जब कोई केरल
की कल्पना करता
है तो जो
पहली चीज दिमाग
में आती है
वह है सर्वव्यापी
नारियल का पेड़।
हो भी क्यों
नहीं, केरल का
मतलब ही होता
है नारियल के
पेड़ों की भूमि।
कुछ सालों से
केरल और नारियल
का पेड़ समाचारों
में अधिक ही
रहा है। परंपरागत
रूप से पेशेवर
पेड़ पर चढ़ने
वालों (थंडन) को किसान
कटाई के लिए
रखते हैं। समय
के साथ पेशे
का चुनाव बदल
गया है। ऐसे
पेड़ पर चढ़ने
वालों को खोजना
किसानों के लिए
कठिन हो गया
है।
नारियल के
बिना जीवन की
कल्पना करना संभव
नहीं है, ऐसे
में एकमात्र विकल्प
रह गया कि
नारियल के पेड़
पर चढ़ने के
उपाय खोजे जाएं।
कन्नूर के एक
अभिनव किसान ने
करीब डेढ़ दशक
पूर्व इस समस्या
के बारे में
सोचा और नारियल
के पेड़ पर
चढ़ने वाला यंत्र
विकसित किया। एम. जे.
जोसेफ उर्फ अप्पाचन
स्कूल छोड़ने वाले
(ड्रॉप आउट), लेकिन अभिनव
किसान थे। हालांकि
अप्पाचन ने ज्यादा
औपचारिक शिक्षा नहीं ली
थी, लेकिन अपने
परिवेश से सीखने
का उन्हें वरदान
था। उनकी पहली
खोज एक ऐसा
उपकरण था जो
फल से नारियल
के दूध और
रस निचोड़ सके।
उपकरण खर्चिला होने
के कारण लोकप्रिय
नहीं हो सका।
उन्होंने कई अन्य
नवप्रवर्तनों की कोशिश
की लेकिन उनमें
जो आजतक सबसे
लोकप्रिय है वह
पेड़ पर चढने
वाला यंत्र है।
नारियल विकास बोर्ड की
रिपोर्ट के अनुसार
केरल और अन्य
नारियल उत्पादक राज्यों जैसे
कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश,
महाराष्ट्र व गोवा
में नारियल के
पेड़ पर चढ़ने
वाले इन दिनों
दुर्लभ हो गए
हैं। इस पारंपरिक
पेशे को बहुत
कम लोग अपना
रहे हैं। लंबे
नारियल के पेड़
पर चढ़ने में
होने वाले कठिन
परिश्रम और व्यावसायिक
जोखिम की वजह
से इस क्षेत्र
में प्रवेश करने
के प्रति लोगों
में एक अरुचि
है। मजदूर की
कमी के कारण
किसान वर्तमान में
तीन-चार माह
में एक बार
ही फसल कटाई
कर पा रहे
हैं जबकि सामान्य
रूप से 45-60 दिन
का एक फसल
कटाई चक्र होता
है।य ह नवप्रवर्तन
किसी भी मौसम
में किसी भी
व्यक्ति द्वारा आसानी से
प्रयोग होने वाला
एक सरल व
सुरक्षित उपकरण है।
40 मीटर
के पेड़ पर
चढने में पारंपरिक
रूप से आवश्यक
4-5 मिनट की जगह
1-2 मिनट ही लगते
हैं। यह लोहे
और स्टील बॉडी
में उपलब्ध है,
हालांकि इसके काम
और आकार में
कोई अंतर नहीं
है। नारियल के
पेड़ पर चढने
वाले यंत्र में
10 मिलिमीटर के दो
धातु लूप, एमएस
रॉड का सबलूप,
रबड़ बेल्ट, तार
की रस्सी, जोड़ने
वाला क्लैंप और
एमएस प्लेट इत्यादि
हैं। एक लूप
दाहिने पैर और
दूसरा बाएं पैर
के लिए होता
है। ये क्रमशरू
दाहिने पैर का
लूप और बाएं
पैर का लूप
कहलाता है। बायां
लूप (मुख्य लूप)
दाहिने फंदे की
तुलना में थोड़ा
बड़ा होता है।
मुख्य लूप का
ऊपरी हिस्सा हैंडल
की तरह आगे
झुका होता है।
इसके ठीक नीचे
दो धातु के
प्लेट एक छेद
के माध्यम से
एक लंबे रबड़
बेल्ट से जुड़ी
है। रबड़ बेल्ट
के प्रत्येक सिरे
पर छल्ले वाले
तार की रस्सी
कसी है। सबसे
नीचे के हिस्से
में स्थित एक
प्लेट और एक
क्लैंप ऊपर की
ओर लगा होता
है।
मुख्य लूप
से लंबा छिद्र
युक्त प्लेट कसा
होता है जो
पार्किंग ब्रेक की तरह
प्रयुक्त होता है।
चढने वाले यंत्र
से जुड़ी रस्सियां
चढने के दौरान
पकड़ को मजबूत
बनाती हैं। रस्सियां
यंत्र से जुड़े
हूक से गुजरते
हुए पेड़ के
चारों ओर पहुंचती
हैं। पैर के
आराम के लिए
पैडल होता है।
दाहिने तरफ के
पैडल को आगे
की ओर थोड़ा
उठा दिया जाता
है ताकि चढने
वाले यंत्र के
दाहिने हिस्से की पकड़
थोड़ी ढीली पड़े
और ऊपर की
ओर दाहिने हाथ
और पैर को
काम करने में
सुविधा हो। एक
बार जब दाहिना
हिस्सा सक्रिय होता है
तो शरीर का
शेष वजन चढने
वाले यंत्र के
दाहिने भाग पर
आ जाता है।
बांयी ओर भी
सभी प्रक्रियाएं दोहराई
जाती हैं। इस
तरह से कोई
भी नारियल या
सुपारी के पेड़
पर चढ़ सकता
है। उन्होंने अपने
इस यंत्र को
पेटेंट भी करवाया
है और उनके
इस यंत्र की
भारतीय पेटेंट संख्या 194,566 है।
नारियल के लंबे
पेड़ पर फल
तोडने और कीटनाशक
के प्रयोग के
लिए सुरक्षित चढने
के लिए यह
यंत्र उपयोगी है।
यह यंत्र बिजली
के पोस्ट पर
चढने वाले उपकरण
के रूप में
भी काम आ
सकता है।
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