दशकों पुराने क्लिक-3 कैमरा वाले नेगेटिव के फोटो बनाना आज के समय में असंभव-सा प्रतीत होता है । लेकिन लगन और चाह के आगे कुछ भी असंभव नहीं हैं । जिसे अपनी किशोरावस्था से ही कैमरे का शौक रखने वाले बी.एस. पाबला जी ने साबित कर दिखाया है । बी.एस. पाबला जी ने अपना पहला क्लिक-3 कैमरा सन् 1976 में खरीदा। बी.एस.पाबला जी का जन्म स्थान दल्लीराजहरा है और ये छत्तीसगढ़ के भिलाई क्षेत्र में रहते हैं और महारत्न कंपनी सेल (Steel Authority of India Limited) में 1981 से सेवारत हैं । पाबला जी के पिता का नाम श्री केहर सिंह और माता जी का नाम हरभजन कौर है । इनकी एक बेटी है जिसका नाम रंजीत कौर है ।
पाबला जी को अपनी किशोरावस्था से ही कैमरे का बहुत शौक है, इसलिए जब एक दिन इन्हें 35- 40 साल पुराने आग्फा कंपनी के क्लिक-3 कैमरा के नेगेटिव मिले तो इनके मन में चाह उठी कि काश ये इन नेगेटिव की फोटो फ्रेम बनवा लेते और इन्होंने महज़ 10 मिनट में इसका हल निकाल लिया। यह सारे नेगेटिव आग्फा कंपनी के क्लिक-3 कैमरा के थे । यह एक साधारण से लैंस वाला ऐसा कैमरा था जिसमें अधिक से अधिक 12 चित्र लिए जा सकते थे और नेगेटिव का आकार 6X6 सेंटीमीटर का होता था। एक फोटो लेने के बाद रोल को उंगलियों से घुमाकर ऐसी जगह लाया जाता था जहां कोरे स्थान पर दूसरी फोटो आ सके । अगर आप रोल घुमाना भूल गए तो एक के ऊपर एक दूसरी फोटो छप जाती थी । इस कैमरे में फ्लैश नहीं था व अलग से लगाया भी जाये तो बड़ी सी बैटरी बल्ब होता था जो अपनी चकाचैंध राशनी बिखेरने के साथ ही फ्यूज़ हो जाता था और अगली फ्लैश के लिए नया बल्ब लगाना पड़ता था ।
उस समय में भी उन्होंने नेगेटिव के फोटो बनाने के लिए फोटो बनाने की तकनीक बताने वाली एक छोटी सी किताब खरीदी जिसकी सहायता से उन्होंने नेगेटिव से फोटो भी तैयार की । उस फोटो बनाने की तकनीक बताने वाली किताब से उन्होंने नेगेटिव से फोटो बनाने के लिए कमरे में लाल बल्ब लगाकर डार्क रूम बनाया और डेवलपर, हाइपो व 100 पेपर वाला डिब्बा खरीदा । फिर टेबल लैंप के नीचे ड्राइंग शीट का फ्रेम काट कर रखा। नेगेटिव और फोटो पेपर साथ-साथ रखकर कुछ सेकेंड की रोशनी दी । फिर जब उन्होंने फोटो पेपर को डेवलपर वाली ट्रे में होले-होले थप-थपाया तो धीरे-धीरे तस्वीर उभरने लगी। हाइपो से बाहर निकाल कर ठीक से सुखाने के बाद खिंची तस्वीर सामने आई । उस समय में भी उन्होंने स्वयं इस प्रकार नेगेटिव से फोटो तैयार की थी ।
लेकिन अब वे उन दशकों पुराने नेगेटिवों की तस्वीरें उस विधि द्वारा नहीं तैयार कर सकते थे क्योंकि अब वह सब चीज़ें बाज़ार में उपलब्ध नहीं होती। फिर वे उन नेगेटिवों को फोटो में तबदील करने के बारे में सोचने लगे। सोचते-सोचते उनकी ललक इतनी बढ़ गई कि उन्होंने इंटरनेट छाना लेकिन जो उपाय दिखे वह बहुत ही तिकड़मी थे। फिर उन्होंने यह समस्या फेसबुक पर डॉ. अनिल कूमार को बताई और डॉ. अनिल कूमार ने उन्हें बताया कि सफेद कागज़ पर नेगेटिव रखकर स्कैनर पर स्कैन करें और फिर फोटोशॉप जैसे सोफ्ट्वेयर में डाल कर नेगेटिव का पॉजिटिव बना लीजिए।
ये तकनीक पाबला जी को कुछ जचा नहीं, क्योंकि ऐसी असफल कोशिश वे पहले भी कर चुके थे। फिर पाबला जी को ख्याल आया कि डाक्टरों के कमरे में एक्सरे में देखे जाने वाले डिब्बे जैसी किसी चीज़ से कुछ हो सकता है। फिर झट से उन्होंने एक नेगेटिव निकाला और कमप्यूटर मॉनिटर के सामने स्क्रीन में फंसा दिया। सफेद रोशनी चाहिए थी तहो ब्राउज़र की खाली टेब खोल ली। लेकिन नीचे का टास्क बार रोड़े अटका रहा था तो उसे ऑटो हाईड कर नीचे जाने दिया। फिर पाबला जी ने अपना डिजिटल कैमरा उठाया और उस सफेद रोशनी के सामने फंसे नेगेटिव की फोटो इस प्रकार ली कि सामने फंसे नेगेटिव की फोटो तो आये किन्तु उसके आस-पास की फोटो न आये ।
उन्हें एक-दो बार कोशिश करने पर मनचाहा परिणाम मिल गया । फिर उन्होंने कैमरे के मेमोरी कार्ड से इमेज कमप्यूटर में डाली और फिर माइक्रोसोफ्ट ऑफिस से काट-छांट कर सही आकार दे दिया । अब इस नेगेटिव जैसी दिखती फोटो को उन्होंने विंडोज़ में उपलब्ध पेंट में खोला, इसके बाद ctrl के साथ a दबाकर या मेन्यू बार में select>select all कर फोटो में ही किसी स्थान पर सावधानी से माउस का राइट क्लिक करके सामने आए बाक्स के निचले हिस्से में दिए इनवर्ट कलर पर क्लिक किया। अब उनके सामने अच्छी खासी तस्वीर आ चुकी थी और अब उसे सिर्फ सेव ही करना था। अब यह फोटो फ्रेम में लगाने लायक थी। तो है ना ये नेगेटिव से फोटो बनाने का नायाब तरीका ।
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