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Saturday, 25 March 2017

भगवान सिंह डांगी ने विकसित की ट्रैक्टर से चलने वाली रीपर विंड्रॉअर

खेत में सबसे ज्यादा समस्या कटाई में आती है। बाकी सभी कामों के लिए मशीन हैं पर कटाई हार्वेस्टर बड़े किसान ही खरीद सकते हैं। यही वह अभिलाषा थी जिसने भगवान सिंह डांगी, जो मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव के किसान है, उनको यह मशीन विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया। उनकी रीपर विंड्रॉअर एक ऐसी मशीन है जो फसल को काटती है और बीच में विंड्रॉ (काटी गई सूखी घास-छोटे अनाज की फसल की एक पंक्ति) करती है। भगवान सिंह का जन्म एक किसान परिवार में हुआ। वह बचपन से ही मशीनों में रूचि रखते थे। जब उनके घर रिपेयरमेन मशीनों को ठीक करने के लिए आते थे तो वह उन्हें देखते हुए घंटों बैठे रहते थे। 


वह बताते हैं कि जैसे-जैसे वह बड़े हुए, वह घर के बाहर पड़ी कोई घड़ी उठाते और इसे खोलकर पता लगाते थे कि अंदर क्या था। जबकि उनके भाई स्नातक हैं, फिर भी भगवान सिंह कृषि में रुचि रखते थे। 1973 में, उन्होंने अपने परिवार की खेती में सहायता करने के लिए कक्षा 12 के बाद विद्यालय छोड़ दिया। उन्होंने मशीनों के प्रति अपने प्रेम पर भी ध्यान दिया और कृषि साधनों का निर्माण और उनकी मरम्मत करके ठोका-पीटी करना शुरु किया। 

प्रथम सफलता - ट्रैक्टरों के लिए आगे की ओर चढ़ने वाली ब्लेड 

उनके गाँव में खेती करना चुनौतीपूर्ण था। पहली परेशानी जिसका उन्होंने सामना किया वह गड्ढों वाली असमतल भूमि थी। इसलिए उन्होंने भूमि समतल करने और बंडिंग करने के लिए एक फ्रंट-माउंट वाली ब्लेड का विकास किया। उन्होंने इस ब्लेड को 1982 में बनाया था किंतु वह आज भी इसे अपने खेत में उपयोग करते हैं। अन्य लोगों ने उनकी नकल की है किंतु वह खुश हैं कि अब उनके क्षेत्र में कई लोग इस खेतीहर उपकरण को ट्रैक्टरों में लगाने में निपुण हैं। उन्होंने बताया कि उनका अगला नवप्रर्वतन 40 प्रतिशत तक बोरवेलों के निरावेशन को बढ़ाने के लिए 1995 में बनाया गया एक रबर उपकरण था।उन्होंने अपने रीपर विंड्रॉअर को विकसित करने के पूर्व छोटे गैजेट्स और खेती उपकरणों को सुधारना जारी रखा।

नवप्रवर्तन की उत्पत्ति :

उनके गाँव में सोयाबीन प्रमुख फसल है। कटाई के शीर्ष समय के दौरान श्रम की कमी एक बड़ी समस्या है। इसी समाधान को ढूँढने का प्रयास करते हुए, भगवान सिंह ने उन मशीनों के लिए बाजार खोजा जो तेजी से और न्यूनतम अनाज हानि के साथ कटाई करती हों। दो मुख्य कार्य बुवाई और विंड्रॉइंग निष्पादित करने के लिए एक मशीन की आवश्यकता थी। बुवाई में फसलों का व्यवस्थित रूप से काटना सम्मिलित होता है जबकि विंड्रॉइंग में कटे हुए डंठलों को आसानी से ढेर बनाने के लिए पंक्ति में जमाना और कटाई के पश्चात की प्रक्रियाएँ आती हैं। कुछ मशीनें जो उनके संपर्क में आईं वे स्वतः घूमने वाले रीपर्स थीं, जिनमें कटी हुई फसल को मशीन के एक ओर रखते हैं, जिससे उच्च चूर होने वाली हानियाँ होती हैं। इसके अतिरिक्त, डंठलों के अधिक भाग खेतों में छोड़ दिए जाते थे जिसमें अगली बार कार्य करने के पूर्व हाथ से सफाई करने की आवश्यकता होती थी। यह व्यवस्था बार-बार फेरों वाले छोटे खेतों के लिए व्यवहारिक नहीं थी क्योंकि यह खड़ी फसल को क्षतिग्रस्त करती थी। पकी हुई फसल को पंक्ति में लगाया जाता था, जिसे बारी आने पर ही छोड़ा जाता था। इससे इंजन पर अनावश्यक भार पड़ा और इस प्रकार ईंधन उपभोग में वृद्धि हुई। अपने छोटे आकार के खेत के लिए उपयुक्त किसी मशीन को ढूँढने में अक्षम होने पर, फिर उन्होंने स्वयं की मशीन बनाने के बारे में सोचा। उन्होंने फसलों को काटने और छोड़ने के लिए यांत्रिकी के साथ एक फ्रंट माउंट वाली षटभुजी घुमावदार रील के साथ एक हल्के, दक्ष वाहन को बनाने के बारे में सोचा। उनका प्रथम प्रोटोटाइप 2001 में तैयार हुआ।


इससे प्रेरित होकर, उन्होंने स्वयं की वर्कशॉप प्रारंभ करने का निर्णय किया जहाँ वह अपनी कल्पना और रचनात्मकता को आकृति दे सकते थे। उन्होंने अपनी संपत्ति के विरुद्ध एक ऋण लिया और 2004 में वर्कशॉप खोली। इस दौरान उन्होंने डिजाइन पर निरंतर कार्य किया और अपना विचार सुधारा। संशोधित स्वतः बढ़ने वाली मशीन में पहली वाली 2 एचपी के बजाय 18 एचपी इंजन प्राइम मूवर और एक बीच में रखी बुवाई विंड्रॉइंग मशीन थी। व्यक्तिगत घटकों और असेंबलियों को विकसित करने, जाँचने और संशोधित करने में उन्हें एक वर्ष से अधिक का समय और 10 लाख रुपए लगे। इसके अनुप्रयोगों पर विचार करते हुए, राष्ट्रीय नवप्रर्वतन ने राष्ट्रीय नवप्रर्वतन-सी.एस.आई.आर अनुबंध के तहत सी.एस.आई.आर-सी.एमई. आर.आई दुर्गापुर स्थित ट्रैक्टर के लिए इसका संलग्न के रूप में विकास करके इसके मूल्यसंवर्धन में सहायता की। इस सहायता के साथ, भगवान सिंह रीपर विंड्रॉअर का एक संलग्न के रूप में विकास करने में सक्षम रहे हैं जिसे किसी ट्रैक्टर के अग्रणी भाग में चढ़ाया जा सकता है जो अधिक शक्ति वाला लगता है।

ट्रैक्टर से चलने वाली रीपर :

विंड्रॉअरय ट्रैक्टर के लिए एक फ्रंट माउंट वाला संलग्न है। इसमें तीन विभिन्न इकाइयाँ हैं जिनके नाम हैं। खड़ी फसल को कटर बार की ओर धकेलने के लिए रील यूनिट, कटिंग यूनिट जिसमें कटर बार होता है और मशीन के बीच में फसल जमाने के लिए संग्रहण इकाई। इस प्रकार संभालना और थ्रेसिंग फ्लोर तक ले जाना आसान होता है।

यह कटाई प्रक्रिया में सम्मिलित मानव श्रम आवश्यकता और निरसता को कम करता है। विंड्रॉअर इकाई में डिजाइन अनाजों के चूर-चूर होने वाली हानि या टूटन की समस्या को अनुवर्ती बारी में दूर करती है क्योंकि टायर कटी हुई फसल पर नहीं दौड़ते हैं। यूनिट को चलाने के लिए मशीन को केवल एक व्यक्ति की और उत्पाद को एकत्रित करने के लिए पिछले भाग पर दो व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। सोयाबीन के अलावा, इसे गेहूँ, धान और दालों की कटाई के लिए उपयोग किया जा सकता है। यह छोटे खेतों में कार्य करने में, तीक्ष्ण मोड़ लेने में और खड़ी फसलों को नष्ट करने में सक्षम है। पारंपरिक रीपर इकाइयों में, कटी हुई फसल प्राइम मूवर की चाल पर लंबवत् गिरती है जिससे अधिक अनाज की हानि होती है। नवप्रवर्तन की अद्वितीयता विंड्रॉइंग संलग्न की डिजाइन और आकाशीय व्यवस्था में समाहित होती है जो न्यूनतम अनाज हानि प्राप्त करती है।

संग्रहित फसल टायरों के बीच पंक्ति में संग्रहण के लिए गिरती है और अगली समांतर चाल को सहजती है। सोयाबीन फसल में सीआई.. भोपाल में परीक्षणों के अनुसार, मशीन ने 0.35 हेक्टेयर प्रति घंटा की क्षेत्र क्षमता का प्रदर्शन किया। कुल कटाई हानियाँ 3.37 होना बताया गया, जिसमें 2.33 कटाई पूर्व हानियाँ सम्मिलित हैं (अर्थात जब इस मशीन के साथ कटाई की गई, हानियाँ 1.04 थीं) और बिना काटी हानि शून्य थी। इस नवप्रर्वतन को स्टार्ट टीवी, योजना और दि हिंदू सहित कई राष्ट्रीय मीडिया पर दिखाया गया और स्थानीय मीडिया कवरेज भी प्राप्त हुई। इसका परिणाम विभिन्न जिलों से 150 से अधिक पूछताछ के रूप में हुआ। 2011 में राष्ट्रीय नवप्रर्वतन द्वारा नवप्रवर्तक के नाम परं एक पैटेंट फाइल किया गया। भविष्य के स्वप्न उन्होंने कहा कि वह उस दिन का स्वप्न देख रहे हैं जब उनकी रीपर यूनिट का उपयोग देश में छोटे किसानों द्वारा किया जाएगा।

जब वह इस पर कार्य कर रहे थे तब इसमें शामिल पैसे के कारण उनके परिवार को डर था। किंतु उन्होंने उन्हें कभी भी हतोत्साहित नहीं किया। उन्होंने कहा कि वे स्वीकार करते हैं कि उनकी पत्नी राधा उनकी सच्ची सहायक थीं। उसने उन पर कभी भी संदेह नहीं किया। वह केवल कक्षा 8 तक पढ़ी है और वह जो कर रहे थे उसके बारे में उनकी पत्नी को कुछ जानकारी नहीं थी। किंतु उसने उन्हें कभी भी नहीं कहा कि वह इस नवप्रवर्तन के साथ अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं। उनके सभी बच्चे स्नातक हैं। अब, वह अपने नवप्रवर्तन के आधार पर एक एंटरप्राइज बनाना चाहते हैं जिसे उनके बच्चे आगे बढ़ा सकें। वह कहते हैं कि क्षेत्र में किसानों ने इस उपकरण को उपयोग में देखा है और उनसे इस बारे में पूछ रहे हैं। हालाँकि, पैसा लगाना एक समस्या है क्योंकि उनके पास इसके लिए नगद में भुगतान करने के लिए धन नहीं है और बैंक ऋण इत्यादि का कोई विकल्प नहीं है। वह अनुभव करते हैं कि बेहतर वृद्धि के लिए खेती कार्यों को बदलने की आवश्यकता है।आज खेती करने का ढंग अच्छा नहीं है, हमें तरक्की करने के लिए खेती करने का तरीका बदलना पड़ेगा। वह नए खेतीहर उपकरणों, कृषि कार्यों और बीज किस्मों को विकसित करने का तरीका बदलने में योगदान करना चाहते हैं।

एम. जे. जोसेफ ने निकाला नारियल के पेड़ पर चढ़ने का उपाय

जब कोई केरल की कल्पना करता है तो जो पहली चीज दिमाग में आती है वह है सर्वव्यापी नारियल का पेड़। हो भी क्यों नहीं, केरल का मतलब ही होता है नारियल के पेड़ों की भूमि। कुछ सालों से केरल और नारियल का पेड़ समाचारों में अधिक ही रहा है। परंपरागत रूप से पेशेवर पेड़ पर चढ़ने वालों (थंडन) को किसान कटाई के लिए रखते हैं। समय के साथ पेशे का चुनाव बदल गया है। ऐसे पेड़ पर चढ़ने वालों को खोजना किसानों के लिए कठिन हो गया है।


नारियल के बिना जीवन की कल्पना करना संभव नहीं है, ऐसे में एकमात्र विकल्प रह गया कि नारियल के पेड़ पर चढ़ने के उपाय खोजे जाएं। कन्नूर के एक अभिनव किसान ने करीब डेढ़ दशक पूर्व इस समस्या के बारे में सोचा और नारियल के पेड़ पर चढ़ने वाला यंत्र विकसित किया। एम. जे. जोसेफ उर्फ अप्पाचन स्कूल छोड़ने वाले (ड्रॉप आउट), लेकिन अभिनव किसान थे। हालांकि अप्पाचन ने ज्यादा औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन अपने परिवेश से सीखने का उन्हें वरदान था। उनकी पहली खोज एक ऐसा उपकरण था जो फल से नारियल के दूध और रस निचोड़ सके। 

उपकरण खर्चिला होने के कारण लोकप्रिय नहीं हो सका। उन्होंने कई अन्य नवप्रवर्तनों की कोशिश की लेकिन उनमें जो आजतक सबसे लोकप्रिय है वह पेड़ पर चढने वाला यंत्र है। नारियल विकास बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार केरल और अन्य नारियल उत्पादक राज्यों जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व गोवा में नारियल के पेड़ पर चढ़ने वाले इन दिनों दुर्लभ हो गए हैं। इस पारंपरिक पेशे को बहुत कम लोग अपना रहे हैं। लंबे नारियल के पेड़ पर चढ़ने में होने वाले कठिन परिश्रम और व्यावसायिक जोखिम की वजह से इस क्षेत्र में प्रवेश करने के प्रति लोगों में एक अरुचि है। मजदूर की कमी के कारण किसान वर्तमान में तीन-चार माह में एक बार ही फसल कटाई कर पा रहे हैं जबकि सामान्य रूप से 45-60 दिन का एक फसल कटाई चक्र होता है।य ह नवप्रवर्तन किसी भी मौसम में किसी भी व्यक्ति द्वारा आसानी से प्रयोग होने वाला एक सरल व सुरक्षित उपकरण है।


40 मीटर के पेड़ पर चढने में पारंपरिक रूप से आवश्यक 4-5 मिनट की जगह 1-2 मिनट ही लगते हैं। यह लोहे और स्टील बॉडी में उपलब्ध है, हालांकि इसके काम और आकार में कोई अंतर नहीं है। नारियल के पेड़ पर चढने वाले यंत्र में 10 मिलिमीटर के दो धातु लूप, एमएस रॉड का सबलूप, रबड़ बेल्ट, तार की रस्सी, जोड़ने वाला क्लैंप और एमएस प्लेट इत्यादि हैं। एक लूप दाहिने पैर और दूसरा बाएं पैर के लिए होता है। ये क्रमशरू दाहिने पैर का लूप और बाएं पैर का लूप कहलाता है। बायां लूप (मुख्य लूप) दाहिने फंदे की तुलना में थोड़ा बड़ा होता है। मुख्य लूप का ऊपरी हिस्सा हैंडल की तरह आगे झुका होता है। इसके ठीक नीचे दो धातु के प्लेट एक छेद के माध्यम से एक लंबे रबड़ बेल्ट से जुड़ी है। रबड़ बेल्ट के प्रत्येक सिरे पर छल्ले वाले तार की रस्सी कसी है। सबसे नीचे के हिस्से में स्थित एक प्लेट और एक क्लैंप ऊपर की ओर लगा होता है।


मुख्य लूप से लंबा छिद्र युक्त प्लेट कसा होता है जो पार्किंग ब्रेक की तरह प्रयुक्त होता है। चढने वाले यंत्र से जुड़ी रस्सियां चढने के दौरान पकड़ को मजबूत बनाती हैं। रस्सियां यंत्र से जुड़े हूक से गुजरते हुए पेड़ के चारों ओर पहुंचती हैं। पैर के आराम के लिए पैडल होता है। दाहिने तरफ के पैडल को आगे की ओर थोड़ा उठा दिया जाता है ताकि चढने वाले यंत्र के दाहिने हिस्से की पकड़ थोड़ी ढीली पड़े और ऊपर की ओर दाहिने हाथ और पैर को काम करने में सुविधा हो। एक बार जब दाहिना हिस्सा सक्रिय होता है तो शरीर का शेष वजन चढने वाले यंत्र के दाहिने भाग पर आ जाता है। बांयी ओर भी सभी प्रक्रियाएं दोहराई जाती हैं। इस तरह से कोई भी नारियल या सुपारी के पेड़ पर चढ़ सकता है। उन्होंने अपने इस यंत्र को पेटेंट भी करवाया है और उनके इस यंत्र की भारतीय पेटेंट संख्या 194,566 है। नारियल के लंबे पेड़ पर फल तोडने और कीटनाशक के प्रयोग के लिए सुरक्षित चढने के लिए यह यंत्र उपयोगी है। यह यंत्र बिजली के पोस्ट पर चढने वाले उपकरण के रूप में भी काम आ सकता है।

मनसुखभाई ने बनाई कपास अलग करने वाली मशीन

एक किसान परिवार में पैदा हुए मनसुखभाई (50 वर्ष), ने विभिन्न कृषि संबंधी कार्यों में विशेष रूप से कृषि मशीनरी से संबंधित कार्यों में उनके पिता की मदद करना शुरू कर दिया। उन्होंने हाई स्कूल तक पढ़ाई की। एक बच्चे के रूप में, मनसुखभाई की यांत्रिक और बिजली के उपकरणों में बहुत रुचि थी और वह मौका मिलते ही इनके साथ छेड़खानी करते थे।


इस रुचि ने उसे एक बिजली मिस्त्री मित्र के संपर्क में ला दिया जिसकी उसने अपने खाली समय में सहायता प्रदान की है। सन् 1973 में, उनके चाचा को अहमदाबाद में एक स्टील ट्यूब निर्माण कंपनी में एक सहायक के रूप में एक नौकरी मिल गई। उन्होंने कई महीनों तक रख-रखाव फिटर और इलेक्ट्रिशियनों के लिए भागदौड़ की और धीरे - धीरे ज्ञान व कौशल प्राप्त किया। आखिरकार, उन्हें एक बिजली मिस्त्री के रूप में नियुक्त किया गया। आगे, हालाँकि उनके कैरियर की प्रगति विभिन्न कंपनियों में आसान रही। उनकी अंतिम नौकरी असरवा मिल्स लिमिटेड में उप इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के रूप में थी।

मनसुखभाई ने फिर अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पूर्णकालिक आधार पर व्यापार पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। हालाँकि, उन्हें उनके गिरते स्वास्थ्य की वजह से आसपास अधिक चलना टालना पड़ता है। वर्तमान में, उनके बहनोई, उनके बेटे और भतीजे मशीनों की निर्माण गतिविधियों के साथ ही उनका प्रचार का कार्य भी संभाल कर रहे हैं। वे लगभग इकाई के दैनिक प्रबंधन से सेवानिवृत्त हो गए हैं और उत्पाद बाजार के विकास के लिए लंबी अवधि की रणनीति की योजना बनाने तक खुद को सीमित कर लिया है। वे याद करते हैं कि उनकी पत्नी ने उनके पागलपन के कार्य में अपने बेटों को शामिल होने के लिए उनकी कॉलेज की पढ़ाई छोड़ने हेतु बेटों को समर्थन नहीं दिया। वह अक्सर उसके साथ झगड़ा करती और जोर देती कि घर को शालीनता से चलाने के लिए एक स्थिर आय जरूरी थी।

उसने पिछले कुछ वर्ष से सताना बंद कर दिया है और वास्तविकताओं के साथ शर्तों को जाना है। उसने जाहिर तौर पर अपने पति की उपलब्धि में गौरांवित होना शुरू कर दिया है। वह उसकी बहु से मशीन का ब्रोशर दिखाने के लिए कहती है जब कोई इस ‘पागलपन के शौक की स्थिति के बारे में पूछताछ करता है। सीपों से वर्षा सिंचित कपास (किस्म सं.797) को अलग करने की प्रक्रिया के यांत्रिकीकरण का विचार उन्हें अपने गांव के लगातार दौरों में से एक दौरे के दौरान आया। वे कई महीनों तक विचार में उलझे रहे। 1991 में, वह आश्वस्त हो गए कि आंशिक रूप से खुले बीजकोष से कपास के फोहे को अलग करने की प्रक्रिया का यांत्रिकीकरण एक असंभव कार्य नहीं था और इसे निष्पादित करने के लिए वे एक मशीन विकसित कर सकते थे। उन्होंने उनके सहयोगियों और रिश्तेदारों के साथ इस विचार पर चर्चा की। वे बहुत उत्साहित थे और आगे जाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया। कांतीभाई पटेल, जो ट्रेंट समूह सहकारी कपास छीलन ओटाई और दाब सोसायटी लिमिटेड में एक फैक्ट्री प्रबंधक थे, ने विचार को सफल बनाने में शामिल अनुसंधान और विकास के काम में निवेश करने का वादा किया। उद्यम समर्थन के बारे में कांतीभाई इतने उत्साही थे कि आरंभिक स्थापना व्यय को उठाने के लिए उन्होंने 1,50,000 रुपये की एक मोटी रकम भेंट की।

इस पैसे के साथ मनसुखभाई ने कपास प्रसंस्करण चक्की के पास एक शेड किराए पर लिया और इस पैसे के साथ कुछ बुनियादी मशीनरी लगाई। उनके कई सहयोगियों, और कारखाने के श्रमिकों ने मशीन के विकास में सहायता करने के लिए स्वेच्छा से कार्य किया। वे उनकी नियमित ड्यूटी के बाद कई घंटे हर शाम चर्चा करने में और विकल्पों को ढूँढने का प्रयास करने में बिताते थे। पहले मॉडल के साथ आने के लिए समर्पित प्रयासों के दो साल लग गए। मनसुखभाई ने अपनी प्रथम संपूर्ण कपास अलग करने वाली मशीन को 1994 में डिजाइन किया, बनाया और प्रदर्शित किया। अपने गांव में प्रदर्शन ने सभी को आश्वस्त किया कि वास्तव में थकावटी प्रक्रिया को यांत्रिकी बनाना संभव था। मशीन के प्रदर्शन के बाद आयोजित एक बैठक के अंत में, उन्होंने खुद को 50 मशीनों के पक्के ऑर्डर्स के साथ पाया। बावजूद इसके यह प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं था जितना मनसुखभाई चाहता थे। मशीनों की वास्तविक आपूर्ति आसान था।


यद्यपि ग्राहकों को प्रदर्शन के समय में काफी प्रभावित किया गया था, तथापि वास्तविक काम की परिस्थितियों के तहत प्रदर्शन ने उपयोगकर्ताओं को संतुष्ट नहीं किया। सभी मशीनों की शिकायतों के साथ वापस लौटा दिया गया। अंत में यह पाया गया कि खराबी की वजह एक तुच्छ तकनीकी समस्या थी। उन्हें प्राप्त धन लौटाना पड़ा और एक गंभीर वित्तीय धक्का सहना पड़ा। मनसुखभाई ने हार नहीं मानी। उन्होंने महसूस किया कि भावी उपयोगकर्ताओं से प्राप्त भारी प्रारंभिक प्रतिक्रिया से किसी तरह उनमें जताए गए विश्वास को सही साबित किया जा सकता है। उन्होंने पूर्णता पर अपने प्रयासों को तेज कर दिया। उन्होंने किराया बचाने के लिए वर्कशॉप को अहमदाबाद से नाना उभादा अपने बहनोई के यहाँ स्थानांतरित कर दिया।

मनसुखभाई ने एक सप्ताह में एक बार या दो बार नाना उभादा का दौरा शुरू कर दिया। जयंतीबाई और उनके परिवार के सदस्यों ने जितना समय मिल सकता था, परियोजना को समर्पित कर दिया। अन्य रिश्तेदार भी कुछ समय में जुड़ गए। पहला प्रोटोटाइप 1994 में विकसित किया गया और वह अंतिम मॉडल 1996 में विकसित कर पाए। तीन और वर्ष की अवधि में मनसुखभाई ने मशीन में कई परिवर्तन किए। पिछले साल, उन्होंने धूल संग्राहक और मशीन से जुड़ी स्वचालित फीडिंग प्रणाली शुरू की है। उन्होंने मशीन को पोर्टेबल बनाने के लिए व्हील ब्रैकेट्स और कैस्टर भी प्रदान किए।


मनसुखभाई ने अब तक 35 मशीनों का निर्माण किया है जिसमें प्रत्येक की लागत तीन लाख है। मनसुखभाई की आवरण उतारने वाली मशीन नवप्रवर्तन को सृष्टि द्वारा सराहा गया। नवाचार नवर्प्रतन आवर्धन नेटवर्क (ज्ञानदृवेस्ट), ने मूल्य संवर्धन का कार्य किया। मनसुखभाई को वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डी. एस.टी) विभाग की अन्य शाखाओं के साथ संपर्क में डाल दिया गया। ज्ञान के समर्थन के साथ, मनसुखभाई टैक्नोप्रेन्योर संवर्धन कार्यक्रम (टीईपीपी) के तहत रुपये 5,80,000 जुटा सके। ज्ञान-डब्ल्यू ने भी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (एन.आई.डी), अहमदाबाद से तकनीकी सहायता के लिए व्यवस्था की।

एन.आई.डी में अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाते हुए एक जर्मन छात्र ने मशीन की डिजाइन पर छह महीने के लिए व्यवस्थित रूप से काम किया और कुछ बहुमूल्य जानकारी प्रदान की। आईआईटी-मुंबई की फैकल्टी ने भी डिजाइन में सुधार के लिए सुझाव दिए। इस स्ट्रिपर से शारीरिक श्रम में शामिल लागत की बचत होती है और यह महिलाओं और बच्चों के लिए नीरसता समाप्त करती है। यह प्रति घंटे 400 किलो कपास संसाधित करती है। यह कपास की गुणवत्ता में सुधार करती है। मशीन दो मॉडल में उपलब्ध है। यह सहायक अनुलग्नक के रूप में सक्शन फीड के साथ उपलब्ध है।

वर्तमान में राष्ट्रीय पेटेंट के लिए आवेदन किया गया है और अंतरराष्ट्रीय पेटेंट आवेदन सृष्टि, राष्ट्रीय नवप्रर्वतन और ज्ञान- वेस्ट के प्रयासों के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रक्रिया के तहत है। गुजरात के सूखे कपास के उभरते हुए इलाकों और देश के कुछ अन्य भागों में, स्वदेशी कपास की किस्मों (जैसे कल्याण-वी 797, जी-13 इत्यादि) को उगाया जाता है, जहाँ फाहा को कोष के आंतरिक भाग में कसकर संलग्न किया जाता है. ओटाई घटित होने के पूर्व, इस फाहा को कोष से अलग किया जाता है. यह एक परिश्रमी प्रक्रिया है जो महिलाओं और बच्चों द्वारा या तो घर पर या गिनिंग मिलों में हाथ से किया जाता हैइस समस्या के उत्तर के रूप में, मनसुखभाई ने एक कपास अलग करने वाली मशीन का विकास किया, जो कपास कोष से फाहा को यात्रिकी रूप से निकालती है, तेज और दक्ष रूप में एवं इसे ओटाई करने के लिए तैयार छोड़ती है. मशीन में फीडिंग यूनिटें, विद्युत मोटर, सिलिंडर ब्रश रोलर्स, वायर मेश रोलर्स, सक्शन यूनिटें और क्लीनिंग यूनिटें होती हैं. आसान गतिशीलता के लिए इसे व्हील माउंट भी किया जा सकता है। नवप्रर्वतक को 2002 में राष्ट्रीय नवप्रवर्तन सम्मान से भी नवाज़ा गया।

मनसुख भाई जगानी ने बनाया साइकिल चालित छिड़काव यंत्र

गुजरात के अमरेली जिला स्थित मोटा देवालिया गांव निवासी मनसुखभाई अंबाभाई जगानी (40) किसान होने के साथ-साथ यांत्रिक खोज का जुनून रखने वाले शिल्पकार भी हैं। वह अपने परिवार के मुख्य उपार्जक हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी के अलावा तीन बेटियां और एक बेटा है। उनका जन्म एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था। अपने चार भाइयों में सबसे बड़े मनसुखभाई खराब आर्थिक स्थिति के कारण केवल प्राथमिक स्तर की शिक्षा ही पूरी कर सके। 


इसके बाद पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाने लगे। बाद में उन्होंने कुछ दिनों के लिए सूरत स्थित एक हीरा काटने-चमकाने (कटिंग-पॉलिसिंग) वाली कंपनी में काम किया। हीरा पॉलिसिंग उद्योग में काम नहीं होने की स्थिति में कृषि मज़दूर के रूप में उन्होंने कई अन्य स्थानों पर भी काम किया। लेकिन वह अपने काम से संतुष्ट नहीं हुए और गांव लौट आए। यहां इन्होंने एक साल तक लोहा वेल्डिंग और सामग्री निर्माण का अनौपचारिक प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने अपने ही गांव में मरम्मत-निर्माण कार्यशाला (वर्कशॉप) खोली जिसे वह पिछले 22 सालों से चला रहे हैं। 

वह ग्रामीणों को डीजल इंजन और कृषि औजारों के मरम्मत और निर्माण से जुड़ी सेवाएं देते हैं। इसके अतिरिक्त हैरो, हल, सीड ड्रिल और ग्रिल जैसे कृषि उपकरणों को बेचते हैं। दरवाज़े और खिड़कियां भी बनाते व बेचते हैं। उत्पत्ति रू खेत में कृषि रसायनों के छिड़काव में होनेवाली परेशानी से अवगत जगानी ने एक ऐसे छिड़काव यंत्र विकसित करने का निर्णय लिया जो किसानों के लिए कुशल व क्रय दायरे में आनेवाला हो। उन्होंने छिड़काव यंत्र को हर घर में पाए जाने वाली साइकिल से जोड़ने का निर्णय लिया। 

उन्होंने एक परंपरागत साइकिल ली और बीच वाले सॉकेट को पीछे वाले पहिए तथा पीछे वाले पहिए के सॉकेट को बीच वाले सॉकेट की जगह लगाया। बीच वाले सॉकेट में उन्होंने पैडल की जगह पिस्टन की छड़ को जोड़ा। जो दो में से एक ओर पीतल यांत्रिक सिलेंडर पंप से जोड़ा गया। उन्होंने 30 लीटर के एक पीवीसी भंडारण टैंक को कैरियर पर रखा। यह सिलेंडर को आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराने के साथ-साथ नोजल (नोक) लगे चार फीट लंबे छिड़काव करने वाले सिरे से जुड़ा होता है। इसको अन्य उपकरणों के साथ साइकिल कैरियर के दोनों ओर जोड़ा जा सकता है। आठ दिनों की कठिन मेहनत के बाद उन्होंने साइकिल चालित छिड़काव यंत्र बनाने में सफलता पाई। बाद में उन्होंने साइकिल के संतुलन को बनाए रखने के लिए 20 लीटर के दो टैंकों को साइकिल के दोनों ओर रखकर एक आदर्श नमूना (मॉडल) बनाया। वे ऐसे तीन यंत्रों को तैयार कर बेच चुके हैं। 


यह छिड़काव व्यवस्था नवीन सॉकेट पंप, टैंक और समायोज्य छिड़काव सिरे (स्प्रेयर बूम) का संगम है जो बाज़ार में उपलब्ध किसी साइकिल के साथ युक्त किया जा सकता है। घोलवाला ड्रम साइकिल के फ्रेम से जुड़ा होता है। लिंकेज यंत्र रचना के माध्यम से पिस्टन परस्पर सॉकेट से जुड़े होते हैं। इसमें कई नोजल होते हैं। इसकी ऊंचाई और दिशा को आवश्यकताओं के अुनसार समायोजित किया जा सकता है। उपयोग नहीं होने की स्थिति में इसको खोलकर तह किया जा सकता है। इसी तरह से चलाने वाले सॉकेट को आपस में बलदकर एक परंपरागत साइकिल का रूप दिया जा सकता है। बड़ा सॉकेट पहिए के साथ फिट होता है जबकि छोटे से साइकिल चलाने का काम होता है। 

साइकिल के आगे या पीछे चलने पर चेन और सॉकेट की मदद से पंप टैंक में हवा का दबाव बनता है। इसके बाद छिड़काव वाले सिरे पर लगे नोजल के सहारे छिड़काव का काम पूरा होता है। नियंत्रण (कंट्रोल) वाल्व की मदद से छिड़काव वाले सिरे से द्रव (लिक्विड) के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है। लाभ रू इस छिड़काव यंत्र में कम ऊर्जा खपत होती है। इसको संचालित करना और इसकी देखभाल करना आसान है। यह एक ऐसा लचीला उत्पाद है जो समायोज्य ऊंचाई और चौड़ाई के साथ बेहतर छिड़काव परिणाम देता है। यह सभी फसलों के लिए उपयोगी है। ट्रैक्टर से जुड़े शक्ति चालित छिड़काव यंत्र की तुलना में इसके बहुत सारे उपयोग हैं क्योंकि साइकिल को चलाने के लिए बहुत कम जगह चाहिए। यह श्रम बचाने वाला उपकरण है। एक एकड़ खेत में इसकी मदद से 45 मिनट में छिड़काव किया जा सकता है। इस तरह से यह मैनुअल स्प्रेयर की तुलना में अधिक क्षेत्र कवर करता है। इसको जोडना और खोलना आसान है। छिड़काव यंत्र और साइकिल दोनों रूपों में इसका प्रयोग होता है। इसकी लागत साइकिल से अलग 2200 रूपये है। प्रासंगिकता और संभावनाएं रू आमतौर पर किसानों द्वारा प्रयुक्त थैलेनुमा छिड़काव यंत्र में एक हाथ से पंपिंग तथा दूसरे हाथ में छिड़काव करना पड़ता है। छिड़काव की पूरी प्रक्रिया थकानेवाली है, साथ-साथ पीठ पर लंबे समय तक वजन होने की वजह से हाथ, गर्दन और पीठ में दर्द होने लगता है। इस तरह से बड़े क्षेत्र में छिड़काव करने में अधिक समय लगता है जिससे खर्च में बढ़ोतरी होती है। 

इसके अतिरिक्त कीटनाशक की बूंद के आंखों में जाने का भी खतरा रहता है। शहर की ओर पलायन के कारण कृषि मजदूरों की संख्या कम हो गई है। दोपहिए या ट्रैक्टर से संबद्ध छिड़काव यंत्र बहुत खर्चीले होने के साथ छोटे खेतों के लिए अनुपयुक्त होते हैं। नवप्रवर्तनों की एक शृंखला... मोटरसाइकिल चालित बहुद्देशीय कृषि उपकरण (बुलेट सैंटी) रू वर्ष 1994 में मनसुखभाई जगानी ने मोटरबाइक के लिए बहुद्देशीय उपकरण पट्टी (टूल बार) विकसित किया था। इसने सौराष्ट्र में मजदूरों की किल्लत और बैल की कमी जैसी दोहरी समस्या को सुलझाने में मदद की। इस मोटर साइकिल संचालित हल (बुलेट सैंटी) का कुंड खोलने, बुवाई, अंतर-संवर्धन और छिड़काव के संचालन जैसे विभिन्न खेती के कार्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। छोटे आकार के खेतों के लिए मनसुखभाई की मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी कुशल और लागत प्रभावी साबित हुई। यह सिर्फ दो लीटर डीजल की खपत से आधे घंटे से कम समय में एक एकड़ (0.4 हेक्टेयर) निराई (खरपतवार निकालने) का काम कर सकती है। इस मोटरबाइक (सैंटी) की मदद से सामान्य खेतों में निराई का काम आठ रुपये प्रति हेक्टेयर के दर से किया जा सकता है। जबकि एक दिन में 10 हेक्टेयर खेत से खरपतवार निकाले जा सकते हैं। बीज सह उर्वरक डिबलर रू जगानी ने बीज सह उर्वरक डिबलर को भी विकसित किया। यह उपकरण बुवाई के उपलब्ध विकल्पों में सबसे तेज और किफायती है। यह यंत्र बुवाई तथा फसलों में उर्वरक डालने वाले दोनों कार्यां में सहायक है। इससे बीज और उर्वरक की बर्बादी नहीं होती है। समरूप बुवाई होने से अंकुरण प्रतिशत में बढ़ोतरी होती है। 

ग्रामीण प्रतिभा के लिए मान्यता रू राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान दृ भारत की ओर से जमीनी स्तर पर प्रौद्योगिकीय नवप्रवर्तन के लिए आयोजित प्रतियोगिता में वर्ष 2000 में मनसुखभाई जगानी के बुलेट सैंटी ने दूसरा पुरस्कार जीता था। पुणे में आयोजित इंडियन साइंस कांग्रेस-2000 और आई. आई. टी दिल्ली में आयोजित स्वदेशी विज्ञान मेले में भी इस नवप्रवर्तन को प्रदर्शित किया गया था। 

जून 2002 में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित प्रदर्शनी में भी इन्हें सृष्टि और राष्ट्रीय नवप्रवर्तन की मदद से अपने नवप्रवर्तन को प्रदर्शित करने का मौका मिला। इसका आयोजन संयुक्त रूप से उत्तरी राज्यों के लघु, मध्यम और सूक्ष्म उद्यम विभाग (एस. एम. एम. ई) और राष्ट्रमंडल विज्ञान परिषद (सी. एस. सी), लंदन की ओर से किया गया था। प्रदर्शनी के दौरान उन्हें दर्शकों के सम्मुख दोपहिए में लगे कीटनाशक छिड़काव यंत्र को दिखाने का मौका मिला। 

चूंकि उत्तरी प्रांतों के किसानों के पास मोटरबाइक नहीं साइकिल होती है इसलिए मनसुखभाई ने मौके पर ही साइकिल स्प्रेयर मुहिम को शुरू किया। ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े इस प्रतिभा के ज्ञान और दक्षता से वहां उपस्थित सभी लोग प्रभावित हुए। वास्तव में मनसुखभाई का मोटर बाइक बहुद्देशीय हल एक ऐसा उत्पाद है जिसका वैश्विक प्रयोग किया जा सकता है। एनआई. डी, अहमदाबाद की ओर से डिजाइन तैयार करने में सहयोग, बोस्टन स्थित टीएचटी के पेटेंट आवेदन करने में सहयोग और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सोलन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट की ओर से विधि-व्यापार संबंधी मदद के बाद इस नवप्रवर्तन को सही मायने में स्थापित किया जा सका। 

साइकिल छिड़काव यंत्र के पायलट उत्पादन व जांच विपणन के लिए राष्ट्रीय नवप्रवर्तन ने उन्हें माइक्रो उद्यम अभिनव कोष (एमभीआईएफ) से 20 हज़ार रुपये की स्वीकृति दी है। नवप्रवर्तन विवरण रू खेतों में कृषि रसायनों का छिड़काव एक कठिन और श्रमसाध्य कार्य है। बाज़ार में उपलब्ध परंपरागत थैलेनुमा छिड़काव यंत्र को चलाने के लिए मानवीय श्रम की जरूरत होती है। कृषि श्रमिकों के शहर की ओर पलायन करने के कारण ये सहज उपलब्ध नहीं हैं। छोटे किसानों के लिए बाजार में उपलब्ध शक्ति चालित छिड़काव यंत्र या ट्रैक्टर से जुड़े छिड़काव यंत्र के खर्च को वहन करना संभव नहीं है। ये यंत्र बहुत महंगे होने के साथ-साथ छोटे किसानों के छोटे भू-खंडों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। मनसुख भाई जगानी किसान होने के साथ-साथ यांत्रिक नवप्रवर्तन का जुनून रखने वाले एक शिल्पकार भी हैं । 

उन्होंने साइकिल चालित एक छिड़काव यंत्र विकसित किया जो किसानों के लिए उपयुक्त और क्रय दायरे में आने वाला है। इस समायोजन में साइकिल सॉकेट की वृत्तीय गति की मदद से स्प्रे पंप के पिस्टन को चलाया जाता है। इससे उत्पन्न दबाव की मदद से कीटनाशकों का छिड़काव संभव होता है। बेकार साइकिलों के आगे और पीछे के सॉकेट को अदल-बदल कर छोटे सॉकेट को पिस्टन पंप से जोड़ दिया जाता है ताकि वृत्तीय गति को पिस्टन की गति में रूपांतरित किया जा सके और इसका प्रयोग खेत में कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किया जा सके।

धान को तेजी और कुशलता से फैलाने के लिए इंजन संचालित धान स्प्रेडर

आर रवि (37), इरोड में एक मैकेनिक हैं जिन्होंने धान को तेजी और कुशलता से फैलाने के लिए इंजन संचालित धान स्प्रेडर को विकसित किया। इस मशीन का इस्तेमाल तिलहन, बाजरा, धनिया आदि को फैलाने के लिए भी किया जा सकता है। केवल आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई करने वाले रवि ने पांच वर्षों तक बिजली मिस्त्री (इलेक्ट्रिशियन) के रूप में काम किया। उसके बाद एक स्थानीय फर्म में करीब एक साल तक मैकेनिक और मजदूर के रूप में भी काम किया। इसके बाद उन्होंने अपनी कार्यशाला शुरू की। उत्पादों की आपूर्ति और मशीनों की मरम्मती के लिए मिलों का दौरा करते समय रवि ने गर्म अधपके अनाज (बीज) को फैलाने में होनेवाली कठिनाइयों और मजदूरों की आवश्यकता को महसूस किया। 

धान को आम तौर पर फर्श पर फैलाकर धूप में सुखाने के लिए रखते हैं। धान को उचित और समरूप सुखाने के लिए बड़ी संख्या में और जल्दी-जल्दी (दिन में 7-8 बार) मजदूरों की आवश्यकता इसको पलटने के लिए होती है। बेहतर परिणामों के लिए धान के परत की मोटाई 2.5 सेमी होना चाहिए। इस मोटाई में एक एकड़ सुखाने वाले सतह पर 60 टन धान को सुखाया जा सकता है। इस समस्या के समाधान के लिए रवि ने इस मशीन को तैयार किया और मजदूरों से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए उसे दिया। जिसका प्रयोग बाद में सुधारने के लिए किया गया।

उनका स्प्रेडर 50सीसी प्रेट्रोल इंजन वाला एक ट्राइसाइकिल है जो रबड़ से बने और शाफ्ट से जुड़े घूमने वाले अवयवों को शक्ति प्रदान करता है। ये घूमने वाले अवयव अनाज को बिना क्षति पहुंचाए फैलता है। धान और तेलहन को धूप में सुखाने के एक अभिनव हल होने के कारण यह मशीन किसानों और लघु उद्योगों के लिए काफी उपयोगी साबित हुआ। 10 टन धान को फैलाने के लिए इस मशीन का उपयोग करने पर केवल दो मजदूरों की अन्यथा 15 मजदूरों की जरूरत होती है। मशीन की लागत 30,000 रुपये है और रवि ने तमिलनाडु में लगभग 200 मशीनों को बेच दिया है। तीन साल तक बिक्री करने के बाद 2008-09 में उन्होंने धन की समस्या की वजह से इसको बनाना बंद कर दिया। 


कई लोगो ने इसकी नकल करने की कोशिश की, लेकिन वह किसी भी रूप में सफल नहीं हो सके। नवप्रवर्तक ने अधपके धान को तेजी से और समरूप फैलाने के लिए एक स्प्रेडर विकसित किया है। इसी मशीन का उपयोग दूसरे अनाज (तिलहन, बाजरा, धनिया आदि) को फैलाने के लिए भी किया जा सकता है जिसको धूप में सुखाने के लिए फैलाने की जरूरत होती है। यह 50सीसी प्रेट्रोल इंजन वाला एक ट्राइसाइकिल है जो रबड़ से बने और शाफ्ट से जुड़े घूमने वाले अवयव को शक्ति प्रदान करता है। ये घूमने वाले अवयव बीज को बिना क्षति पहुंचाए फैलता है। 

राष्ट्रीय नवप्रर्वतन द्वारा पुरस्कृत पेटेंट के लिए आवेदन किया गया है। यह तीन फीट चौड़े और 10-15 सेमी मोटे धान या तिलहन के तल को 0.5 लीटर प्रति घंटे ईंधन की खपत में कवर कर सकता है। इसी मशीन का प्रयोग तिलहन, बाजरा, धनिया आदि के लिए भी किया जा सकता है जिसे सुखाने के लिए धूप में फैलाने की जरूरत होती है।