समाज-सेवा का संकल्प
आम तौर पर कई लोगों में ये धारणा बनी हुई है कि समाज-सेवा के लिए खूब धन-दौलत की जरुरत होती है। जिनके पास रुपये हैं वे ही जरूरतमंद लोगों की मदद कर समाज-सेवा कर सकते हैं। लेकिन, इस धारणा को तोड़ा है तमिलनाडू के एक नौजवान ने। इस नौजवान का नाम मणिमारन है।
मणिमारन का जन्म तमिलनाडू में तिरुवन्नामलई जिले के थलयमपल्लम गाँव के एक किसान परिवार में हुआ। परिवार गरीब था - इतना गरीब कि उसकी गिनती गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों में होती थी। गरीबी के बावजूद घर के बड़ों ने मणिमारन को स्कूल भेजा। पिता चाहते थे कि मणिमारन खूब पढ़े और अच्छी नौकरी पर लगे। लेकिन, आगे चलकर हालात इतने खराब हो गए कि मणिमारन को बीच में ही स्कूल छोड़ना पड़ा। गरीबी की वजह से मणिमारन ने नवीं कक्षा में पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और घर-परिवार चलाने में बड़ों की मदद में जुट गए। मणिमारन ने भी उसी कपड़ा मिल में नौकरी करनी शुरू की जहाँ उनके भाई नौकरी करते थे। मणिमारन को शुरूआत में एक हजार रुपये प्रति माह की तनख्वा पर काम दिया गया। मणिमारन ने अपनी मासिक कमाई का आधा हिस्सा अपने पिता को देना शुरू किया। उन्होंने आधा हिस्सा यानी 500 रुपये जरूरतमंद लोगों की मदद में लगाया।
बचपन से ही मणिमारन को जरूरतमंद और निस्सहाय लोगों की मदद करने में दिलचस्पी थी। मणिमारन का परिवार गरीब था और परिवारवालों के लिए 500 रुपये काफी मायने रखते थे। लेकिन, मणिमारन पर जरूरतमंदों की मदद करने का जूनून सवार था। मणिमारन 500 रुपये अपने लिए भी खर्च कर सकते थे। नए कपड़े, जूते और दूसरे सामान जो बच्चे अक्सर अपने लिए चाहते हैं वो सभी खरीद सकते थे। लेकिन, मणिमारन के विचार कुछ अलग ही थे। छोटी-सी उम्र में वे थोड़े से ही काम चलाना जान गए थे और उनकी मदद बेताब थे जिनके पास कुछ भी नहीं है।
अपनी मेहनत की कमाई के 500 रुपये से मणिमारन ने सड़कों, गलियों , मंदिरों और दूसरी जगहों पर निस्सहाय पड़े रहने वाले लोगों की मदद करना शुरू किया। मणिमारन ने इन लोगों में कम्बल, कपड़े और दूसरे जरूरी सामान बांटे । मणिमारन ने कई दिनों ऐसे ही अपनी कमाई की आधा हिस्सा जरूरतमंद लोगों में लगाया। गरीबी के उन हालातों में शायद ही कोई ऐसा करता। परिवारवालों ने भी मणिमारन को अपनी इच्छा के मुताबिक काम करने से नहीं रोक। मणिमारन ने ठान ली थी कि वो अपनी जिंदगी किसी अच्छे मकसद के लिए समर्पित करेंगे।
इसी दौरान एक घटना ने मणिमारन के जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल दी। एक बार मणिमारन कोयंबटूर से तिरुपुर जा रहे थे। वह यह सफर बस से कर रहे थे। बस में कुछ खराबी आने की वजह से उसे ठीक करने के लिए उसे बीच रास्ते में ही रोका गया। बस में बैठे मणिमारन ने देखा कि एक बूढ़ी महिला, जो कि कुष्ठ रोग से पीड़ित थी, लोगों से पीने के लिए पानी मांग रही थी। उसके हाव-भाव से साफ था कि वो प्यासी है। लेकिन, इस प्यासी बुढ़िया की किसी ने मदद नहीं की। उलटे, लोग बुढ़िया को दूर भगाने लगे। कोई उसे सुनने को भी तैयार नहीं था। इतने में ही मणिमारन ने देखा कि वो बुढ़िया अपनी प्यास बुझाने के लिए एक नाले के पास गयी और वहीं से गन्दा पानी उठाने लगी। ये देख कर मणिमारन उस बुढ़िया के पास दौड़ा और उसे गंदा पानी पीने से रोका।
मणिमारन ने जब ये देखा कि बुढ़िया की शारीरिक हालत भी काफी खराब है और कुष्ठ रोग की वजह से उसके शरीर पर कई जख्म हैं तो उसका दिल पसीज गया। उसने उस बूढ़ी महिला का मुँह साफ किया और उसे साफ पानी पिलाया। इस मदद से खुश उस महिला ने मणिमारन को अपने गले लगा लिया और गुजारिश की कि वो उसे अपने साथ ले चले। मणिमारन उस महिला को अपने साथ ले जाना चाहते थे लेकिन उस समय वो ले जाने की हालत में नहीं थे। इस वजह से मणिमारन ने एक ऑटो ड्राइवर को 300 रूपए दिये और उससे दो दिन तक महिला की देखभाल करने को कहा। मणिमारन ने उस महिला को भरोसा दिलाया वो तीसरे दिन आकर उन्हें अपने साथ ले जाएगा। मणिमारन जब उस महिला को लेने उसी जगह पहुंचे तो वो वहां नहीं थी। मणिमारन ने महिला की तलाश शुरू की, लेकिन वो कई कोशिशों के बावजूद उसे नहीं मिली। मणिमारन बहुत निराश हुए।
यहीं से उनके जीवन की दिशा बदली। मणिमारन ने एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने फैसला लिया कि वे कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने का । फिर क्या था अपने संकल्प के मुताबिक मणिमारन ने कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की मदद करना शुरू किया। जहाँ कहीं उन्हें कुष्ठ रोग से पीड़ित लोग निस्सहाय स्थिति में दिखाई देते वे उन्हें अपने यहाँ लाकर उनकी मदद करते। मणिमारन ने इन लोगों का इलाज भी करवाना शुरू किया।
उन दिनों लोग कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों को बहुत ही हीन भावना से देखते थे। कुष्ठ रोग से पीड़ित होते ही व्यक्ति को घर से बाहर निकाल दिया जाता। इतना ही नहीं एक तरह से समाज भी उनका बहिष्कार करता था। कोई भी उनकी मदद या फिर इलाज के लिए आगे नहीं आता था। कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों को छूने से भी लोग कतराते थे। अक्सर ऐसे लोग सड़कों या फिर मंदिरों के पास निस्सहाय हालत में भीख मांगते नजर आते। मणिमारन ने ऐसी ही लोगों की मदद का सराहनीय और साहसी काम शुरू किया। मदर टेरेसा और सिस्टर निर्मल का भी मणिमारन के जीवन पर काफी प्रभाव रहा है।
जब भारत के जाने-माने वैज्ञानिक डॉ अब्दुल कलाम को मणिमारन की सेवा के बारे में पता चला तो उन्होंने मणिमारन को एक संस्था खोलने की सलाह दी। इस सलाह को मानते हुए मणिमारन ने अपने कुछ दोस्तों के सहयोग से साल 2009 में वर्ल्ड पीपल सर्विस सेंटर की स्थापना की। इस संस्था की सेवाओं के बारे में जब तमिलनाडू सरकार को पता चला तब सरकार की ओर से जरूरमंदों की मदद में सहायक सिद्ध होने के लिए मणिमारन को जगह उपलब्ध कराई गयी।
मणिमारन ने वर्ल्ड पीपल सर्विस सेंटर के जरिये जिस तरह से गरीब और जरूरतमंदों की सेवा की उसकी वजह से उनकी ख्याति देश-भर में ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भी होने लगी। उनके काम के बारे में जो भी सुनता वो उनकी प्रसंशा किया बिना नहीं रुकता। अपनी इस अनुपम और बड़ी समाज-सेवा की वजह से मणिमारन को कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा जा चुका है। इस बात में दो राय नहीं हैं कि गरीबी से झूझते हुए भी जिस तरह से मणिमारन ने लोगों की सेवा की है वो अपने आप में गजब की मिसाल है।
No comments:
Post a Comment