत, नृत्य और भी कई सारे हुनर जिनके बारे मे स्कूल की किताबों मे हमे कभी पढ़ने को मिला ही नही है।


बीजू भास्कर को भी अपने कॉलेज के दिनों मे कुछ ऐसा ही लग रहा था की, असली शिक्षा चार दीवारों के बाहर ही मिल सकती है। तब वे अपनी आर्किटेक्ट की पढ़ाई बीच मे छोड़ कर भारत भ्रमण पर निकल गए। उन्हे नहीं पता था की उनकी यह यात्रा उन्हे कहाँ लेकर जायेगी, पर उन्हे इतना पता था की उनकी रुचि कला के क्षेत्र मे हैं। ऐसे ही अपने जीवन की दिशा तय करने की इस खोज यात्रा मे वे घूमते हुए खजुराहो पहुँचे। यही पर उनकी मुलाक़ात अपने गुरु से हुई जो खुद एक शिल्पकार थे। तब वे कुछ वक़्त के लिए यही रुककर अपने गुरु के साथ रहते हुए जीवन जीने की कला सीखने लगे। यहीं पर उन्हें हमारे जीवन मे पंचतत्वों वो (धरती, आकाश, जल, वायु और अग्नि), जिनसे इस संसार की रचना हुई है, के महत्व के बारे पता चला और उनकी समझ विकसित हुई की कैसे इनके साथ मिलकर मनुष्य अपना जीवन सुकून से जी सकता है।

उनका सामना इस हकीकत से हुआ की कैसे आधुनिक विकास की वजह से मनुष्य अपनी जड़ों से दूर होता जा रहा है, वो यह भूल गया है की उसका यह शरीर भी इन्हीं पंच तत्वों से मिलकर बना हुआ है। इनको नष्ट करने के वो जिस रास्ते पर चल रहा है, हकीकत में वो खुद के विनाश का रास्ता तय कर रहा है। यही पर जब वे काम करते हुए, शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तब उन्होने गाँव के लोगों को अपना घर स्वयं बनाते हुए देखा। यह उनके लिए एक नया अनुभव था। चूंकि वे खुद आर्किटेक्ट के विद्यार्थी रह चूकें थे उनकी इसमे रुचि बढ़ने लगी। लोगों के साथ उनका घर बनाते हुए उन्हे एहसास हुआ की घर बनाने का मतलब एक ढाँचा खड़ा करना नहीं है। यह अपने आप मे एक कला है, यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो मकान को घर बनाती है। इसीलिए हजारों वर्षों से लोग अपना घर खुद बनाते आ रहे हैं।


उसी समय अपने पिताजी के कहने पर उन्होने लौटकर अपनी आर्किटेक्ट की डिग्री पूरी की और कुछ वर्षों तक उन्होने शहर मे रहकर काम भी किया पर वो जानते थे की यह उनकी यात्रा नहीं है। उन्हें तो घर बनाने की कला सिखनी थी और उस कला को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना था। तब उन्होने 2011 मे तिरुवन्नामलाई मे थनल की स्थापना की। (http://thannal.com)

बीजू बताते हैं कि “थनल सिर्फ ढाँचा खड़ा करने वाली संस्था नहीं है। हमारा मूल मकसद लोगों मे प्रकृतिक बिल्डिंग के प्रति जागरूकता फैलाना है, साथ ही प्राचीन वास्तुकला कि विभिन्न तकनीकों और ज्ञान का संवर्धन करना है। इसके लिए हम प्रकृतिक बिल्डिंग बनाने कि कार्यशालाए आयोजित करते है, जिन विद्यार्थियों कि इसमे रुचि है उन्हे आमंत्रित करते है, हम देश भर मे घूमकर पुराने कलाकारों से मिलकर उनके ज्ञान को डॉक्युमेंटेशन करते है और साथ ही अब हम घर बनाने कि कला को विभिन्न कलाओं जैसे संगीत, नृत्य आदि के साथ जोड़कर लोगों को जागरूक करने के लिए एक म्यूज़िकल एल्बम बना रहे है।”

वो आगे कहते है कि “अभी भी दुनिया कि एक चौथाई आबादी ऐसे घरों मे रहती है जो पूर्ण रूप से प्रकृतिक संसाधनों से बने हुए है। यह घर ना सिर्फ सीधे रूप से प्रकृति से जुड़े हुए है अपितु बेहद आरामदायक और लंबे समय तक टीके रहने वाले होते है। परंतु आधुनिक विकास कि परिभाषा मे इन घरों मे रहने वाले लोगों को पिछड़ा हुआ बताया जाता है। कुछ ताकतवर लोगों कि एक सोची समझी साजिश के तहत पहले लोगों को हीन भावना से ग्रसित किया गया फिर उन्हे उनके पूर्वजों के ज्ञान से दूर किया गया है। पर अभी भी देर नहीं हुई है। हम अपनी गलतियों से सीख सकते है। अभी भी हमारे लोगों के पास पारंपरिक ज्ञान का भंडार है जिससे हम अपने लिए ऐसे घर बना सकते है जो धरती के लिए नुकसानदायक नहीं है। पर हमारा जो वक़्त है वो अभी ही है, क्योंकि ये जितना भी ज्ञान है वो हमसे एक पीढ़ी पहले के लोगों के पास है। उसे अभी अगर नहीं सहेजा गया तो यह ज्ञान पूरी तरह लुप्त हो जाएगा। इसलिए हमारी पहली प्राथमिकता इस ज्ञान को सहेजना है जिससे हम इस ज्ञान को आने वाली पीढ़ी को सौंप सकें।”

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