साबित हुआ स्टैनफोर्ड स्नातक रतुल नारायण का ब्रेसलेट कम कीमत वाला नोवेल ब्रेसलेट जो शिशु या नवजात शिशु की जान बचाने में मददगार है। ये यंत्र शिशुओं को हाइपोथर्मिया जैसे रोगों से लड़ने की शक्ति देता है। हापोथर्मिया एक ऐसी भयंकर बीमारी है जो दुनिया में नवजात शिशुओं की बढ़ती हुई मृत्यु का एक बड़ा कारण है।इस यन्त्र के कारण माता पिताको तुरंत ही बच्चों के शरीर केगिरते हुए तापमान के बारे में पता चल जाता है। जो माता पिता चिकित्सा सम्बन्धी सहायता ढून्ढ रहे है, उनके लिए ब्रेसलेट का लगातार बीप होना नवजात की जान बचा सकता है। इस ब्रेसलेट रूपी यंत्र को भारत में रतुल नारायण ने ‘बेम्पू’ नाम दिया है। बेम्पू नवजात बच्चों को जन्म के पहले महीने में वजन बढाने और उनके शरीर के तापमान को सामान्य रखने में मदद करता है। इससे बच्चो के बेहतर शारीरिक और मानसिकविकास में सहयोग मिलता है। जब तापमान गिरता है (यहाँ तक 0.5 डिग्री तक भी) तोशिशु के शरीर की वसा जलनेलगती है, जो शिशु के वजनको बढ़ने से रोकता है।
ये वसा कम होने की प्रकिया बच्चे के शरीर में अम्लके उत्पादन न होने के कारणहोती है, जो बच्चे की श्वसन प्रकिया में रुकावट उत्पन्न करती है। अगर बच्चा सांस नहीं ले पा रहा है तो उसकेशरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति(हाइपोक्सिया) बन्द हो जातीहै, जिस कारण उनके शरीर में अंग क्षति हो सकती है।अल्पव्यस्क शिशु (जिनमंे सबसेज्यादा हाइपोथर्मिया का खतरा होता है) को सर्दी होने पर हमेशा अंग और विकास सबंधी समस्याएं होती हैं (नवजात शिशु को जब सर्दी होती है तो उन्हें संक्रमण हो जाता है) और ये समस्याएँ जीवन भर उनकेसाथ बनी रहती हैं।
बेम्पू की कहानी
बेम्पू की खोज सन् 2013 में रतुल नारायण ने की। वोस्टेनफोर्ड से बायोकेमिकलएंजीनिएरिंग में स्नातक और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में परास्नातक है, रतुल नेजॉनसन एंड जॉनसन के साथ कॉर्डिओ वस्क्युलर स्पेस में छः साल काम किया और उसकेबाद नवजात शिशुओं केस्वास्थ्य के क्षेत्र में एम्ब्रॉन्सइन्नोवेशन के साथ एक साल काम किया। रतुल जानते थेकि नवजात स्वास्थ्य ऐसी जगहहै, जहाँ वे खुद को समर्पित कर सकते हैं। 31 वर्षीय रतुल ने बताया कि एम्ब्रेन्स में काम करते हुए उनके पास खुद को कुछ बनकर दिखाने का मौका था। वह ऐसा कुछ बनाना चाहते थे, जिसका बहुत व्यापक प्रभाव हो, वे लोगों के जीवन और स्वास्थ्य में बहुत व्यापकप्रभाव डालने का प्रयास कर रहे थे। उनका कहना है कि अगर आप किसी शिशु के जीवन में कोई बदलाव ला सकते है तो अगले 60-80साल ये उसके जीवन को प्रभावित करेगा।सन 2013 में, भारत में निओनाताल हेल्थकेअर में भूमि अनुसन्धान खोज में असमानता को जानने के लिए रतुल ने पूरे भारत का भ्रमण किया। उन्होंनेबड़े अस्पतालों के बालचिकित्सा केन्द्रों , सरकारी अस्पतालो और ग्रामीण चिकित्सालयों का दौरा किया। रतुल ने बताया कि वह वहाँ डॉक्टरों और मरीजों आदि कीजीवन शैली को समझने केलिए गये थे। वे वहाँ चकित्सा सम्बन्धी असमानताओं को लिखने के लिए एक नोटबुक लेकर गये और उन्हांेने देखा कि एक शिशु क्यों बीमार हो जाताहै? क्यों शिशु की अस्पताल मेंही मृत्यु हो जाती है?
रतुल बताया कि भारत में जन्में 27 मिलियन में से 8 मिलियन शिशु कम वजन वालेहोते हैं (2.5 किग्रा से कम)जबकि अमेरिका में यह संख्या 12में से 1 है। अमेरिका में,अस्पतालों में कम वजन वाले शिशु को इनक्यूबेटर में तब तक रखा जाता है, जब तक उसका वजन सामान्य नहीं हो जाता। जबकि भारत में, 1.2 किलोग्राम वजन वाले शिशु को भी डिस्चार्जकर देते हैं, जो कई कारणों से काफी घातक है, इनमें दो मुख्य कारण हाइपोथर्मिया और संक्रमण प्रमुख हैं। उन्होंने बताया कि हमारे पास इनक्यूबेटर का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन थर्मलमॉनिटरिंग के द्वारा हम इन शिशुओ को थर्मल सुरक्षा देसकते हैं। उपयोग रतुल ने बताया कि बेम्पूब्रेसलेट लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी जरूरी है। ये भारतके 11 राज्यों के 150 केंद्रों में उपलब्ध है। क्लाउड नाइन(गुड़गांव), सूर्या हॉस्पिटल (पुणे),मीनाक्षी हॉस्पिटल (बैंगलुर) कुछ ऐसे केंद्र हैं, जो अलग-अलग लक्ष्य समूहों में काम करते हैंऔर सक्रिय रूप से ब्रेसलेटप्रयोग करने का सुझाव देते हैं।बेम्पू ब्रेसलेट एक डिस्पोजेबल यन्त्र है, जो शिशु केजन्म के पहले 4 हफ्ते तक कामकरता है और इस दौरान इसेचार्ज करने की जरूरत नहींहोती। इस तरह के यन्त्र आसानी से वापस किये जा सकते हैं,चार्ज किये जा सकते हैं और दूसरे शिशुओ के लिए उपयोगभी किये जा सकते है। रतुल मानते हैं और स्पष्ट करते हैं किक्यों ये मॉडल प्राइमरी टारगेट ग्रुप पर अच्छी तरह काम नहींकरता है। इनमें से अधिकतर महिलायें अलग-अलग ग्रामीण क्षेत्रों से अपने शहर अपने बच्चेको जन्म देने के लिए आती हैं और वापस दूसरे शहर, कस्बे यागांव लौट जाती हैं। इस मॉडलको किराए पर देने की सुविधा अभी भारत में नहीं है। अस्पतालांे में ऐसा कोई संग्रहण केंद्र नहीं है जहाँ इसे जमा किया जा सके,जारी किया जा सके, जिसकी वापसी की सुविधा हो, यन्त्र काब्यौरा हो, साफ कर सके, रिचार्ज कर सके और फिर से दे सके।रतुल ने बताया कि भविष्य में उन्हें अपनी परियोजना कोअमली जामा पहनाने के लिए आशा और आंगनबाड़ी कर्मियों केसाथ मिलकर काम करना होगा।उन्होंने बताया कि उनकी टीम अक्सर पूछती है कि ये यन्त्रब्लूटूथ के द्वारा किसी स्मार्टफोनसे क्यों नही जुड़ सकता या एसएमएस क्यों नहीं भेज सकता,जिससे कि माता-पिता को सावधान किया जा सके।
इस बारे में रतुल ने बताया कि हम अपने टारगेट ग्रुप (कम आमदनीवाले परिवार) पर काफी बारीकीसे काम कर रहे हैं और उनकी समस्याओं को समझते हैं। उन्होंने बताया कि जब माँ रात में सोरही होती है और उसके बच्चे केशरीर का तापमान अचानक गिरजाता है, स्मार्टफोन या ब्लूटूथ कनेक्शन इस समस्या को हल नहीं कर पायेगा। साथ ही साथ,हो सकता है कि ये कम आमदनीवाले परिवार स्मार्टफोन न चला पाये, रतुल ने बताया कि वो बेम्पूको बिलकुल आसान रखना चाहते है, वो इसमें ज्यादा जानकारी डालकर माता-पिता को उलझन में नहीं डालना चाहते। रतुल ने कहा कि उन्हांेने जांच की कि ब्रेसलेट पर तापमान दिखना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि ये माँ के लिए उलझन भरा होगा। माँ अपने बच्चे की बीमारी की वजह सेपहले से ही काफी परेशान होतीहै।
तब उन्होंने ये फैसला कियाकि वे इसे बिलकुल आसान रखेंगे उन्होंने बताया कि नीली रोशनी ये बताएगी के बच्चा ठीक है, लाल रोशनी ये बताएगी के तापमान गिर रहा है, लगातार बीप होना ये बतायेगा के बच्चे को सहायता की जरूरत है। मान्यता और अनुदान मई 2014 में, रतुल को सामाजिक उद्यमिता में ग्रीनफेलोशिप की गूँज उठाने के लिए चुना गया। जुलाई 2014 में, बेम्पू को विल्लग्रो में चुना गया। नवम्बर 2014 में, बेम्पू ने गेट्स फाउंडेशन और ग्रैंड चैलेंजेजकनाडा में धनराशि जीती और वो अपने पहले कर्मचारी को लाने में सक्षम हुआ। जुलाई 2015 मेंउसैडस में जीवन रक्षा के लिए हुई एक जन्म प्रतियोगिता में बेम्पू 17वां पुरस्कार विजेता (750 प्रतिभागियों में से) चुना गया।
नोरवियन सरकार और कोरियनसरकार से भी उन्हें आर्थिक सहायता प्राप्त हुई। अंत में उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य एक राजकीय मुद्दा है। बेम्पू को हर जरूरत मंद बच्चे तक पहुँचाने के लिए हर राज्य सरकार के साथउन्हें अलग-अलग काम करना होगा।
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