भारतवर्ष में सदियों से बोई जाने वाली बासमती धान की प्रमुख किस्म है , जो सुगन्धित , लम्बे एवं मुलायम चावलों के कारण विश्व में सबसे अधिक पसंद की जाती है | सांस्कृतिक विनिमय के कारण बासमती केवल भारत और पाकिस्तान की भोजन-शैली में ही महत्व नहीं रखती बल्कि अब यह पार्शियाई , अरब और मध्य – पूर्वी देशों में भी बड़े पैमाने पर पसंद की जाती है | भारत और पाकिस्तान बासमती चावल की इस किस्म के एकमात्र उत्पादक व निर्यातक है |
भारत में हरियाणा , पंजाब , मध्यप्रदेश , राजस्थान , हिमाचल , जम्मू – कश्मीर , उत्तरप्रदेश , बिहार , व उत्तराखंड मुख्य रूप से बासमती चावल के उत्पादक क्षेत्र हैं | वैसे तो भारत में बासमती की अनेक किस्में पाई जाती हैं लेकिन बासमती – 370, बासमती –385 और बासमती रणबीर सिंह पुरा (R.S.Pura) भारत की परंपरागत किस्में हैं |
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली , के वैज्ञानिकों ने अनुवांशिक रूप से बासमती किस्म में बदलाव किये जिसमें संकरित और बौने पौधे उगते हैं , लेकिन विशेष रूप से इस किस्म के गुण पारम्परिक हैं | बासमती की इस किस्म को पूसा बासमती –1 कहा जाता है | इस किस्म की तुलना में पारंपरिक किस्म का उत्पादन कम है | इसलिए यह किस्म किसानों की लोकप्रियता को हासिल किये हुए है |
इतनी प्रसिद्ध होने के बावजूद भी पूसा बासमती -1 किस्म रोग अवरोधी नहीं है | कृषि वैज्ञानिकों ने समय – समय पर बासमती किस्मों को रोग रहित करने के लिए संशोधन किये हैं , लेकिन फिर भी अभी तक बासमती की कोई किस्म ऐसी नहीं है जो रोग मुक्त हो |
इसी प्रकार की काफी किस्में हमें देखने को मिल सकती हैं जिन्हें किसी वैज्ञानिक या किसी कृषि अनुसंधान संस्थान ने तैयार किया है | लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि एक किसान भी कोई नयी किस्म की उत्त्पत्ति कर सकता है ? जी हाँ यह बिल्कुल संभव है ! क्योंकि एक किसान सुरजीत सिंह ने बासमती की एक ऐसी किस्म विकसित की है जो रोग रहित है |
हरियाणा के करनाल जिले के गांव ब्रास में रहने वाले 62 वर्षीय, किसान सुरजीत सिंह ने धान की पूसा – 1460 किस्म से एक नई किस्म विकसित की है , जिसका नाम उन्होंने सुरजीत बासमती – 1 रखा है | यह किस्म अधिक उपज देने वाली, खारी भूमि पर भी उगने वाली व लम्बे आकार के सुगन्धित व मुलायम दानों वाली किस्म है |
सुरजीत सिंह के जिले में उनको उच्च गुणवत्ता वाली खुशबूदार बासमती बोये जाने के लिए जाना जाता है | पिछले 40 सालों से वे 18 एकड़ की खेती कर रहें हैं , जिसमें उनकी पत्नी प्रकाश कौर व उनके दोनों बेटे परमिंदर सिंह और गुरलाल सिंह भी उनका सहयोग देते हैं | उनका परिवार खेती के लिए आधुनिक उपकरणों का प्रयोग करता है |
यही नहीं सरकारी सब्सिडी की सहायता से उन्होंने ‘बायो गैस प्लांट’ लगाया है जो रोजाना उनके रसोई घर की जरूरत को पूरा करता है | इनकी रुचि केवल खेती-बाड़ी में ही नहीं है बल्कि इन्होने कई सालों तक मछलीपालन भी किया है , लेकिन पिछले 2 – 3 सालों से ये मछलीपालन नहीं करते | इससे यह पता लगता है की सुरजीत सिंह एक अभिनव किसान है |
सुरजीत बासमती – 1 किस्म की उत्पत्ति :-
सुरजीत सिंह अपने खेतों में गेहूं , सरसों , धान , मटर , मिर्च , आलू , व टमाटर की खेती करते हैं | सन् 2008, में उन्होंने 25 एकड़ में पूसा – 1460 बासमती को अपने खेतों में लगाया था | लेकिन सभी पौधे शीथब्लाईट रोग से प्रभावित होने के कारण उनकी फसल नष्ट हो गयी | केवल एक ही पौधा ऐसा था जो इस रोग से प्रभावित नहीं था, तब उन्होंने इस एक पौधे की मदद से एक नर्सरी तैयार की और इस नर्सरी से तैयार फसल की कटाई करते समय 225 पौधों का चयन उनकी लम्बाई , कल्लों की संख्या व बकानी रोग रहित होने के आधार पर किया |
अगले 2 वर्षों तक उन्होंने इसी प्रकार पौधों का चयन किया और धीरे – धीरे बकाने रोग के लक्षण कम होते गए | यह अक्सर देखा गया है की बकाने रोग बासमती चावल का मुख्य रोग है जिससे किसान हमेशा परेशान होता है क्योंकि यह रोग होने पर फसल पूरी तरह से नष्ट हो जाती है |
फिर उन्होंने यह किस्म आगे 10 किसानों को बांटी और उन सबने भी इस किस्म को बहुत सराहा और यह भी कहा कि यह किस्म खारी और कम उपजाऊ भूमि में भी अच्छी उपज देती है |
सुरजीत बासमती – 1, नमक सहिष्णु व अधिक उपज देने वाली किस्म है जो पूसा – 1460 से विकसित हुई है | यह किस्म 125 – 135 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है | इसकी अधिकतम उपज 55 – 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है | इसके दानों का आकार लम्बा होता है तथा मुख्य रूप से यह किस्म फूट रॉट (Foot-Rot) और शीथब्लाईट(Sheath Blight) रोग अवरोधी है | इस किस्म को उगने के लिए किसी विशेष प्रकार की भूमि की जरूरत भी नहीं है |
सुरजीत बासमती – 1 को बोने के लिए कुछ बातें ध्यान में रखें , जैसे कि पहले तो इस किस्म के बीजों को 24 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें | फिर बीजों को छत पर फैला दें ताकि वे थोड़े सूख जायें और फिर उन्हें एक बोरी में भरकर ढक कर रख दें | लेकिन समय – समय पर बोरी के ऊपर पानी का छिडकाव करते रहे | जैसे ही उन बीजों में फुटाव होता है तो उन बीजों को नर्सरी में लगा दें | नर्सरी की बुवाई के समय अनुकूलतम तापमान 35 – 40 डिग्री होना चाहिए | यह किस्म अक्टूबर – नवम्बर में पाक कर तैयार हो जाती है | इसी गुणवत्ता के कारण यह किस्म बहुत लोकप्रिय है |
सुरजीत बासमती – 1 की उपलब्धि :-
सन् 2010 में केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान(CSSRI), करनाल , ने सुरजीत बासमती – 1 को परखने के लिए इस किस्म का परीक्षण कल्लर और लवणीय भूमि पर किया जो सफल रहा | सुरजीत सिंह को सन् 2010 और 2013 में दो बार ‘प्रगतिशील किसान अवार्ड’ से दिल्ली में नवाज़ा गया | इसके अलावा सन् 2014 में सुरजीत सिंह को ‘सर्टिफिकेट ऑफ़ ऑनर’ से हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय, हिसार द्वारा और के.वी.के. ,भिवानी, हरियाणा , द्वारा भी सम्मानित किया गया |
सुरजीत बासमती – 1 किस्म को सन् 2010 में पंजीकृत करने के लिए PPV & FR authority, Delhi में आवेदन कर दिया गया है |
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