हर किसी के जीवन में एक समय ऐसा भी आता है जब सही समय, सही स्थान और सही कारणों का एक संगम होता है। जितेंद्र सांगवान के जीवन में वह समय तब आया जब वे आईसीआईसीआई लोम्बार्ड और अवीवा जैसी कंपनियों के साथ एक बेहद सफल काॅर्पोरेट करियर के अनुभव के बावजूद अपनी मनमर्जी की नौकरी पाने में असफल रहे। बस उसी समय उन्होंने अपना कुछ काम करने के बारे में सोचा लेकिन क्या करना चाहिये इसे लेकर वे संशय में थे। हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित अपने पैत्रक गांव थोल की एक यात्रा के दौरान उन्होंने खेती को एक विकल्प के रूप में अपनाने के बारे में सोचा।
उस समय को याद करते हुए वे कहते हैं, ‘‘जब भी मैं थोल जाता तो एक बात मेरी समझ में बिल्कुल स्पष्ट तरीके से आती कि वहां के किसान खुश नहीं हैं। वे अपने बच्चों को खेती से दूर रखने के इच्छुक रहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि इसमें एक उज्जवल भविष्य नहीं है।’’ उन्होंने जितना अधिक इस बारे में विचार किया वे खुद को उतना ही अधिक समझाने में सफल रहे कि अगर उन्हें अपने दम पर कुछ करना ही है तो उन्हें खेती से संबंधित एक वैकल्पिक मार्ग को चुनना ही होगा। और बस इसी दौरान उनके मन में जैविक खेती (आॅर्गेनिक फार्मिंग) के साथ आगे बढ़ने का विचार आया।
साथ जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के लिये एक बिल्कुल नया अनुभव
उनके सामने सिर्फ एक समस्या थी और वह यह थी कि उन्हें खेती के क्षेत्र में कोई भी पुराना अनुभव नहीं था। उनके पिता भारतीय वायुसेना में एक अधिकारी के पद पर तैनात रहे थे और केंद्रीय विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने स्नातक किया। स्नातक के बाद उन्होंने सिंबायोसिस पुणे से एमबीए किया जो बाद में जाकर उनके व्यवसायिक करियर के लिये एक प्रवेश द्वार साबित हुआ। स्वाभाविक रूप से उनके माता-पिता और मित्र भी उनके इस फैसले को लेकर सशंकित थे। वे हंसते हुए कहते हैं, ‘‘मैंने न सिर्फ अपने करियर को पीछे छोड़ दिया था बल्कि मैंने एक ऐसे गांव में रहने का फैसला किया था जहां इंटरनेट तो दूर की बात है बिजली भी नहीं थी।’’ आखिरकार वे अपने समर्थकों को अपने साथ लाने में सफल रहे जिन्होंने उन्हें भावनात्मक और आर्थिक दोनों ही स्तरों पर मदद की क्योंकि उन्हें अपने इरादे पर पूरा भरोसा था।
आखिरकार नवंबर 2012 में मात्र एक लाख रुपये की प्रारंभिक पूंजी के साथ कुरुक्षेत्र के अपने फार्म से सीधे दिल्ली और एनसीआर के घरों को जैविक खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाने के एकमात्र उद्देश्य के साथ अनुबल एग्रो प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई। अपने तमाम अनुसंधानों के बावजूद उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती जैविक खेती से संबंधित जानकारी को जुटाने की थी क्योंकि यहां पर लगभग हर कोई रसायनों और कीटनाशकों का प्रयोग करते हुए पारंपरिक खेती ही कर रहा था।
हालांकि उनका सफर प्रारंभ में काफी धीमा रहा लेकिन समय के साथ स्थितियां इनके अनुकूल होती गईं और अनुबल ने दिल्ली और एनसीआर के क्षेत्र में रहने वालों के लिये उत्पादों को उगाना और बेचना प्रारंभ कर दिया। अनुबल एग्रो का इरादा भारत में जैविक खेती को बढ़ावा देते हुए एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना करना है जहां किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों, विकास कारकों और कीटनाशकों जैसे कृत्रिम बाहरी तत्वों का प्रयोग किये बिना सतत उत्पादकता हासिल करने मेें मदद करने का है। ये अपने उपभोक्ताओं को प्रमाणिक जैविक खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाना चाहते हैं और इसी क्रम में वे किसानों को भी जैविक खेती अपनाकर आत्मनिर्भर बनने में मदद करना चाहते हैं।
खेत से लेकर आपकी प्लेट तक सिर्फ जैविक
पारंपरिक किसान मंडी के दामों, मौसमी कटावों और निष्क्रिय कीटनाशकों पर काफी हद तक निर्भर रहते हैं। हालांकि शहरी इलाकों में रहने वाले भारतीय अब जैविक खाद्य पदार्थों का उपयोग प्रारंभ कर रहे हैं और अब वे उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक खानों को प्राथमिकता दे रहे हैं। जितेंप्र अपने आसपास के क्षेत्र के किसानों को जैविक खेती के लिये प्रोत्साहित करना चाहते थे और उन्होंने निःशुल्क बीज, बायो इनपुट और परामर्श के माध्यम से इन किसानों की मदद में कोई कसर नहीं छोड़ी। जितेंद्र का दावा है कि प्रारंभिक दौर में कम उपज की क्षतिपूर्ति करने के लिये वे इन किसानों को अपनी जेब से बाजार दाम से 10 प्रतिशत अधिक का भुगतान करते हैं।
‘‘हम अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में अपेन उत्पादों को 20 से 30 प्रतिशत कम दरों पर बेचते हैं। चूंकि हमें किसी भी बिचैलिये या खुदरा विक्रेता को कैसा भी कोई कमीशन नहीं देना पड़ता और इसके अलावा हमारा मार्केटिंग इत्यादि का भी कोई खर्चा नहीं है ऐसे में हम उस लाभ को अपने अंत अपभोक्ता तक आसानी से पहुंचाते हैं। इस प्रकार से बचे हुए पैसे को हम किसानों के लिसे बीज और अन्य सामग्री खरीदने में प्रयोग करते हैं और उन्हें जैविक खेती प्रारंभ करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं। हम रुचि दिखाने वाले किसानों के साथ 10 वर्ष का करार करते हैं और उनकी जमीनों को अपने लाईसेंस के अंतर्गत प्रमाणित करते हैं।’’
अनुबल फसलों की कई किस्मों को उगाते हैं और फिर खाद्य पदार्थों को प्रोसेस करके पैक करते हैं। इनके उत्पादों में गेहूं, होल वीट आटा, बासमती चावल, चावल का आटा, काला चना, साबुत मूंग, लाल आलू और दलिया शामिल हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि अनुबल अपने उत्पाद सीधे अपने उपभोक्ताओं को बेचते हैं ओर फिलहाल ये सप्ताहांतों में विभिन्न सोसाइटियों के बाहर कियोस्क लगाकर बिक्री करते हैं। इनके पास कोई भी स्थाई कर्मचारी नहीं है क्योंकि सारा काम अस्थाई कर्मचारियों की मदद से पूरा हो जाता है। प्रति सप्ताहांत में होने वाली बिक्रीः दालेंः 2 से 3 किं्वटल, आलूः 4 से 5 किं्वटल, चावलः 2 से 3 किं्वटल, चावल का आटा 2 से 3 किं्वटल और दलियाः 50 किलो से 1 किं्वटल।
बदलाव के वाहक
जितेंद्र कहते हैं, ‘‘हमनें खेती के पारंपरिक तरीके को बिल्कुल बदल दिया है और अब हम अपनी उपज को बिना किसी मध्यस्थ के एएनएम सिद्धांत के आधार पर बेचते हैं। भारतीय किसान काफी लंबे समय से ऐसे ही किसी माॅडल की तलाश में थे लेकिन बिना सरकारी या किसी काॅर्पोरेट सहायता के उनके लिये ऐसा कर पाना नामुमकिन है। इस पारिस्थितिकितंत्र से बिचैलियों को बाहर करके हमनें एक ऐसी व्यवस्था प्रारंभ की है जहां उपभोक्ता सीधे किसानों से बात कर सकते हैं और यहां तक कि अगर वे चाहें तो उनके खेतों तक भी आ सकते हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है और हमें यकीन है कि यह भारतीय खेती की दुनिया में एक बड़े परिवर्तन का वाहक बनेगा क्योंकि इसकी मदद से किसानों के रहन-सहन के स्तर में सुधार आएगा और वे दोबारा खेती को एक काम के रूप में अपनाने के लिये प्रेरित होंगे।’’
अगर भारतीय कृषि उद्योग की वर्तमान परिस्थिति पर नजर डालें तो एक ऐसे माहौल में जहां परेशानहाल किसान लगातार आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं ऐसे में बिना किसी भी प्रकार की वित्तीय मदद और सरकारी सहयोग के किसी को भी अपने ब्रांड के तहत सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिये उन्हें जैविक खाद्य पदार्थों की खेती के लिये प्रोत्साहित करना काफी मुश्किल काम है। ऐसे में अनुबल जैसे उद्यम किसानों को अधिकाधिक जैविक खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने और उन्हें वितरित करने की क्षमता रखते हैं। इसके अलावा वे कई बड़े औद्योगिक घरानों को भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ाने के लिये आमंत्रित कर रहे हैं जो सीधे किसानों के साथ डील करने के लिये निवेश करने के इच्छुक हों।
विस्तार की योजनाएं
इनके पास आने वाले 80 प्रतिशत से भी अधिक उपभोक्ता वे होते हैं जो पूर्व में इनके उत्पाद प्रयोग कर चुके होते हैं। अब अनुबल एग्रो अपने उत्पादों को यूरोपीय और अन्य एशियाई देशों में निर्यात करने पर भी विचार कर रहे हैं। भारतवर्ष की बात करें तो ये अपना विस्तार मुंबई, बैंगलोर, पुणे, हैदराबाद और कोलकाता जैसे मेट्रो शहरों में करने के लिये प्रयासरत हैं और इनका इरादा नूडल्स, पास्ता, जूस और मसालों के अलावा काॅर्नफ्लेक्स और नाश्ते के काम आने वाले अन्य प्रकार के जैविक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को भी अपनी उत्पाद श्रृंखला में का हिस्सा बनाने का है। इन्हें उम्मीद है कि ये वर्ष 2016 में 50 लाख रुपये से अधिक का व्यापार करने में सफल रहेंगे।