यूपी में बांदा
के होनहार युवा वैज्ञानिक
डॉ. विक्रम सिंह
ने अनार और हल्दी
से LED बनाई
है।वैज्ञानिक डॉ. विक्रम
सिंह का दावा
है कि उनकी बनाई
अनार और हल्दीकी
LED बिजली की 20 फीसदी बचत
करेगी। डॉ विक्रम
की LED पर्यावरण को
नुकसान नहीं पहुंचाएगी। दाम के
मुकाबले में भी यह
काफी सस्ती होगी।
डॉ विक्रमके मुताबिक
मौजूदा LED से यह
60फीसदी सस्ती होगी। बांदा
जिले केमर का गांव
में किसान शिव
सिंह केघर पैदा
हुए डॉ. विक्रम
सिंह आईआईटी चेन्नई में वैज्ञानिक
हैं।उन्होंने हल्दी और अनार
केमिश्रण से व्हाइट
लाइट एमिशन की खोज
की है। डॉ.
विक्रम का दावा
है कि प्राकृतिक संसाधनों
से प्राप्त यहपदार्थ
सस्ता व प्रदूषण मुक्त
है। हल्दी से कर्कुमिन
और अनार से अन्थोस्थनी
प्राकृतिक पिगमें ट्सलिया गया है।
इसी के जरिए
स्म्क्लाइट बनाई गई
है। उन्होंने हल्दी और
अनार के मिश्रण
से व्हाइटलाइट एमिशन
की खोज की
है।
यह पदार्थ एलईडी
बल्ब, डाइलेजर औरइंडीकेटर्स
बनाने में इस्तेमाल
हो सकेगा। इससे निकलने
वाली रोशनी दूधिया होगी। देश में
जो LED इस्तेमाल हो
रही हैं, उनके
मैटेरियल में लेंथनाइड काफी मात्रा
में होते हैं।यह
पर्यावरण के लिए
नुकसान देह हैं। लेंथनाइड महंगा भी
है, जबकि डॉ. विक्रम
के नए शोध
के मुताबिक अनार और
हल्दी की स्म्क्
काफी सस्ती और पर्यावरण
के अनुकूल होगी।38 वर्षीय
विक्रम सिंह ने
बताया कि उनके पिता
जी किसान थे,
घर में पैसे की
दिक्कत थी, जिसके
चलते उनकी शुरूआत की पढ़ाई
गांव के प्राथमिक सरकारी
स्कूल में ही
हुई।
10वीं और
12वीं उन्होंने बबेरू
के राजलला इंटर काॅलेज
से की।इसके बाद
वह बांदा आ
गये और झांसी विश्वविद्यालय
से बीएससी उत्तीर्ण करने
के उपरान्त वह कानपुर
आ गये और
आई आई टी की
तैयारी करने लगे।
तब उनका कानपुर आई
आई टी में
दाखिला हो गया। वह कई
अन्य चीज़ों पर
शोधकर रहे थे।
तभी उनके मन
में पर्यावरण को बचाने
का विचार आया और
वह बिजली के
साथ पर्यावरण को बचाने
की मुहिम में
लग गए, जिसमें
उन्हें कामयाबी भी मिल
गई।डॉ. विक्रम की इसखोज/शोध को
इंग्लैंड के शोधपत्रनेचर
जरनल की ‘साइंटिफिक रिपोर्ट’
में प्रकाशित किया
गया है।पिछले वर्ष
सितंबर में जर्मन
में आयोजित कांफ्रेंस में वैज्ञानिकों
ने उनके शोध की
प्रशंसा की। डॉ.विक्रम इस दिशा
में अब भी
काम कर रहे हैं।
अगर डॉ विक्रम
की इस खोज को
देश में अपनाया
गया तोय कीनन बिजली
की काफी बचत होगी।
साथ ही इससे
पर्यावरण को हो रहे
नुकसान से भी
बचाया जा सकता है।
डॉ विक्रम अपने
इस शोधको फिलहाल
पेटेंट कराने की सोच रहे
हैं।
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