श्री ज्वाला प्रसाद ग्राम पिपरौला, पो. वजाही, चन्दन चौकी, जिला लखीमपुर खीरी, उत्तरप्रदेश ने बताया कि थारू आदिवासी क्षेत्र की महिलायें जंगल में काफी दूर तक आती जाती है । लकड़ी और फूस दो ऐसी चीजे़ं हैं जिनका उपयोग दिन प्रति दिन के कामों में होता है। जंगल में हर चैराहे पर एक लकड़ी का ढेर पड़ा मिलता है जिसे लक्कड़ बाबा कहा जाता है ।
जंगल से बाहर निकलते वक्त बीनी हुई लकड़ी के ढेर में से एक सबसे अच्छी लकड़ी इस ढेर पर डाल दी जाती है और लक्कड़ बाबा की जय बोल कर महिला आगे बढ़ जाती है । इस ढेर से कोई लकड़ी नहीं चुराता है। लकड़ी का यह ढेर दीमक और अन्य कीट पतंगों का निवास एवं भोजन बन जाता है । यह जंगल का नियम है । इस ढेर का आकार देख कर आसानी से यह पता चलता है कि कितनी लकड़ी और फूस जंगल से बीना जा चुका है ।
जंगलों के दोहन पर नियंत्रण की यह प्रथा अनूठी है । महिलायें जब गठरी बांध लेती हैं तो गठरी को उठा कर सिर पर रखने के लिये बोलती हैं कि हे लक्कड़ बाबा तेरा ही सहारा है । बस इतना कहने से उनका बोझा हल्का हो जाता है । लकड़ी बांधने के लिये महिलायें रंगोई की बेल का इस्तेमाल करती है । रंगोई एक बहुत मज़बूत बेल होती है। लक्कड़ बाबा का सम्मान व उनकी कृपा इस क्षेत्र में सदियों से बरकरार है ।
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