Total Pageviews

Friday 27 November 2015

कभी रोहतक में रिक्शा चलाते थे अब लंदन के घर-घर में इनका जलवा

रवि शर्मा
लंदन। हालाँकि वह पहले भी चर्चा में रहे हैं, लेकिन इनदिनों एकाएक सुर्ख़ियों में आ गए हैं। वजह ये की उन्होंने लंदन के वेम्बले स्टेडियम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समारोह में मंच का बखूबी संचालन किया। रवि शर्मा, यही नाम है उनका। इन दिनों गूगल, फेसबुक और ऐसे ही अन्य माध्यमों पर लोग उनके बारे में सर्च कर रहे हैं। और करें भी क्यों न ! रवि शर्मा का जीवन बहुत से कठिनाइयों की राह से गुजर कर लंदन सफलता की मंजिल तक पहुंचा है। गौर कीजियेगा, कभी वह भारत के रोहतक में रिक्शा चलाते थे। लेकिन अपनी मेहनत और योग्यता से लंदन के रेडियो जॉकी के रूप में छा गए और वहां के घर-घर में अपनी आवाज की बदौलत जाने-पहचाने जाते हैं। 
बहुत कठिनाइयों में गुजरा बचपन 
रोहतक के बखेता गांव के निवासी रवि का बचपन बहुत कठिन था। पिता टीचर थे लेकिन घर का खर्च चल नहीं पाता। जनता कॉलोनी में घर था। फीस और ट्यूशन का खर्च निकालने के लिए उन्हें रिक्शा चलाना पड़ा। इसी से उनकी पढ़ाई का खर्च निकलता। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से किसी प्रकार उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। रवि के बोलने और बातचीत का अंदाज बहुत अच्छा था। ऊपर से आवाज भी बढ़िया। इसी दौरान उनकी नौकरी रेडियो में लग गई। संगीत और कविता की रुचि उन्हें थिएटर तक ले आई। चुनावी सभा और धार्मिक संगठनों से नाटकों के मंचन करने के लिए ऑफर आने शुरू हो गए। 1982 में लंदन स्थित एक मंडली से उन्हें बुलावा मिला। वहां पर कार्यक्रम के बाद वापस लौट आए और दो साल बाद फिर से लंदन का रुख किया। वहां उन्होंने कड़ी मेहनत और जानदार हुनर के सहारे लंदन में बसे भारतीयों के दिल में अपनी अलग पहचान बना ली है। 
और मिल गई कामयाबी 
 1984 में लंदन जाने के बाद उन्होंने सफलता की बुलंदियां छूना शुरू कर दिया। रवि ने बीबीसी के लिए स्वतंत्र रूप में काम करना शुरू किया। कुछ साल बाद एक दूसरे चैनल के साथ जुड़ गए। अब 60 साल की उम्र में वे लंदन के लाइका रेडियो में बतौर स्टार जॉकी काम कर रहे हैं। इस रेडियो पर रवि वहां बसे भारतीयों को हिंदी संगीत और देसी परंपराओं से जोड़े हुए हैं। इतना ही नहीं उन्हें जब भी मौका मिलता है तो वे शादी-विवाह में पंडित का काम और कवि सम्मेलन में भी शिरकत करते हैं। 
परिवार का मिला साथ 
 रवि बताते हैं कि उन्हें हमेशा परिवार का पूरा साथ मिला। मुझे अपने स्टेज शो लेकर मॉरीशस, जर्मनी, स्वीडन, हॉलेण्ड, नार्वे और रीयूनियन जाने का मौका मिला है। भावुक होकर वह बताते हैं, सोचिए रोहतक के एक गाँव में जन्मा निम्न मध्य वर्ग का एक लड़का जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए रिक्शा चलाने को मजबूर था, आज विश्व भर के दौरे कर रहा है। मेरे दादा जी, पिता जी सभी अध्यापक थे। हम चार भाई और दो बहनें हैं। रेडियो का सफर मैंने 1976 में ऑल इण्डिया रेडियो रोहतक से शुरू किया था। 1985 में विवाह हुआ। पत्नी आशा किरण एक सरकारी महकमे में मैनेजर हैं। एक बेटा संकल्प और बेटी रागिनी अभी स्कूल जाते हैं। 
मिले हैं बहुत से पुरस्कार 
रेडियो के सफर में रवि शर्मा को कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। एशियन फिल्म और मीडिया बरमिंघम का यूके एशियन अवार्ड, नेशनल डीजे, बेस्ट ब्रॉडकास्टर अवार्ड, यूके हिन्दी समिति का संस्कृति सम्मान। वह कहते हैं कि अच्छा लगता है जब कभी सम्मान या पुरस्कार मिलते हैं। मैं बस काम कर रहा हूँ, यदि सम्मान भी मिल जाते हैं तो कहीं कुछ अच्छा लगता है। मैने अपने जीवन में गलतियां करके सीखा है। अच्छा लगता है जब भीड़ में एक पहचान बन जाती है। 
हरियाणवी क्रिकेट कमेंट्री भी है प्रसिद्ध
 रवि शर्मा ने दशकों पूर्व हरियाणवी अंदाज में क्रिकेट कमेंट्री की थी। इसमें उन्होंने रोहतक के पास स्थित अस्थल बोहर गांव के मैदान में खरावड़ और मकड़ौली के बीच हुए मैच को हरियाणवी अंदाज में बया किया था। हरियाणवी अंदाज में उनकी कमेंट्री को लोगों ने खूब सराहा और यू-ट्यूब पर हजारों भारतीयों ने इसे देखा। 
डेढ़ लाख में हुई थी शर्ट की नीलामी 
 लंदन में रवि शर्मा की आवाज के प्रशंसकों की लंबी फेहरिस्त है। 15 साल पहले रवि शर्मा लंदन के प्रसिद्ध सनराइज रेडियो के सुपर स्टार थे। उस समय वे इतने लोकप्रिय थे कि उनकी एक शर्ट डेढ़ लाख रुपये में नीलाम हुई थी। 
13 नवंबर बन गया सबसे ख़ास 
30 साल बाद भी दिल में देश और हरियाणा जिंदा है। 13 नवंबर को लंदन में मोदी के मंच के लिए अंग्रेजी, हिंदी, पंजाबी और गुजराती जानने वाले शख्स की जरूरत थी। ऐसे में आयोजकों के मन में बिना किसी दुविधा के पहला नाम रवि शर्मा का ही आया। वेम्बले स्टेडियम से मोदी ने लंदन में रहने वाले भारतीय मूल के 60 हजार लोगों को जब संबोधित किया तो इस पूरे समारोह का संचालन रवि ने ही किया।

Saturday 4 April 2015

पबनावा रेलवे स्टेशन एक सामाजिक समरसता की अटूट मिसाल

 गांव पबनावा की 36 बिरादरियों के लोगों ने साबित कर दिखाया है कि जज्बा हो तो कुछ भी कर सकतेहैं। पबनावा जसमहिंद्र रेलवे स्टेशन काफी अर्सें से कई समस्याओं से जूझ रहा था। सबसे बड़ी समस्या थी नीचे प्लैटफॉर्म की। रेलगाड़ी से उतरते वक्त गिरने का खतरा बना रहता था। कई लोग गिरे भी। इस बारे में ग्रामीणों ने कई बार अफसरों को शिकायत दी। लेकिन समाधान नहीं हुआ।ग्राम जन समिति के प्रधान 85 साल के लाला हरी राम ने बताया कि गत वर्ष 31 अक्तूबर को रेलवेके चीफ इंजीनियर दिल्ली से पबनावा रेलवे स्टेशन का दौरा करने आए हुए थे। गांव वालों ने उन्हें रेलवे स्टेशन की समस्याओं के बारे में बताया। इस पर चीफ इंजीनियर ने ही उन्हें राय दी कि गांव वाले अपने फंड से स्टेशन प्लैटफॉर्म को ऊंचा कर सकते हैं।
गांव के सरपंच ने पंचायत बुलाकर सर्वसम्मति से स्टेशन का विकास करवाने का निर्णय लेते हुए ग्रामजन समिति का गठन कर दिया। इसमें सभी बिरादरी से 14 सदस्यों की कमेटी गठित की गयी। उसकी देख-रेख में काम शुरू कर दिया गया। गांव की सभी बिरादरियों के लोगों ने सहयोग राशि दी।लाला हरी राम ने बताया कि गांव के सहयोग से स्टेशन पर 1700 फीट लंबी चारदीवारी और रेलगाड़ी से उतरने के लिए ऊंचा कोपिंग बनाया गया है। अब यात्रियों को गाड़ी से उतरने-चढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आती। प्लैटफॉर्म को ऊपर उठाने में 700 ट्राली मिट्टी की डाली गयी हैं। इसके अलावा रेलवे की ओर मुहैया करवाई गयी रेलिंग को गांव वाले अपने खर्च पर लगवा रहे हैं। पूरे काम पर करीब 10 लाख खर्च हो चुके हैं।

शहीद कैप्टन जसमहिंद्र के नाम पर है स्टेशन का नाम
कमेटी के प्रधान लाला हरी राम ने बताया कि 1965 की लड़ाई में शहीद कैप्टन जसमहिंद्र की यादमें सरकार ने पबनावा रेलवे स्टेशन का नाम पबनावा जसमहिंद्र रेलवे स्टेशन रखा था। आज भी शहीद जसमहिंद्र सिंह समूचे गांव व युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।

रणाराम एक विलक्षण जीव प्रेमी

जिले के कानेलाव गांव के रणाराम खेतीहर मजदूर है। उन्होंने ने तो पशु-पक्षियों को नियन्त्रित करने के लिए प्रशिक्षण लिया है और ना ही वे उनके साथ रहे है। रणा प्यार की भाषा जरूर जानते है, तभी तो उनकी एक आवाज पर गांव के तालाब के कछुए दौड़े चले आते है।
संवेदनशील कछुए जो हल्की सा आहट पर अपने खोल में छिप जाते हैं, रणा के आते ही बेखौफ होकर चहलकदमी करने लगते हैं। इस दौरान काफी संख्या में ग्रामीण वहां मौजूद रहते है लेकिन कछुए उनसे नहीं डरते।

पांच साल की मेहनत

रणाराम बताते है कि ये सिलसिला करीब पांच साल पहले शुरू हुआ। एक सुबह वह गांव के आखरिया के निकट स्थित तालाब में रोटी लेकर गया तो उसकी आवाज सुनकर काफी कछुए बाहर आ गए। उसने हाथों से कछुओं को रोटी खिला दी। फिर तो एेसा सिलसिला चला जो अभी तक बरकरार है। अब तो तालाब में रहने वाले सारे कछुए उसके दोस्त बन गए।

गांव के बड़े तालाब में स्थिति ये है कि कछुए सुबह गांव के चौक की ओर स्थित किनारे पर उसका इंतजार करते हैं। अलसुबह वह घर से रोटियां बनाकर लाता है। जैसे ही तालाब किनारे पहुंचकर कछुओं को आवाज लगाता है तो तालाब में जगह-जगह से कछुए भागे चले आते हैं। कुछ ही देर में तालाब किनारे कछुए ही कछुए नजर आने लग जाते हैं।

दिनचर्या में हुआ शुमार

रणाराम मीणा नियमित रूप से घर से आठ से दस रोटी बनाकर लाता है और कछुओं को खिलाता है। कछुओं से उसकी दोस्ती का आलम यह है कि थोड़ी देर में तालाब किनारे कछुओं का झुण्ड लग जाता है। दोस्ती के इस अनूठे नजारे को देखने के लिए गांव के लोग भी एकत्र हो जाते हैं।

केवल रणा से प्रेम

रणा जब किसी काम से गांव से बाहर जाते हैं तो उनके बेटे या परिवार के अन्य सदस्य को जिम्मेदारी सौंप कर जाते हैं। हालांकि, उनका बेटा जब रोटी खिलाने जाता है तो कछुए तालाब से बाहर नहीं आते। वो तालाब के पानी में ही रोटी डालकर चला जाता है।

उमेश वर्मा एक भूकम्प वैज्ञानिक

इस साधारण से दिखने वाले चेहरे को नजरअंदाज़ करने जा रहे हैं तो जरा दो मिनट रुकिए और इस साधारण चेहरे के पीछे छूपे इस असाधारण व्यक्ति के बारे में जरा जान लीजिये !

इनका नाम है उमेश वर्मा,पटना के महेन्द्रू के रहने वाले हैं,मोतिहारी के महारानी जानकी कुंवर कन्या उच्च विद्यालय में विज्ञान शिक्षक हैं,इन्होने एक खास कैलकुलेशन के जरिये एक नायाब खोज की है, ऐसी खोज जिसके बारे में दुनिया के किसी व्यक्ति ने सोचा तक नहीं! इन्होंने विमानों के उड़ान हेतु सहायता करने वाली डाटा उपलब्ध कराने वाली संस्था से प्राप्त कुछ डाटा व इससे सम्बंधित गणितीय कैलकुलेशन से भूकंप के पूर्वानुमान की एकदम सटीक जानकारी प्राप्त करने का दावा किया है.
---
अब तक करीब एक दर्जन विश्व भर में आये भूकम्पो का एकदम सटीक पूर्वानुमान कर घोषणा कर चुके हैं, कई देशों से बुलावा पर बुलावा आ रहा हैं, लेकिन देशभक्ति का पागलपन इन्हें इस तरकीब को किसी अन्य देश के साथ साझा करने से रोक रहा है, इन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन्नोवेटिव कौंसिल का सदस्य बनाया है,जिसकी वजह से इन्हें यदा कदा पटना बुलाया जाता है लेकिन प्रतिभा के धनी इस व्यक्ति की प्रतिभा को उचित सम्मान व सहायता की आवश्यकता है,जिसकी बदौलत ये भूकंप से होने वाली अरबो रुपये की क्षति को अपने पूर्वानुमान की वजह से कम कर सकें, लेकिन रुकिए इनकी प्रतिभा सिर्फ पूर्वानुमान तक ही सिमित नहीं है,इन्होने भूकंप से फायदा उठाने की भी तरकीब विकसित की है, इनके मुताबिक़ एक बार के भूकंप से 200 मेगावाट तक की बिजली बड़े आराम से पैदा की जा सकती है.

Friday 27 March 2015

महिला ने खोला 42 साल पुराना राज, राष्ट्रपति ने खुद जाकर दिया सम्मान


काहिरा।

एक मां अपने परिवार और बच्चों की परवरिश की खातिर कितनी मुसीबतों को खुशी-खुशी झेल सकती है इसका अंदाजा लगाना शायद मुश्किल ही नहीं नाममुकिन है। इसका ताजा उदाहरण है मिश्र की रहने वाली 64 वर्षीय शिशा अबू दूह। यह एक ऎसी महिला है जिसने अपना 42 साल पुराना राज खोला तो पूरे मिश्र समेत इसके बारे में जानने वाला हर शख्स आश्चर्य में पड़ गया।






42 साल तक रही पुरूष बनकर-
मिश्र एक ऎसा देश है जहां महिलाओं को सरेआम सामने आकर काम करने की आजादी नहीं है, लेकिन मजबूरी में शिशा ने ऎसा रास्ता निकाला जिससे लोगों को यह तक भनक नहीं लगी कि वो एक महिला है। यह महिला पूरे 42 साल तक पुरूष वेश में अल अकल्ताह शहर के चौराहे पर सरेआम बैठकर जूते पॉलिश का काम करती रही जिसका राज अब खुद ने ही खोला है।
पति की मौत ने किया मजबूर-
हालांकि शिशा का पुरूष बनकर जीने का कोई इरादा नहीं था, लेकिन 1970 में उनके पति मौत हो गई थी। उनके एक बेटी भी थी जिसकी परवरिश करना जरूरी था, लेकिन घर में कमाने वाले की मौत होने और देश में महिला विरोधी कानून होने के चलते जीना मुश्किल हो चला था। शिशा ने जिंदगी से हार नहीं मानी और पुरूष बनकर आजीविका कमाने के लिए पुरूष वेश में जूते पॉलिश करने का काम अपना लिया।

पुरूषों के साथ पीनी पड़ी सिगरेट तक-
शिशा जब पुरूष वेश में चौराहे पर जूते पॉलिश का काम करने लगी है तो उसके साथ ही काम करने वाले अन्य लोग उसे पुरूष समझकर सिगरेट ऑफर करते थे। अपनी पहचान छुपाने की खातिर शिशा ने सिगरेट तक पीना शुरू कर दिया। रोज 1 या 2 डॉलर तक की कमाई करने वाली शिशा की हकीकत के बारे में सिर्फ उसके परिवार और पड़ौसी ही जानते थे। उसकी मजबूरी को देखते हुए पड़ौसियों ने भी कभी उसका यह राज किसी के सामने नहीं खोला और लोग उसे अबू दूह कहकर पुकारने लगे।

राष्ट्रपति ने दिया सम्मान-
महिला विरोधी महौल होने के बावजूद शिशा ने जो कदम उठाया वो सबसे अनोखा था। लेकिन अंत में जब शिशा ने अपना 42 साल पुराना राज खोला तो सबके सब चौंक गए। हालांकि कई लोगों ने उसे भला-बुरा भी कहा, लेकिन देश के राष्ट्रपति अदल फतेह अल-शिशि ने उसे एक साहसी मां कहते हुए अवॉर्ड देकर सम्मानित किया है।

Monday 23 February 2015

ससुराल के लोगों ने अशुभ माना था, आज दे रहीं आर्थिक उन्नति की सीख

नवादा. बात 32 साल पहले की है। बिहार के नवादा जिले के धनवां गांव की पुष्पा की शादी गया जिले के फतेहपुर के धनगांव में लालनारायण सिंह के पुत्र विनोद कुमार के साथ हुई थी। तब पुष्पा 13 साल की थी। छह साल बाद उसका द्विरागमन हुआ। लेकिन 3 माह बाद पति की ब्लड कैंसर से मौत हो गई। पुष्पा पढ़ाई जारी रखना चाहती थी। लेकिन, ससुरालवाले तैयार नहीं थे। तब पुष्पा के पिता अर्जुन सिंह ने नवादा के आरएम डब्लू कॉलेज में ग्रेजुएशन में दाखिला कराया। पुष्पा को तीन साल बाद ननद की शादी में ससुरालवाले ले गए। शादी में ननद और ननदोसी के विवाह के कपड़े को पुष्पा ने छू लिया था, तब न केवल उन्हें फटकारा गया, बल्कि अशुभ बताते हुए उस कपड़े को धुलवाए गए। उस घटना के बाद उसके जीवन बदलाव आ गया। द्विरागमन के बाद ही पति की मौत कैंसर से हो गई, लोगों ने लाख लांछन लगाए, सब-कुछ सहती रही, हार नहीं मानी पुष्पा ज्ञान-विज्ञान समिति में ज्वाइन की। तब पुष्पा के मां-पिता को उसके ग्रामीण तरह-तरह का ताना देकर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। बदचलन और पतुरिया कहने लगे, पर पुष्पा और उसके परिवार के लोग विचलित नहीं हुए। वह आगे बढ़ती गई। वह ग्रेजुएशन और टीचर ट्रेनिंग की। स्वास्थ्य, शिक्षा और अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन को आगे बढ़ाया। वह राज्य महिला सेल की संयोजिका हुई। 2006 में जब वह चितरघट्टी पंचायत में टीचर बनी, तब भी सामाजिक अभियान जारी रखा। महिलाओं को आर्थिक उन्नति की राह बताने लगी। नाबार्ड के जरिए 50 से अधिक समूह का गठन करवाई। लिहाजा, 2014 में भदसेनी की एक समूह को राज्य का बेस्ट समूह का अवार्ड मिला। अराजक तत्व पुष्पा के व्यक्तिगत चरित्र पर लांछन भी लगाते रहे। मिला था मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार, दो लाख नगद से हुई थीं सम्मानित सामाजिक क्षेत्र में समर्पण के कारण 2009 में शिक्षा विभाग ने उसे राज्य साधन सेवी बनाया। 11 नवंबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार दिया। पुरस्कार के पहले भी लांछन लगाया गया। लेकिन वह रुकी नहीं। दूसरी तरफ, पुष्पा अपने छोटे भाई मुकेश और बहन विनीता की पढ़ाई कराई। बहन की बगैर दहेज की शादी भी कराई। अंधविश्वास, अशिक्षा और कुपोषण के खिलाफ उसकी लड़ाई जारी है। पुष्पा से गांवों में विधवा जैसा कपड़ा और आचरण की उम्मीद करते हैं। मांस-मछली खाने पर सवाल उठाते हैं। लेकिन पुष्पा वह ऐसी किसी परंपरा को नहीं मानती। नजरिया बदलें, हमारी भी इच्छाएं होती हैं ^मैं पसंद का कपड़े पहनती हूं और सार्वजनिक तौर पर मांस-मछली खाती हूं। वह बाल विवाह का विरोध करती रही। कई विधवा और अंतरजातीय विवाह करवाई। पिता का सहयोग नहीं मिला होता तो, अन्य महिलाओं की तरह घर के भीतर विधवा का जीवन जी रही होती। मेरा यही मानना है कि लोगों को विधवाओं के प्रति अपने नजरिए को बदलना चाहिए। उनकी भी इच्छाएं होती हैं। -

Thursday 19 February 2015

गौमूत्र से 13 साल की लड़की ने तैयार की बिजली

गौमूत्र से 13 साल की लड़की ने तैयार की बिजली, अब जाएगी जापान
उदयपुर| 8वीं में पढ़ने वाली 13 वर्षीय साक्षी दशोरा ने गाैमूत्र से बिजली तैयार की है। मावली के गड़वाड़ा व्यास एकेडमी की इस छात्रा ने गाय के गोबर और गौमूत्र साइंटिफिक यूज बताते हुए “इम्पॉर्टेंस ऑफ काउब्रीड इन 21 सेंचुरी’ प्रोजेक्ट बनाया है। मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के इंस्पायर अवार्ड के तहत उसके प्रोजेक्ट को अब इंटरनेशनल लेवल पर पहचान मिलेगी। ये प्रोजेक्ट दो माह बाद जापान में आयोजित सात दिवसीय सेमिनार में प्रदर्शित होगा। वहां साक्षी लेक्चर भी देगी।
साक्षी ने अगस्त 2014 में हुई प्रदर्शनी में इस प्रोजेक्ट के लिए उदयपुर जिले में छटी रैंक, फिर सितम्बर में डूंगरपुर में आयोजित राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में 12वीं रैंक और इसके बाद नेशनल लेवल दूसरी रैंक हासिल की थी। साक्षी सहित प्रदेश के अन्य तीन बच्चों का भी जापान के लिए चयन हुआ है।
एेसे बनाई बिजली
साक्षी ने बताया कि गौमूत्र में सोडियम, पोटेशियम, मेग्नीशियम, सल्फर एवं फास्फोरस की मात्रा रहती है। उन्होंने प्रोजेक्ट में एक लीटर यूरीन में कॉपर और एल्युमिनियम की इलेक्ट्रोड डाली, जिसे वायर के जरिए एलईडी वॉच से जोड़ा।
बिजली पैदा होते ही वॉच चलने लगी। गौमूत्र की मात्रा के अनुसार बिजली पैदा होगी। गौमूत्र कैंसर सहित अन्य बीमारियों से भी बचा सकता है। गोबर से लेप करें तो तापमान कंट्रोल रहेगा। इससे अगरबत्ती भी बनाई जा सकती है।

Wednesday 18 February 2015

एक चाय वाला, जिसने लिखी हैं 24 से ज्यादा किताबें (Personal Creativity)

चाय बेचते-बेचते एक इंसान कब प्रधानमंत्री बन जाए, यह तो आपने देख ही लिया है। अब हम आपको एक और ऐसे चाय वाले के बारे में बताने जा रहे हैं, जो चाय पिलाने के साथ लेखन भी करते हैं। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्मे लक्ष्मण राव दिल्ली के आईटीओ की लाल बत्ती से चंद कदमों की दूरी पर बने हिंदी भवन के सामने चाय बेचते हैं। वह अपने हाथों से बनी चाय के साथ अपनी लिखी पुस्तकों की बिक्री भी करते हैं।
लक्ष्मण राव (फाइल फोटो)

62 साल के लक्ष्मण राव अभी तक 24 किताबें लिख चुके हैं, जिनमें 12 किताबें छप चुकी हैं और जून 2015 तक पांच और नई किताबें भी प्रकाशित करने वाले हैं। वह पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से सम्मानित भी हो चुके हैं। चाय बनाते-बनाते करीब 40 साल गुजार चुके लक्ष्मण राव की किताबें अब बुक फेयर में भी मिलने लगी हैं। हॉल नंबर 12 में एक छोटी सी स्टॉल पर उनकी किताबें मिल रही हैं।
लक्ष्मण राव से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि वह अपनी किताबें किसी बड़े प्रकाशन के जरिए नहीं, बल्कि खुद अपने नाम से प्रकाशित करते हैं। लक्ष्मण राव आईटीओ पर पटरी पर लगी चाय की दुकान के किनारें इन पुस्तकों को सेल करते हैं। वह अपनी लिखी किताबों की मदद से करीब 10 हजार रुपये प्रतिमाह कमा भी लेते हैं।

कैसे जागी लिखने की कला?
सवाल पर जवाब मिला कि जब वह अपने गांव में रहते थे, तब गांव के एक छोटे से लड़के ने नदी में नहाने की इच्छा जताई और वह नदी में कूद गया। लेकिन वह वापस लौट नहीं पाया। उसी लड़के पर आधारित घटना ने उन्हें लिखने की प्रेरणा दी। रामदास जोकि उस लड़के का नाम था, वह पुस्तक उन्होंने सबसे पहले लिखी। वह रामदास नाम का एक नाटक भी लिख चुके हैं। इस किताब के लिखने से उनका मनोबल बढ़ा और फिर लिखना शुरू किया। वह मशहूर लेखक गुलशन नंदा को अपना गुरू मानते हैं। हालांकि, उनकी कभी गुलशन नंदा से मुलाकात नहीं हुई, लेकिन उनकी किताबों पर आधारित बनी फिल्मों को देखकर वह लेखक बनने के लिए प्रेरित हुए।

कहां से करते हैं रिसर्च?
सवाल पर लक्ष्मण राव ने जवाब दिया कि वह रोजाना पांच अखबारों को पढ़ते हैं।

इसके अलावा दरियागंज में संडे मार्केट से किताबें खरीदते हैं। कुछ एक किताबें उन्होंने सरकारी कार्यालयों के जरिए मिली जानकारी पर आधारित भी लिखी है। उन्होंने बताया कि एक किताब उन्होंने इंदिरा गांधी के कार्यकाल पर आधारित लिखी है। वह इस किताब को लिखने से पहले इंदिरा गांधी से मिले थे और उनके जीवन पर किताब लिखने की इच्छा जाहिर की। लेकिन इंदिरा गांधी ने जीवन पर लिखने की बजाय अपने कार्यकाल पर लिखने की अनुमति दी। उनकी यह पुस्तक 1984 में प्रकाशित हुई।

राव ने बताया कि वह पटरी पर अपनी पहली पुस्तक के प्रकाशित करने के दौरान से बेच रहे हैं, लेकिन 2011 से उन्होंने बुक फेयर में भी स्टॉल लगाकर बेचनी शुरू की। अब उनकी पुस्तकें ऐमजॉन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध हैं। न्यूजहंट नाम की एक वेबसाइट उनकी किताबों के लिए 80 हजार रुपये भी दे चुकी है। राव ने अपने परिवार की जानकारी देते हुए बताया कि उनके घर में दो बेटे और उनकी पत्नी है। वह विवेक विहार में एक किराये के मकान में रहते हैं।

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है... Beautiful Example of Personal Creativity

लक्ष्मी भी जब सिर्फ 14 साल की थी तब उसके पड़ौस में रहने वाले 32 साल के एक आदमी ने उसके चेहरे पर सिर्फ इसलिए तेजाब डाल दिया क्योंकि लक्ष्मी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था। तब से अब तक एक फाइटर की तरह लड़ती रही है लक्ष्मी। फिलहाल स्टॉप एसिड अटैक के साथ जुड़ी लक्ष्मी ने अपना दर्द एक पत्र में बयां किया है।
लक्ष्मी की खुली चिट्ठी
"दोस्तों मैं चाहती हूं कि आप भी इस लेटर को पढ़ें। इस लेटर में बहुत सी अनकही, अनसुनी बातें होंगी। आप हमारे बारे में बहुत कुछ जानते हैं लेकिन बहुत सी बातों से आप अनजान हैं। और मैं यह बातें लिखकर आपके सामने ला रही हूं, आप ज़रूर पढ़िएगा।
जब मेरा जन्म हुआ पापा ने बहुत खुश होकर मेरा नाम लक्ष्मी रखा था। वो कहते रहते थे कि मेरे घर लक्ष्मी आई है। पापा को बेटियों से बहुत प्यार था। मैं ही उनकी बेटी और बेटा थी। बहुत प्यार करते थे। फिर मैं बड़ी होती गई। फिर हमारा एक घर हुआ। उसी घर में मेरा बचपन था। फिर तीन सालों बाद मेरे भाई का जन्म हुआ। पापा-मम्मी ने कभी कोई कमी नहीं की।
फिर मैं जब खुद थोड़ी-थोड़ी बड़ी होने लगी तो मेरे सपने शुरू हुए। मैं बहुत गाती थी, डांस करती थी। मेरा भाई कुछ भी बजाया करता था। मैं अपने घर में, चर्च में, मंदिरों में प्रोग्राम किया करती थी। कभी राधा बनती थी, कभी परी बनती थी। गाना गाकर, डांस करके बहुत खुश थी मैं। जिस अंधेरे से मुझे प्यार था आज उसी अंधेरे से बहुत डरती हूं। जो अंधेरा मुझे रौशनी की किरन दिखाता था, लड़ना सिखाता था आज वो अंधेरा मुझे कहीं दूर ले जाता है। जब मैं बड़ी होने लगी तो मन करने लगा कि मैं जो सपने देखती हूं, उन्हें पूरा किया जाए। मेरे घरवालों ने पूछा कि क्या बनना चाहती हो। मैंने कहा सिंगर। लेकिन उन्हें पसंद नहीं आया। तब मेरे मन में आया कि जब तक खुद बाहर नहीं निकलूंगी अपने लिए कुछ नहीं कर सकती। तब मैंने अपने मम्मी पापा से कहा मैं बाहर निकलना चाहती हूं, जॉब करना चाहती हूं। उन्होंने मना कर दिया।
मैंने उन्हें समझाया कि मैं अकेले नहीं निकलती हूं, डरती हूं, जब तक बाहर नहीं जाऊंगी कैसे चलेगा। बहुत समझाने के बाद उन्होंने हां कहा। लेकिन मुझे घर से ज्यादा दूर जाना मना था। तो मैंने खान मार्केट में एक बुक शॉप पर काम पकड़ा और वहीं मैंने सिंगिंग क्लास की बात भी कर ली। पर उस वक्त तक एडमिशन खत्म हो गए थे।
उसी बीच एक लड़का था जो 32 साल का था, मेरे पीछे पड़ा था। मुझे मालूम नहीं था कि उसके मन में क्या चल रहा है। उसकी फेमिली और मेरी फेमिली एकदम फेमिली जैसे थे। ढाई साल से जानते थे। और उस लड़के ने मुझे एसिड अटैक के दस महीने पहले शादी के लिए कहा। मैं हैरान हो गई। मेरा मन बहुद दुखी हो गया। मैंने साफ-साफ कहा कि मैं आपको भाई मानती हूं, आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं। मैंने कहा कि आज के बाद बात भी मत कर लेना। मैं उनसे बात तक नहीं करती थी। स्कूल से आते जाते, वो कहा करते थे कि बहुत सुंदर होती जा रही हो। मेरे घर के पड़ौस में ही उनका ऑफिस था। बहुत परेशान किया उन्होंने, पर मेरी हिम्मत ही नहीं हुई अपने घर में बताने की। लेकिन उन सब चीज़ो से बहुत दूर थी मैं, अपने ही सपनों में खोई थी मैं। ना जाने कहां से वो इंसान शैतान के रूप में आ गया और मेरी ज़िंदगी बरबाद कर गया। उन्होंने बहुत कोशिश की, बहुत अलग-अलग ढंग से पर वो हर बार नाकाम रहा। मैं और मेरे सपने.., वो और उसका शैतानी दिमाग..!
उसने 19 अप्रेल को मुझे एसएमएस किया, शादी करना चाहता हूं, प्यार करता हूं..., नहीं दिया मैंने वापस जवाब। फिर 21 अप्रेल को फोन आता है, तुम तो अपने मां बाप का नाम रौशन करना चाहती हो ना?... तब भी मैंने कुछ गलत जवाब नहीं दिया। बस हां कर दिया। मुझे जॉब में लगे ठीक से 15 दिन भी नहीं हुए थे। हर दिन की तरह 22 अप्रेल, 2005 को मैं खान मार्केट जा रही थी, कि वो लड़का और उसके भाई की गर्लफ्रेंड ने आकर तेजाब डालकर मेरे चेहरे के साथ, मेरे सपनों को भी चूर-चूर कर दिया।
 
मासूम मां-बाबा की गुड़िया, मासूम सपने लेकर एक आस पर बाहर निकली थी। उस तेजाब ने सब बरबाद कर दिया। उस गरीबी में उन्होंने सारे अरमान पूरे किये, बस क्या था, एक पछतावा था कि हमने क्यों बाहर जाने दिया। मुझे पछतावा था कि मैं क्यों निकली बाहर, क्या ज़रूरत थी।
पर मुझे मालूम नहीं था, तेजाब क्या होता है। मेरे मां-बाप मुझे देखकर अंदर ही अंदर रोते थे। कुछ नहीं कहते थे। वो भाई बहुत छोटी उमर में बिछड़ गया अपने परिवारवालों से क्योंकि उसकी दीदी हॉस्पिटल में तड़प तड़प कर मर रही थी। उसके साथ ही मां-पापा भी। पूरा परिवार बिखर सा गया था। लेकिन इतना बड़ा हादसा करने के बाद भी उन दोनों को शर्म नहीं आई। फिर भी उनके मन में यहीं था कि कब मर जाऊं। लेकिन मैं मर ना सकी।
ढाई महीने के बाद जब मैं अपने घर गई, तो अपने आपको शीशे में देखकर डर गई। पता है दोस्तों मेरे मन में यहीं खयाल आया कि यह मेरे साथ क्या हो गया। मैंने ऐसा क्या किया था। मुझे मालूम ही नहीं था, तेजाब क्या होता है। जब पता चला तब भी मेरे मन में ऐसा नहीं हुआ कि उनके साथ ऐसा हो। बस मेरे मन में यहीं था कि उनसे पूछो कि मेरे सिर्फ ना करने पर मुझे जला दिया...क्यों...? यह सवाल है उनके लिए..।
मैं कभी नहीं चाहूंगी कि किसी के भी साथ ऐसा हो। मैं उन दोनों से नफरत भी नहीं करती क्योंकि वो मेरी नफरत के भी काबिल नहीं।
दोस्तों तेज़ाब सिर्फ चेहरा ही नहीं जलाता पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देता है। एक-एक सुई, ऑपरेशन, टांके, दर्द….., पूरा शरीर, घर, सब कुछ बर्बाद कर देता है। सपने जो कभी जगाए थे, वो सब मर जाते हैं। वो सारे अपने जो कभी अपने होने का अहसास दिलाया करते थे, वो दोस्त-रिश्तेदार, सबकुछ यह तेजाब जला देता है। वो हंसी जो कभी दिल से हंसी गई थी, बहुत याद आती है। वो पल जो मम्मी-पापा, भाई इन सबके साथ बिताए थे, अब सपनों की तरह हो गए हैं। जो सब कुछ छीन गया..., क्या यहीं प्यार है..?
मेरी सोच प्यार के लिए- प्यार वो है, जिसमें हमारा प्यार खुश है। प्यार वो है जिसकी लड़ाई में प्यार हो, गुस्से में प्यार हो, प्यार वो है जिसकी ना में भी हमें खुशी नज़र आए। प्यार वो है, जो दिल हो, आत्मा हो। प्यार की खुशी को देखकर जलना प्यार नहीं। प्यार देकर छीनना नहीं है, प्यार दबाब नहीं है, प्यार तेजाब नहीं है।
प्यार कोई बन्दिश नहीं होती। प्यार के आपको लेके बहुत अरमान होते हैं। किसी को प्यार करो तो उन्हें दबाब में मत रखों। प्यार की सुनो, प्यार को कहो। हम प्यार को लेकर बहुत से दावे करते हैं, पर क्या होता है? ज़रूरी तो नहीं जिससे हम प्यार करते हैं वो भी आपसे प्यार करे..। अगर मन में कुछ बात हो तो वो कह देनी चाहिए पर किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।
मेरे साथ क्या हुआ आप सब देख सकते हैं। कुछ देर पहले वहीं इंसान प्यार के दावे कर रहा था और कुछ देर बाद उसी लड़की पर, जिससे इतना प्यार था, तेजाब डालकर जला दिया। नहीं वो प्यार हो ही नहीं सकता। तेजाब उसकी सोच में था, तेजाब उसके मन में था, प्यार तो था ही नहीं।
मैं आप सबसे यहीं कहना चाहती हूं कि प्यार कभी किसी की जान नहीं ले सकता। अगर किसी के लिए आपके मन में गुस्सा है तो उसे इसी तरह यहां ज़ाहिर कर सकते हैं जैसे मैं कर रही हूं, उनके लिए जिनके तेजाब में प्यार था।
मैं चाहती हूं कि वो लड़का अब जेल से बाहर आ जाए और खुशी-खुशी अपने बीबी-बच्चों के साथ रहे। उन्हें अच्छी परवरिश दे और वो अपने परिवार के साथ खुश रहे। मेरे मन में उनके लिए कुछ नहीं है बस यहीं जो उन्होंने किया वो माफी के काबिल नहीं। बस यहीं है कि उनको अहसास हो इस बात का कि जो किया वो गलत किया। मेरे साथ जो हुआ, मैं उसके बाद बाहर आई, मैंने उसके बाद चेहरा नहीं छुपाया। क्यों छुपाऊं, मैंने कुछ गलत नहीं किया। लेकिन जब आप जेल से बाहर आओगे तो आपको अपनी करतूतों पर बेहद दुख होगा। आज मेरे पापा नहीं है इस दुनिया में। वो अपने साथ बहुत दर्द लेकर गए हैं। आपने हमारी अच्छाईयों और मासूमियत का बहुत बड़ा फायदा उठाया, पर आप खुश रहो।"
लक्ष्मी
लक्ष्मी की कविता उस व्यक्ति के नाम जिसने उसका चेहरा तेजाब से जला डाला
"आपने तेजाब मेरे चेहरे पर नहीं,
मेरे सपनों पर डाला था।
आपके दिल में प्यार नहीं,
तेजाब हुआ करता था।
आप मुझे प्यार की नज़र से नहीं,
तेजाब की नज़र से देखा करते थे।
मुझे दुख है इस बात का कि आपका नाम,
मेरे तेजाबी चेहरे से जुड़ गया है।
वक्त इस दर्द पर कभी मरहम नहीं लगा पाएगा,
हर ऑपरेशन में मुझे तेजाब की याद दिलाएगा।
जब आपको यह पता चलेगा कि जिस चेहरे को आपने तेजाब से जलाया,
अब उस चेहरे से मुझे प्यार है,
जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,
वो वक्त आपको कितना रुलाएगा।
जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,
कि मैं आज भी ज़िंदा हूं,
अपने सपनों को साकार कर रही हूं...।"
लक्ष्मी
लक्ष्मी आज अपने सपनों को जी रही है वो आज खुश है उसने अपना प्यार पा लिया है अपना जीवन पा लिया है। आज वो उस जैसी कई और लड़कियों की हिम्मत और विश्वास बन चुकी है जिनके चेहरे को एकतरफा प्यार, पारिवारिक दुश्मनी या फिर निजी खुन्नस के कारण तेजाब डालकर जला डाला गया।